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तो इस तरह जुड़वा 2 देखने के बाद पैसे वापस मिल गए...

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 01 अक्टूबर, 2017 05:51 PM
  • 01 अक्टूबर, 2017 05:51 PM
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मुद्दे पर आते हैं. जुड़वा 2 देखने की हिम्मत तो पहले से ही मुझमें थी, लेकिन ये बिलकुल नहीं पता था कि इस फिल्म के दिमाग को साथ ले जाना घातक होगा, लेकिन इसके पहले ये भी नहीं पता था कि रिफंड भी मिल जाएगा...

जुड़वा 2 के बारे में जगह-जगह बात हो रही है. वरुण धवन की ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक रिस्पॉन्स भी दे रही है. इसे कुछ गलत मत समझिएगा दरअसल, वरुण धवन की जुड़वा 2 असल में हाइप के कारण ज्यादा रिस्पॉन्स पा रही है. वैसे न्यूटन भी एक बेहतरीन फिल्म है जिसे देखनी हो. खैर, मुद्दे पर आते हैं. जुड़वा 2 देखने की हिम्मत तो पहले से ही मुझमें थी, लेकिन ये बिलकुल नहीं पता था कि इस फिल्म के दिमाग को साथ ले जाना घातक होगा.

फिल्म देखने का मन इसलिए भी था क्योंकि 1997 में रिलीज हुई जुड़वा काफी एंटरटेनिंग फिल्म थी और उसी के कारण ऐसा लग रहा था कि ये फिल्म भी लगभग वैसी ही होगी, लेकिन उम्मीद से काफी ज्यादा इस फिल्म ने निराश किया. फिल्म शुरू हुई तो लगा कि बहुत बड़ी गलती कर दी. लगा की जल्दी फिल्म खत्म हो जाए. आधी फिल्म भी पूरी नहीं हुई थी कि वरुण धवन को देखकर लगा कि बस अब नहीं हो पाएगा.

तापसी पन्नु और जैकलीन ने भी निराश ही किया. पीछे बैठी फैमली की कमेंट्री भी शुरू थी जो फिल्म से ज्यादा अच्छी लग रही थी. थोड़ी देर में ऐसा लगने लगा कि सलमान खान की फिल्म ही चला दी जाती तो शायद पब्लिक ज्यादा इन्जॉय कर लेती. मतलब समझ नहीं आया कि डेविड धवन अपने बेटे को गोविंदा बनाना चाह रहे थे या सलमान. वरुण धवन का डायलॉग 'राजा की इज्जत कोई सौंदर्य साबुन (गाते हुए) नहीं है, जिसे तू घिस-घिस के धो डाले'. इतना बुरा था कि लगा अभी उठ जाएं, लेकिन पैसे तो दिए थे पूरे वसूलने तो थे ही तो पिक्चर देखते रहे.

थोड़ी देर में स्क्रीन ब्लैंक हो गई. पब्लिक थोड़ा ज्यादा ही परेशान हो रही थी. कुछ लोगों को लगा कि इंटरवल है और जाकर पॉप कॉर्न और कोल्डड्रिंक ले आए. बैठ गए और थोड़ी देर में पिक्चर शुरू हो गई. अभी 10 मिनट बाद फिर इंटरवल हो गया. ठगे से लोग बैठे रहे. अब कितनी बार आखिर पॉप कॉर्न खाएगा कोई. दिल्ली के मॉल...

जुड़वा 2 के बारे में जगह-जगह बात हो रही है. वरुण धवन की ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक रिस्पॉन्स भी दे रही है. इसे कुछ गलत मत समझिएगा दरअसल, वरुण धवन की जुड़वा 2 असल में हाइप के कारण ज्यादा रिस्पॉन्स पा रही है. वैसे न्यूटन भी एक बेहतरीन फिल्म है जिसे देखनी हो. खैर, मुद्दे पर आते हैं. जुड़वा 2 देखने की हिम्मत तो पहले से ही मुझमें थी, लेकिन ये बिलकुल नहीं पता था कि इस फिल्म के दिमाग को साथ ले जाना घातक होगा.

फिल्म देखने का मन इसलिए भी था क्योंकि 1997 में रिलीज हुई जुड़वा काफी एंटरटेनिंग फिल्म थी और उसी के कारण ऐसा लग रहा था कि ये फिल्म भी लगभग वैसी ही होगी, लेकिन उम्मीद से काफी ज्यादा इस फिल्म ने निराश किया. फिल्म शुरू हुई तो लगा कि बहुत बड़ी गलती कर दी. लगा की जल्दी फिल्म खत्म हो जाए. आधी फिल्म भी पूरी नहीं हुई थी कि वरुण धवन को देखकर लगा कि बस अब नहीं हो पाएगा.

तापसी पन्नु और जैकलीन ने भी निराश ही किया. पीछे बैठी फैमली की कमेंट्री भी शुरू थी जो फिल्म से ज्यादा अच्छी लग रही थी. थोड़ी देर में ऐसा लगने लगा कि सलमान खान की फिल्म ही चला दी जाती तो शायद पब्लिक ज्यादा इन्जॉय कर लेती. मतलब समझ नहीं आया कि डेविड धवन अपने बेटे को गोविंदा बनाना चाह रहे थे या सलमान. वरुण धवन का डायलॉग 'राजा की इज्जत कोई सौंदर्य साबुन (गाते हुए) नहीं है, जिसे तू घिस-घिस के धो डाले'. इतना बुरा था कि लगा अभी उठ जाएं, लेकिन पैसे तो दिए थे पूरे वसूलने तो थे ही तो पिक्चर देखते रहे.

थोड़ी देर में स्क्रीन ब्लैंक हो गई. पब्लिक थोड़ा ज्यादा ही परेशान हो रही थी. कुछ लोगों को लगा कि इंटरवल है और जाकर पॉप कॉर्न और कोल्डड्रिंक ले आए. बैठ गए और थोड़ी देर में पिक्चर शुरू हो गई. अभी 10 मिनट बाद फिर इंटरवल हो गया. ठगे से लोग बैठे रहे. अब कितनी बार आखिर पॉप कॉर्न खाएगा कोई. दिल्ली के मॉल में 325 रुपए की टिकट और 250 रुपए का पॉप कॉर्न साथ में 110 रुपए की कोल्डड्रिंक पीने के बाद अब दोबारा ये सब लेने तो नहीं जाएगा कोई इंसान तो आराम से इंटरवल में गोलमाल 4 का ट्रेलर और दुनिया भर के विज्ञापन देखे.

थोड़ी देर में फिल्म शुरू हुई और करीब 25 मिनट चलने के बाद फिर स्क्रीन ब्लैंक हो गई. अब लोग परेशान होने लगे. दशहरे का दिन था तो सजे-धजे लोग बैठ कर हुड़दंग भी करने लगे. इस बार हॉल में हलचल थोड़ी ज्यादा होने लगी. लोग परेशान हो गए.. न तो फिल्म पसंद आ रही है और न ही एक बार में फिल्म देखी जा रही है.

खैर, थोड़े गाली गलौच के बाद फिल्म फिर से शुरू हुई. अब 'आ तो सही' गाना आ रहा था. आजकल ये गाना डिस्को में भी चलने लगा है तो थोड़ा ज्यादा ही फेमस हो रहा है. लोग एन्जॉय कर ही रहे थे कि अचानक फिर स्क्रीन ब्लैंक हो गई. लोग इतने पागल हो गए कि मैनेजर को मारने चले गए. बच्चों के सामने भी लोग अश्लील बातें करने लगे. फिर भी कुछ भले मानुष हॉल में बैठे रहे कि शायद अब फिल्म शुरू हो जाए.

थोड़ी देर में स्क्रीन पर कुछ हलचल दिखी और फिर बंद हो गई. इतने में जो कुर्ता पैजामा पहने हुड़दंगई आए थे वो मैनेजर के पास से वापस आए और हॉल में चिल्लाकर बोले जिस जिस को पैसे चाहिए हो वो ले ले आकर. बस शायद अपने 325 रुपए पर हेड टिकट के पैसे के कारण ही लोग बैठे थे. सभी उठकर लाइन लगाकर खड़े हो गए. मैं भी अपने पैसे लेने चल पड़ी आखिर कुल 3 लोगों के पैसे लेने बाकी थे.

लाइन में लगे हुए लोग खुश थे. सिर्फ आधे-पौन घंटे की फिल्म बची थी जिसे वाकई देखा नहीं जा रहा था. उसपर लोगों को पैसे वापस मिल जाएं तो सोने पर सुहागा. बुरा सिर्फ उस मैनेजर के लिए लग रहा था जिसकी कुटाई हो गई. अब तकनीकी खराबी तो कभी भी हो सकती है. लगभग पूरी फिल्म देखकर पैसे वापस लेकर वापस आ गए हम घर को. कुछ ऐसा लगा मानो भगवान ने इतने टॉर्चर की पूरी कीमत चुका दी हो. अंत में बस इतना ही कहना है कि डेविड धवन जी कुछ तो लॉजिक रखा होता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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