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बिग बॉस अब बर्दाश्त के बाहर हो गया है बॉस

    • नरेंद्र सैनी
    • Updated: 28 नवम्बर, 2015 01:51 PM
  • 28 नवम्बर, 2015 01:51 PM
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इस बार का बिग बॉस देखकर घर के सदस्यों की शो के प्रति बेवफाई और गंदी हरकतें देखकर गालिब की यह पंक्तियां दिमाग में गूंजने लगी हैं, 'शर्म तुम को मगर नहीं आती...'

बिग बॉस हमेशा ही कई वजह से विवादों में रहा है. लगता है कि इस बार बिग बॉस के कास्टिंग डायरेक्टर सही लोगों का चयन करने से चूक गए हैं और ऐसे लोगों को ले आए हैं जिन्हें भीड़ का हिस्सा बनने में मजा आता है और शायद वे अपनी असल जिदंगी में भी इतने ही बोर हैं. इस बार का बिग बॉस अपनी गंदी बातों की वजह से ज्यादा नाकाबिले बर्दाश्त हो गया हैः

थूककर खिलाना
खाने में थूकना गलत नहीं है, अगर यह गेम में हो तो फिर कहने ही क्या. जिसकी मिसाल किश्वर से अच्छी कोई नहीं पेश कर सकता था. सलमान खान ने हालांकि उनकी खबर ली, लेकिन इस बात ने शो की टीआरपी को औंधे मुंह गिराने का काम किया.

पैंट में सू सू
अगर टास्क चल रहा हो तो चुनौती का सामना करने के लिए पैंट में सू सू किया जा सकता है. और फिर टॉर्चर करने के लिए सू सू से खेला जा सकता है, और एक-दूसरे पर फेंका भी जा सकता है. यह कोई गंदी बात नहीं. किश्वर और प्रिया सू सू से खूब खेलीं. अब इसे क्या कहेंगे.

जबरदस्ती का सौदा
थोड़ा आगे बढ़ें तो जब घर के सदस्यों की दिलचस्पी ही खेल में नहीं होगी तो फिर दर्शकों को सिरदर्द थोड़े ही हो रहा है कि वे किन्हीं की निजी विलाप को सुनते रहें. रिमी सेन शो में ऐसा दिखा रही हैं जैसे वे दर्शकों पर एहसान कर रही हैं, और उन्हें वोट देने वाले लोग उन्हें शो में रखकर खुद अपने आप पर एहसान कर रहे हैं. फिर दिगंगना को ही लें. अगर शो में आने से पहले उन्हें यह नहीं पता था कि वे सिर्फ 18 साल की हैं तो वे शो में आई ही क्यों. अब वे यहां आकर नन्हीं-सी बच्ची बन गई हैं, और अपने बड़ों के साये में छिप-छिपाकर जीवन जी रही हैं तो वहीं किश्वर की छत्रछाया में सुयश, रिषभ और प्रिंस भी खूब फल-फूल रहे हैं.

भाषा का मजाक
अंग्रेजी का जमकर इस्तेमाल हो रहा है. घर के सभी सदस्य हिंदी का कम और अंग्रेजी का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. हिंदी भी ऐसी कि सिर दर्द करवा दे. यानी एंटरटेनमेंट वैल्यू शून्य हो जाती है और उनकी अजीबोगरीब भाषा...

बिग बॉस हमेशा ही कई वजह से विवादों में रहा है. लगता है कि इस बार बिग बॉस के कास्टिंग डायरेक्टर सही लोगों का चयन करने से चूक गए हैं और ऐसे लोगों को ले आए हैं जिन्हें भीड़ का हिस्सा बनने में मजा आता है और शायद वे अपनी असल जिदंगी में भी इतने ही बोर हैं. इस बार का बिग बॉस अपनी गंदी बातों की वजह से ज्यादा नाकाबिले बर्दाश्त हो गया हैः

थूककर खिलाना
खाने में थूकना गलत नहीं है, अगर यह गेम में हो तो फिर कहने ही क्या. जिसकी मिसाल किश्वर से अच्छी कोई नहीं पेश कर सकता था. सलमान खान ने हालांकि उनकी खबर ली, लेकिन इस बात ने शो की टीआरपी को औंधे मुंह गिराने का काम किया.

पैंट में सू सू
अगर टास्क चल रहा हो तो चुनौती का सामना करने के लिए पैंट में सू सू किया जा सकता है. और फिर टॉर्चर करने के लिए सू सू से खेला जा सकता है, और एक-दूसरे पर फेंका भी जा सकता है. यह कोई गंदी बात नहीं. किश्वर और प्रिया सू सू से खूब खेलीं. अब इसे क्या कहेंगे.

जबरदस्ती का सौदा
थोड़ा आगे बढ़ें तो जब घर के सदस्यों की दिलचस्पी ही खेल में नहीं होगी तो फिर दर्शकों को सिरदर्द थोड़े ही हो रहा है कि वे किन्हीं की निजी विलाप को सुनते रहें. रिमी सेन शो में ऐसा दिखा रही हैं जैसे वे दर्शकों पर एहसान कर रही हैं, और उन्हें वोट देने वाले लोग उन्हें शो में रखकर खुद अपने आप पर एहसान कर रहे हैं. फिर दिगंगना को ही लें. अगर शो में आने से पहले उन्हें यह नहीं पता था कि वे सिर्फ 18 साल की हैं तो वे शो में आई ही क्यों. अब वे यहां आकर नन्हीं-सी बच्ची बन गई हैं, और अपने बड़ों के साये में छिप-छिपाकर जीवन जी रही हैं तो वहीं किश्वर की छत्रछाया में सुयश, रिषभ और प्रिंस भी खूब फल-फूल रहे हैं.

भाषा का मजाक
अंग्रेजी का जमकर इस्तेमाल हो रहा है. घर के सभी सदस्य हिंदी का कम और अंग्रेजी का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. हिंदी भी ऐसी कि सिर दर्द करवा दे. यानी एंटरटेनमेंट वैल्यू शून्य हो जाती है और उनकी अजीबोगरीब भाषा सुनकर हाथ अपने आप से चैनल बदलने पर मजबूर हो जाते हैं.

बोरियत की दुकान
घर का कोई भी ऐसा सदस्य नहीं है, जिसमें ऐसा गुण हो कि वह दर्शकों को बांध सके. कोई आत्ममोह का शिकार है (प्रिंस, रिषभ), कोई जानता है कि लड़कर ही गुजारा हो सकता है (मंदाना), सीखा-सिखाया खिलाड़ी (प्रिया), ये कहां आ गए हम (दिगंगगना और रिमी) और पेड हनीमून (किशवर-सुयश) पर आया हुआ है.

इस बार का बिग बॉस देखकर घर के सदस्यों की शो के प्रति बेवफाई और गंदी हरकतें देखकर गालिब की यह पंक्तियां दिमाग में गूंजने लगी हैं, 'शर्म तुम को मगर नहीं आती...'

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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