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Updated: 13 जून, 2017 10:00 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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टेक्नोलॉजी से जुड़े रहने के कारण मेरे डेस्कटॉप पर एक साथ कई सारे टैब्स खुले रहते हैं, जिनमें गूगल न्यूज अवश्य होता है. जहां मैं दिन भर में होने वाली घटनाओं से अपडेट रहता हूं. बात आज सुबह की है. मैं यूं ही गूगल न्यूज़ पर ख़बरें ब्राउज कर रहा था कि अचानक मेरी नजर एक बड़ी ही अजीब ओ गरीब खबर पर पड़ी, जिसको पढ़कर मुझे हंसी भी आई और अचरज भी हुआ.

खबर सुदूर ट्यूनीशिया की थी, जहां लोगों की एक बड़ी संख्या ने जबरन रोजा रखवाए जाने पर सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किया है. लोगों का कहना है कि ये प्रदर्शन इस बात का प्रतीक है कि हम रमजान में भी बिन रोजा रखे, जैसे चाहें खा सकते हैं और यदि सरकार हमें इसके लिए दोषी माने तो ये हमारे मूल अधिकारों का हनन है.

सरकार के खिलाफ हुए इस प्रदर्शन में लोगों ने अपनी बात रखते हुए तर्क दिया है कि रोजा व्यक्ति और उसके ईश्वर के बीच की बात है और ये कहीं नहीं कहा गया है कि व्यक्ति पर इसे जबरन थोपा जाए. लोगों ने ये भी कहा है कि रोजा ऐच्छिक हो और जो व्यक्ति रोजा न रखना चाहे उसे रमजान के महीने में खाने-पीने की पूरी छूट मिले.

ट्यूनीशिया, रमजान, विरोध, रोजा  ट्यूनीशिया में मूल भूत अधिकारों के लिए सड़क में उतरे लोग

ज्ञात हो कि 99% मुस्लिम आबादी वाले देश ट्यूनीशिया में लोग अपनी सरकार से खासे खफा हैं क्योंकि वो चाह रही है कि लोग सिर्फ इसलिए रोजा रखें क्योंकि इस्लाम के अंतर्गत इस महीने में रोजा रखने को कहा गया है.  बताया जा रहा है कि ताजा हालात में सरकार द्वारा कई ऐसे लोगों को हिरासत में लिया गया है जिन्होंने रोजा नहीं रखा था और वो सार्वजनिक रूप में जल पान कर रहे थे.

अब उपरोक्त खबर को मैं अपने सन्दर्भ में रख के विचार करता हूं तो मिलता है कि मैं  इस मामले में बहुत भाग्यशाली हूं. ऐसा कई बार हुआ है कि एक मुसलमान होने के बावजूद मुझे अपने धर्म की अपेक्षा अपनी नागरिकता बताने में ज्यादा गर्व हुआ है.

घर परिवार से लेकर मेरे वर्क प्लेस तक कभी ये चिंतन या परेशानी का विषय नहीं रहा कि आखिर मैं रोजा क्यों नहीं हूँ. दफ्तर में भी, रोजा न होने की स्थिति में मेरे कुछ खाने पीने से मेरे किसी अन्य रोजेदार साथी को न आज तक परेशानी हुई है न मेरी सरकार को. मैं अपने देश में रमजान में भी उतना ही सहज महसूस करता हूं जितना मैं आम दिनों में रहता हूँ.

ट्यूनीशिया और तमाम मिडिल ईस्ट में रमजान के नाम पर जो हो रहा है वो सरासर गलत है. किसी भी देश की सरकार को ये अधिकार बिल्कुल भी नहीं है कि वो धर्म के नाम पर अपनी जनता के मूल भूत अधिकारों का हनन करे और उन्हें कुछ ऐसा करने पर मजबूर करे जो समाज के अलावा धर्म की दृष्टि से भी सरासर गलत हो. अंत में हम अपनी बात समाप्त करते हुए बस इतना ही कहेंगे कि धर्म एक बेहद व्यक्तिगत विषय है और चाहे वो किसी देश की सरकार हो या कोई और किसी को भी उसमें दखलंदाजी करने का बिल्कुल भी अधिकार नहीं है. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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