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Updated: 13 जून, 2017 10:54 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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मैं अपने इस छोटे से जीवन में कई ऐसी लड़कियों से मिल चुका हूँ जो मॉडर्न होते हुए भी संस्कारी हैं. भले ही इनके कपड़े मॉडर्न हों मगर इन्होंने कभी अपने कल्चर, संस्कार और परवरिश के साथ समझौता नहीं किया. ये जींस में भी सुन्दर लगती हैं और सूट भी इनकी सुन्दरता में चार चंद लगा देता है. जितनी आस्था और श्रद्धा से ये मंदिर और दरगाहों में पूजा अर्चना के लिए जाती हैं उतनी ही गर्मजोशी से ये दोस्तों संग मूवी देखने और शॉपिंग के लिए मॉल का रुख करती हैं.

मॉल में शॉपिंग से लेकर मल्टीप्लेक्स में मूवी देखने तक इनके संस्कार कहीं से भी प्रभावित नहीं होते. ये चाहे जींस में हों या सूट में, मॉल में हों या मल्टीप्लेक्स में, ये अपने बड़ों का सम्मान जितना पहले करती थीं उतना ही तब करती हैं. इतनी बातों तक आते - आते आपको कहीं से ये नहीं लगा होगा कि ये असंस्कारी हैं और इनसे शादी करने से किसी पुरुष का जीवन बर्बाद हो सकता है.

लेकिन उपरोक्त बातों को बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सन्दर्भ में देखें तो मिलता है कि जो लड़कियां मॉल में शॉपिंग करती हैं या फिर दोस्तों संग सिनेमा देखने जाती हैं वो 'असंस्कारी' होती हैं और ऐसी लड़कियां बहू बनाने के योग्य नहीं हैं. राबड़ी देवी, बिहार, बहु, बेटे, संस्कारी  राबड़ी ने कहा जो लड़कियां मॉल जाती हैं वो संस्कारी नहीं है

किसी भी समझदार व्यक्ति के लिए इन बातों को पढ़कर क्रोधित होना लाजमी है. मगर ये सत्य है और जिसकी सूत्रधार खुद बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी हैं. बात कुछ यूं है कि अभी कुछ दिन पूर्व आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का जन्मदिन था. जब इस अवसर पर पत्रकारों द्वारा उनसे सवाल पूछा गया कि कब वो अपने दोनों बेटों की शादी कर रही हैं तो इस प्रश्न पर राबड़ी का जवाब चौकाने वाला था.

एक निजी अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसार उन्हें 'अच्छे संस्कार वाली' बहू चाहिए. राबड़ी देवी ने खास तौर पर अपने बड़े बेटे लिए 'संस्कारी' बहू खोजने की बात कही क्योंकि 'वो काफी धार्मिक है.' अपने पति के जन्मदिन समारोह पर राबड़ी ने कहा है कि उन्हें 'अपने बेटों के लिए सिनेमा हॉल और मॉल जाने वाली' बहू नहीं चाहिए. राबड़ी अपने बेटे के लिए एक ऐसी बहू चाहती हैं जो 'संस्कारी हो बड़े बुजुर्गों की इज्जत करने वाली, घर चलाने वाली हो.' कुल मिलाके राबड़ी को एक ऐसी बहू की तलाश हैं जो चाल चलन में बिल्कुल उनकी तरह हो.

तो क्या जो लड़कियां अपनी मर्ज़ी से जीवन जीती हैं वो संस्कारी नहीं हैं

ये अपने आप में एक बड़ा ही पेचीदा प्रश्न है. राबड़ी ने जिस तरह अपने बयान से उन लड़कियों के चरित्र पर अंगुली उठा दी है जो अपनी मर्जी से अपना जीवन जीते हुए अपने संस्कारों का निर्वाह कर रही हैं वो हमारे समाज की एक बेहद गंभीर समस्या की तरफ इशारा कर रहा है. ये बयान साफ तौर से इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि आज भी हम कहीं न कहीं रुढ़िवादी मानसिकता के शिकार हैं. एक महिला होकर महिलाओं के चरित्र पर राबड़ी का इस तरह संदेह करना ये भी दर्शाता है कि आज भी महिलाओं के चरित्र का मानक उनका संस्कार नहीं बल्कि उनका व्यक्तित्त्व है.

तो क्या मीसा संस्कारी नहीं हैं

हालांकि किसी महिला के चरित्र पर अंगुली उठाने का अधिकार किसी को नहीं है मगर जिस तरह राबड़ी का बयान आया है उसके बाद कुछ प्रश्नों का उठाना लाजमी है. जैस कि 'राबड़ी स्वयं अपनी बेटी को कहां देखती हैं' 'क्या अपनी मां की नजरों में मीसा संस्कारी हैं या नहीं' 'क्या कपड़े और सिनेमा जाना या न जाना ही संस्कारी होने का मानक है' गौरतलब है कि राबड़ी की पुत्री मीसा जहां एक तरफ कुशल गृहणी हैं तो वहीं वो एक राजनेता भी हैं और एक राजनेता के लिए ये बेहद जरूरी है कि वो सोशल रहे और हर जगह अपनी उपास्थिति दर्ज कराता रहे. जिस तरह राबड़ी ने 'संस्कारी' शब्द को परिभाषित किया है वो अवश्य ही मीसा के माथे पर चिंता के बल डालेगा.

अंत में हम बस इतना कहते हुए अपनी बात समाप्त करेंगे कि किसी महिला का चरित्रवान होना एक अलग बात है और उसका मॉडर्न होकर मॉल में शॉपिंग करने और मूवी देखने जाना एक अलग बात है. यदि कोई सिर्फ इसलिए किसी के चरित्र पर अंगुली उठा रहा है कि वो सिनेमा देखता हो, मॉल में शॉपिंग करता हो, या फिर छोटे कपड़े पहनता हो तो ये और कुछ नहीं बस व्यक्ति की कुंठित मानसिकता और रुढ़िवादी सोच है.

साथ ही हम ये भी कहेंगे कि एक बेहतर समाज का निर्माण तब ही हो पायगा जब व्यक्ति चाहे वो कोई भी हो, इन बिन्दुओं से ऊपर उठे और सोचे.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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