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Updated: 05 फरवरी, 2017 04:05 PM
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- क्या हो रहा है?

- 'कुछ नहीं बोर हो रही हूं',

- ठीक है चलो कहीं बाहर चलते हैं... डिनर करके आते हैं.

- 'ठीक है 1 घंटे में मिलते हैं.'

इस वॉट्सएप चैट के बाद जो हुआ वो पीजी में रहने वाली एक लड़की के लिए एक भयानक सपने को जीने जैसा था. नोएडा सेक्टर 18 में अपने दोस्तों के साथ सिर्फ डिनर करने गई वो लड़की मॉलेस्टेशन का शिकार हो गई. रात के कुछ 10.00 बजे होंगे जब वापस आते समय उसके साथ वो हादसा हुआ. उसके दोस्तों को भी पीटा गया, ना ही पेपर (pepper) स्प्रे काम आया ना दोस्तों का साथ. कुछ लोग गाड़ी में आए, पैदल जा रहे उस लड़की और उसके दोस्तों को पकड़ा, घेरा और पीटा गया.

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लड़की को आपत्तीजनक तरीके से छुआ, उसे नोचा गया और उठाने की कोशिश की गई. उस समय लड़की की मानकसिक स्थिती क्या रही होगी इसकी कल्पना करने की कोशिश करना भी बेकार है. डर और दहशत के बीच उसकी चीख किसी ने सुन ली. मेट्रो स्टेशन पास होने के कारण वहां भीड़ थी. कई लोग उस आवाज की तरफ भागे. इससे पहले कि लड़की उठा ली जाती वहां लोग पहुंच गए और किसी तरह एक बड़ा हादसा होने से टल गया. हमलावर तो भाग गए, लेकिन लड़की और उसके दोस्तों को चोट आई. शरीर पर लगी चोट तो आसानी से भर जाएगी, लेकिन इस हादसे का जो जख्म उसके मन में लगा है उसका क्या?

लड़की अपनी जिंदगी के वो खौफनाक 5 मिनट शायद कभी भूल नहीं पाएगी. रोते बिलखती उस लड़की को दिलासा दिया जा रहा था. वो सकते में थी. कोशिश की जा रही थी कि वो इस सदमे से बाहर आए, लेकिन हर कोशिश बेकार जा रही थी. उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी. मन में कोफ्त हो रही थी. इतनी आसानी से इसलिए आपको इस बारे में बता पा रही हूं क्योंकि उसे दिलासा देने वालों की लिस्ट में एक नाम मेरा भी था.

कहना आसान है कि भूल जाओ, लेकिन एक लड़की होने के नाते मैं ये जानती हूं कि भूला नहीं जा सकता. आए दिन छोटी या बड़ी हरकतों के कारण डर हमेशा बना रहता है. ऑफिस जाना, मार्केट जाना, पार्टी में जाना, सुबह वॉक पर जाना या फिर मंदिर जाना भी कई बार हानिकारक हो जाता है. कोई एक घटना इतना असर कर जाती है कि मन में कई दिनों तक या सालों तक उस एक हादसे की याद बाकी रहती है और जिंदगी बोझिल सी लगने लगती है. लेकिन अगर इसी सदमें में रहेंगे तो जिंदगी कैसे जी पाएंगे? सर्वाइवर कहलाना आसान है लेकिन सर्वाइव करना मुश्किल. तो क्या करें जिससे सर्वाइव करने में आसानी हो?

- मेरे साथ ऐसा कैसे हो सकता है?

सबसे पहले तो अपने सवाल को बदलिए. अगर आपके साथ कोई हादसा हो गया है तो ये सवाल बेतुका है और इससे सिर्फ आपको तकलीफ ही होगी. ये वो समय होता है जब ये घटना कई दिनों या हफ्तों तक जहन में ताजा रहती है. बार-बार निराशा होती है. ये वो समय होता है जब मूड स्विंग, गुस्सा, दुख, शर्म सब सामने होते हैं. खाना, पीना, सोना सब पर असर पड़ता है और उस समय लगता है कि कभी इस तरह के सदमे से बहर नहीं आ पाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं है. उस समय भले ही इमोशन दबाना मुश्किल हो, लेकिन ये जल्द बीत जाएगा. इसका सबसे अच्छा तरीका है दौड़ना. यकीन मानिए इससे राहत मिलती है.

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- आखिर ये मेरे साथ क्यों हुआ?

सवाल थोड़ा अजीब है, लेकिन हर लड़की कहीं ना कहीं ये सोचती जरूर है. आखिर उसकी क्या गलती थी. क्या बाहर जाना गलती थी? तो फिर जिन लड़कियों के साथ घर में ऐसा हरकत होती है उनका क्या? ये सवाल अपने दिमाग से निकाल दीजिए. आपकी कोई गलती नहीं थी. खुद को जितना दोष दिया जाएगा उतना ही इस ट्रॉमा से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा. अगर आपको खुद पर भरोसा नहीं रहेगा तो दुनिया का क्या है वो तो वैसे भी आपको ही दोष देगी.

- क्या चुप रहने में ही भलाई है?

इसका जवाब है ना. मैं ये नहीं कह रही की इसके बारे में सोशल मीडिया में अपडेट कर दिया जाए, लेकिन अपने किसी करीबी दोस्त को जरूर बताएं. दोस्त इसलिए क्योंकि कई बार परिवार वालों से शेयर नहीं किया जा सकता है. अगर आप बोलेंगी नहीं तो वो हादसा भुलाना मुश्किल हो जाएगा. शेयर करने से आप कमजोर नहीं होंगी बल्कि और मजबूत बनेंगी. हां ये जरूर ध्यान रखना होगा कि कहीं जिसे बताया जा रहा है वो सच में आपके सपोर्ट में है या नहीं.

- घर में बंद होकर रहूं?

नहीं बिलकुल नहीं, घर में बंद होकर रहने से समस्या हल नहीं होगी और ज्यादा बढ़ेगी. वो लोग जो ऐसा सोचते हैं कि लड़कियों को घर में रहना चाहिए खुद कभी इस बंदिश का शिकार नहीं हुए हैं. घर से बाहर निकलिए. अपनी सावधानी बरतना सही है, लेकिन उसके लिए खुद को घर में कैद कर लेना भी जरूरी नहीं है. रास्ते में चलते समय थोड़ा सावधानी रखिए, नोटिस करिए की कहीं कोई पीछा तो नहीं कर रहा, बेफिक्र होकर घूमना, कुछ भी पहनना सही है, लेकिन जगह का विशेष ध्यान रखना भी जरूरी है.

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- डॉक्टर के पास जाना चाहिए?

अगर ऐसी किसी भी वारदात की वजह से आप सदमे में हैं या फिर फिजिकली कोई चोट लगी है तो हां बिलकुल डॉक्टर के पास जाना चाहिए. कई बार मनोवैज्ञानिक भी इस मुश्किल दौर में मदद कर सकता है. इसलिए घबराएं नहीं.

कानूनी तौर पर ऐसे ले सकती हैं मदद-

- जीरो एफआईआर आपका हक है. किसी भी पुलिस स्टेशन में जाकर आप छेड़खानी या रेप की शिकायत कर सकती हैं. शिकायत दर्ज करवाने से कोई पुलिस वाला मना नहीं कर सकता.

- सेक्शन 164 के तहत रेप मामले में एक महिला अपना स्टेटमेंट मैजिस्ट्रेट के सामने अकेले में रिकॉर्ड कर सकती है. इसके अलावा वह किसी लेडी कॉन्सटेबल या पुलिस ऑफिसर के सामने भी स्टेटमेंट रिकॉर्ड कर सकती है.

- अगर पुलिस स्टेशन जाने में परेशानी है तो ईमेल या चिट्ठी के जरिए भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है.

- ऑनलाइन एफआईआर का भी नियम इसमें लागू होता है.

- हर ऑफिस में सेक्शुअल हैरेस्मेंट कमेटी होती है. ऐसी किसी भी घटना की शिकायत HR से की जा सकती है. कोर्ट के ऑर्डर के तहत इसपर एक्शन जरूर लिया जाएगा.

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