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Updated: 05 अप्रिल, 2017 10:03 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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अगर मां-बाप और बच्चे एक ही बिस्तर पर सोएं, तो इसमें अजीब क्या है. जाहिर है कुछ भी नहीं, लेकिन यकीन कीजिए विदेशों में इसपर बवाल हो जाता है.

हमारे देश में तो माएं जब तक बच्चों को सीने से लगाकर सुला न दें, तब तक उनका मातृत्व अधूरा लगता है. ये हमारी संस्कृति का ही हिस्सा रहा है कि पूरा परिवार एक ही छत के नीचे होता है.   

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अब बात विदेश की. हाल ही में एक व्यक्ति ने फेसबुक पर अपनी पत्नी और बच्चों की तस्वीर शेयर की, जो एक ही बिस्तर पर सो रहे थे. इसे 'co-sleeping' कहा जाता है. हमारे लिए ये बहुत सामान्य तस्वीर है क्योंकि यहां तो ऐसा ही होता है, लेकिन इस तस्वीर ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी.

यूकॉन, ओकला के डेविड ब्रिंकले ने तस्वीर के साथ कुछ भावुक कर देने वाले शब्द भी लिखे, उन्होंने लिखा- 'एक पुरुष होने के नाते मैं कुछ चीजें साफ कर देना चाहता हूं. मैं ऐसी किसी भी चीज से नफरत नहीं करता जो मेरी पत्नी को एक मां बनाते हैं. मैं हमेशा उस चीज का सम्मान करुंगा जो वो मेरे बच्चों के लिए करती हैं. कभी कभी मैं बिस्तर के एक छोटे से कोने में सिमट जाता हूं, लेकिन वो मेरे बच्चों को थामे हुए कितनी खूबसूरत लगती है. उन्हें प्यार और सुरक्षा का अहसास कराती है.'

लेकिन 'co-sleeping' के आइडिए से बहुत से लोग सहमत नहीं थे. लोगों ने इसका विरोध किया. किसी ने कहा कि 'ये बच्चे के लिए खतरनाक है'. 'बच्चों को अकेला सोना चाहिए', 'बच्चों को पालने में सुलाना चाहिए'. जबकि कुछ लोगों का कहना था कि हजारों सालों से ये होता आया है, बच्चे माता-पिता के साथ रहें तो उन्हें अच्छी नींद आती है.

बहरहाल  'co-sleeping' पेरेंटिंग का एक विवादित विषय रहा है और इसपर एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय भी है. पर अमेरिका में पेरेंट्स कंज्यूमर प्रोडक्ट सेफ्टी कमिशन और अमेरिकन एकैडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स (AAP) की सलाह ही मानते हैं. दोनों ही बच्चों को अपने साथ एक ही बिस्तर पर सुलाने के खिलाफ हैं, क्योंकि इससे दम घुटने जैसी दुर्घटना होने की संभावना होती है और बच्चे की अचानक मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है.

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एक रिपोर्ट के मुकाबिक अमेरिका में हर साल करीब 3500 बच्चे रात को सोने के दौरान हुई परेशानी की वजह से मारे जाते हैं.  AAP के अनुसार वहां बच्चों को एक कमरे में तो सुलाया जा सकते है लेकिन एक बिस्तर पर नहीं. और साथ ही साथ ये सलाह भी दी जाती है कि बच्चे के साथ तकिए और कंबल भी न रखे जाएं, इससे दम घुटने की संभावना बढ़ती है.

वहीं एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर और Mother-Baby Behavioral Sleep Laboratory के डायरेक्टर डॉ. जेम्स जे.मैक्केना पिछले 30 सालों से  'co-sleeping' के पक्ष में काम कर रहे हैं. उनका कहना है - 'ये बायोलॉजी है. बच्चा जब मां को छूता है, उसे सुनता है, मां की खुशबू सूंघता है, तो बच्चे के शरीर का तापमान, धड़कन, हारमोन लेवल उस एक स्पर्श से जुड़े होते हैं. और वो साथ सोएं तो उनमें जुड़ाव बढ़ता है'

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ये तो रही अमेरिका की बात, लेकिन नॉर्वे का कानून तो होश उड़ाने वाला है. 2011 में नॉर्वे में एक भारतीय दंपत्ति के दो बच्चों को माता-पिता से अलग कर दिया गया था, क्योंकि वो उन्हें अपने हाथों से खाना खिला रहे थे और अपने साथ एक ही बिस्तर पर सुला रहे थे. नॉर्वे से समाज सेवकों के माता-पिता का ये व्यवहार उचित नहीं लगा, ये कानून के खिलाफ था. तो उन्होंने दंपत्ति के 3 साल के बेटे और 1 साल की बेटी को उनसे अलग कर दिया. उनसे कहा गया कि दोनों बच्चों के 18 साल के होने तक वो उनसे साल में केवल दो बार ही मिल सकते हैं, वो भी एक घंटे के लिए. नॉर्वे से जुड़े हुए ऐसे कितने ही मामले हैं जो बच्चों की सुरक्षा को लेकर पेरेंट्स पर जुल्म ढ़ाते आए हैं.

वहीं 'co-sleeping' पूर्वी देशों में परवरिश का एक स्वाभाविक हिस्सा रहा है. भारत और चीन में बच्चे माता-पिता के साथ ही सोते हैं. जबकि पश्चिमी देशों में इसे खतरनाक कहा जाता है.

तो आपको किसकी बात माननी है ये आपकी अपनी समझ है. और वैसे भी अपने बच्चों को लेकर भला कौन लापरवाह होता है. वो कीजिए जिसमें आपको और बच्चों दोनों को रात को चैन और दिन में सुकून मिले.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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