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अमिताभ ने नव्या-आराध्या को 'पिंक' पत्र क्यों लिखा?

    • ऋचा साकल्ले
    • Updated: 17 सितम्बर, 2016 10:53 AM
  • 17 सितम्बर, 2016 10:53 AM
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फिल्म 'पिंक' में काम करते हुए अमिताभ बच्चन ने नए विचारों को तर्क की कसौटी पर परखा, समझा, आत्मसात किया और अपनी पोती और नातिन को एक खुला पत्र लिखकर खुले विचारों की शुरुआत अपने घर से की.

दो हफ्ते पहले जब अमिताभ का नव्या-आराध्या को लिखे पत्र का वीडियो सामने आया तो सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर पत्र पढ़कर सुनाया दिखाया जाने लगा. अटकलें बढ़ीं, कयास लगाए गए, बिग बी के चरित्र की चीड़ फाड़ हुई. आरोप लगा की मांगलिक ऐश्वर्या का विवाह पीपल के वृक्ष से कराने वाले अमिताभ इतनी प्रोग्रेसिव, लिबरल और खुले दिमाग वाली बातें अपनी नातिन और पोती को कैसे कह सकते हैं. पत्र की प्रतिक्रिया में यह भी लोगों ने कहा कि ये बिग बी की आने वाली फिल्म का प्रमोशन है. मुझे भी यही लगा. और ये सच है कि बिग बी ने पत्र क्यों लिखा इसका जवाब उनकी फिल्म पिंक देखने के बाद पता चल जाता है.

तीन इंडिपेंडेंट वर्किंग वुमन की कहानी है 'पिंक'

लेकिन हां, पिंक देखने के बाद मेरे विचार बिग बी के प्रति बदले हैं मैंने सकारात्मक सोचा और समझा कि इस फिल्म में काम करते करते निःसंदेह अमिताभ ने अपने माइंडसेट को बदला है, बदलने कि कोशिश की है, अमिताभ महानायक होने से पहले इंसान हैं, पारंपरिक सवर्ण परिवार से आते हैं, सोशल कंडीशनिंग से वो भी मुक्त नहीं है. परंतु उनका व्यक्तित्व बताता है कि सीखते रहने की प्रक्रिया उन्होंने बंद नहीं की और मुझे लगता है यही वजह है कि पिंक में काम करते हुए उन्होंने नए विचारों को तर्क की कसौटी पर परखा, समझा, आत्मसात किया और अपनी पोती और नातिन को एक खुला पत्र लिखकर खुले विचारों की शुरुआत अपने घर से की.

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दो हफ्ते पहले जब अमिताभ का नव्या-आराध्या को लिखे पत्र का वीडियो सामने आया तो सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर पत्र पढ़कर सुनाया दिखाया जाने लगा. अटकलें बढ़ीं, कयास लगाए गए, बिग बी के चरित्र की चीड़ फाड़ हुई. आरोप लगा की मांगलिक ऐश्वर्या का विवाह पीपल के वृक्ष से कराने वाले अमिताभ इतनी प्रोग्रेसिव, लिबरल और खुले दिमाग वाली बातें अपनी नातिन और पोती को कैसे कह सकते हैं. पत्र की प्रतिक्रिया में यह भी लोगों ने कहा कि ये बिग बी की आने वाली फिल्म का प्रमोशन है. मुझे भी यही लगा. और ये सच है कि बिग बी ने पत्र क्यों लिखा इसका जवाब उनकी फिल्म पिंक देखने के बाद पता चल जाता है.

तीन इंडिपेंडेंट वर्किंग वुमन की कहानी है 'पिंक'

लेकिन हां, पिंक देखने के बाद मेरे विचार बिग बी के प्रति बदले हैं मैंने सकारात्मक सोचा और समझा कि इस फिल्म में काम करते करते निःसंदेह अमिताभ ने अपने माइंडसेट को बदला है, बदलने कि कोशिश की है, अमिताभ महानायक होने से पहले इंसान हैं, पारंपरिक सवर्ण परिवार से आते हैं, सोशल कंडीशनिंग से वो भी मुक्त नहीं है. परंतु उनका व्यक्तित्व बताता है कि सीखते रहने की प्रक्रिया उन्होंने बंद नहीं की और मुझे लगता है यही वजह है कि पिंक में काम करते हुए उन्होंने नए विचारों को तर्क की कसौटी पर परखा, समझा, आत्मसात किया और अपनी पोती और नातिन को एक खुला पत्र लिखकर खुले विचारों की शुरुआत अपने घर से की.

ये भी पढ़ें- नव्या-आराध्या के नाम अमिताभ के खत को हर महिला को पढ़ना चाहिए!

जाहिर है अब आप सोच रहे होंगे कि फिल्म पिंक में ऐसा क्या है. तो फिल्म पिंक सचमुच उस दुनिया कि सच्चाई हमारे सामने रखती है जिसमें हम सब रहते हैं. आप कहेंगे रियलिस्टिक सिनेमा तो खूबब देखा गया लेकिन क्या बदला. पर मुझे लगता है कि ये फिल्म स्त्री पुरुष के बराबरी के मुद्दे पर नए समय, नई दुनिया को रचने की पहल करने का माद्दा रखती है. पिंक तीन इंडिपेंडेंट वर्किंग वुमन की कहानी है जो दिल्ली के एक पॉश इलाके में फ्लैट किराए पर लेकर रहती हैं.

फिल्म में वकील की भूमिका निभा रहे हैं अमिताभ बच्चन 

हमारे समाज में वर्किंग गर्ल्स जो अकेले रहती हैं उनका रहना कितना मुश्किल है, उन्हें लड़की होने की वजह से कितनी परेशानियों से गुजरना पड़ता है यह हर वो लड़की समझ सकती है जो अकेले रहती है. उनपर सबकी निगाह होती है. वो कब आती हैं, कब जाती हैं, क्या खाती हैं, क्या पहनती हैं, कैसे हंसती है, कौन खासतौर पर पुरुष मित्र कब उनके घर आते हैं, कब जाते हैं. हर बात पर आसपास के लोग, उनके करीबी दोस्त नजर रखते हैं. अगर वो ड्रिंक या स्मोक करती हैं तो समझो आसमान टूट गया फिर तो वो सबके लिए उपलब्ध मानी जाती है मानों उन पर तो पूरे समाज के पुरुषों का हक है.

दरअसल समाज लड़कियों को इंसान मानता ही नहीं, समाज में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग मापदंड हैं. अकेली लड़कियां अगर किसी बड़ी मुश्किल में फंस जाएं तो बदनामी के डर से वो पुलिस तक नहीं पहुंच पाती हैं और पहुंच भी जाएं तो पुलिस और अदालत में पूछे जाने वाले सवालों के जवाब से कतराती हैं. शुजीत सरकार की इस फिल्म पिंक में भी ऐसा ही कुछ है.

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ये तीनों लड़कियां एक मुश्किल में फंस जाती हैं और वकील की भूमिका निभा रहे अमिताभ बच्चन उन्हें इस मुश्किल से निकालते हैं. लड़कों के वकील पियूष मिश्रा और लड़कियों के वकील अमिताभ की बहस के जरिए निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने बहुत सी बातों पर सोचने पर मजबूर किया है. अमिताभ फिल्म में समाज में लड़कियों के लिए बनाए गए हर सेफ्टी रूल्स का मखौल उड़ाते नज़र आएंगे जिसे देख सुनकर आपको भी लगेगा कि लड़कियों के लिए यह गैरबराबरी का व्यवहार कितना बकवास और पक्षपात भरा है. फिल्म में एक महिला पुलिस अधिकारी का भी किरदार है जिसे देखकर कुछ लोग वही पुराना घिसापिटा बेहूदा तर्क दे सकते हैं कि महिला ही महिला की दुश्मन है, तो मैं साफ करना चाहती हूं कि पुलिस अधिकारी महिला हो या पुरुष एक तंत्र का हिस्सा बनने पर दोनों का व्यवहार तंत्र निर्धारित करता है वो खुद नहीं. और वो भी इसी समाज का हिस्सा है तो पितृसत्तात्मक, गैरबराबरी वाले समाज से मिली कंडीशनिंग से कैसे अछूती रह सकती हैं.

 अमिताभ फिल्म में समाज में लड़कियों के लिए बनाए गए हर सेफ्टी रूल्स का मखौल उड़ाते नज़र आएंगे

लड़की/महिला वर्किंग हो या नॉन वर्किंग, विवाहित हो या अविवाहित, क्या खाना है, क्या पहनना है और क्या करना है (जिसमें प्रोफेशन और हमबिस्तर होना) शामिल है ये तीन बातें तय करने का हक सिर्फ उसका होना चाहिए. आज के दौर में ये बात सबको समझनी ही होगी. फिल्म पिंक एक नई पिंक-पिंक सी दुनिया की ओर खींचती है वो एक नई हकीकत बनाना चाहती है जो हर मुद्दे पर स्त्री पुरुष बराबरी की नींव पर टिकी हो. बेहतरीन गाने, बेहतरीन संवाद जो आपको झकझोर कर रख देंगे.

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हर माता पिता को यह फिल्म देखनी चाहिए और अपने बेटों को दिखानी चाहिए ताकि आपका बेटा ऐसी सोच ना रखे और बेहतर इंसान बने. मेरा विशेष आग्रह है मेरे भाई, मेरे पिता, मेरे सब रिश्तेदार, मेरे पुरुष दोस्त, मेरे कुलीग और हर घर के सब पुरुष ये फिल्म जरूर देखें. ये फिल्म देखकर सोचें, विचारों को अमल में लाएं. अमिताभ बच्चन की तरह अपने घर से खुले विचारों की शुरुआत करें. ताकि हर औरत से उसके जीवन में आया हर पुरुष कहे 'उठ मेरी जान मेरे साथ चलना है तुझे.' फिल्म पिंक देखकर मैं कह सकती हूं यस अनादर वर्ल्ड इज़ पॉसिबल. मेरी तरफ से फिल्म को पांच स्टार.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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