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Updated: 04 फरवरी, 2017 06:51 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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कुछ तस्वीरें अक्सर भावुक कर देती हैं. एक साल पहले भी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. एक बेहद कमजोर और भूखा अफ्रीकी बच्चा, जिसे एक महिला बोतल से पानी पिला रही थी. तस्‍वीर एकदम साफ थी, लेकिन पिछले साल एक अफ्रीकी बच्चे की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. ठीक एक साल बाद वही बच्चा फिर चर्चा में हैं. लेकिन कारण बहुत सुकून देने वाला है बच्‍चे की कहानी हैरान करने वाली थी.  

1_020417060041.jpgएक साल पहले ये तस्वीर वायरल हो गई थी

तस्वीर नाइजीरिया की थी, दो साल के इस छोटे से बच्चे को पिशाच मानकर इसके घरवालों ने त्याग दिया था. उसकी बेबस हालत को देखकर एन्जा रिगरिन लॉवेन ने न सिर्फ उसे पानी पिलाया बल्कि उसे अपनी जिंदगी में शामिल भी कर लिया. एन्जा African Children’s Aid Education and Development Foundation, नाम से एक एनजीओ चलाती हैं. ये एनजीओ अफ्रीका के उन बच्चों को सहारा देता है जो अकेले हैं, या जिन्हें छोड़ दिया गया है और जिन्हें प्रताड़ित किया जाता है.

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इस तस्वीर में महसूस करने के लिए बहुत कुछ था पर सबसे बड़ी चीज थी मानवता, जिसने न जाने कितनों को प्रेरित किया. एन्जा को इस तस्वीर की बदौलत पूरी दुनिया में पहचान मिली, वहीं उन्हें 2016 के सबसे ज्यादा प्रभावशाली व्यक्ति होने का सम्मान भी दिया गया. एन्जा ने इस छोटे बच्चे का नाम 'hope' यानी उम्मीद रखा.

hope2650_020417060309.jpgहोप की हालत इतनी खराब थी कि अस्पताल में कई दिन उसका इलाज चला, और अब इस बच्चे की रंगत ही बदल गई है

एन्जा ने इस वाकये के ठीक एक साल बाद इस तस्वीर को फिर से रीक्रिएट किया. दोनों किरदार वही हैं, लेकिन वक्त बदल चुका है. ये दूसरी तस्वीर पहली तस्वीर से भी ज्यादा शक्तिशाली और भावुक करने वाली है. वो लाचार सा बच्चा ठीक एक साल बाद स्कूल जा रहा था. एन्जा ने उसी तरह बैठकर होप को पानी पिलाया और उस दिन को याद किया जब वो पहली बार मिला था.

humanity650_020417060537.jpgफर्क बेबसी और उम्मीद का...

इन दोनों तस्वीर के बीच सिर्फ एक साल का अंतर है, लेकिन फर्क जमीन और आसमान का, फर्क बेबसी और उम्मीद का, फर्क घृणा और प्रेम का.

न जाने कितने ही सवालों को जन्म देती और कितने ही सवालों के उत्तर देती है ये तस्वीर. सवाल ये कि इंसानियत हर जगह क्यों नहीं दिखती? क्यों एन्जा को ही इस बच्चे में उम्मीद दिखाई दी.. सबको क्यों नहीं दिखती. क्यों एक नौकरानी पर फैशन डिज़ाइनर की निगाह पड़ती है, और वो उसे फोटोशूट के लिए चुन लेता है, हर किसी के पास ऐसी नजर क्यों नहीं होती? क्यों पाकिस्तान की मुख्तारन माई की तरह बाकी बलात्कार पीड़िताओं को फैशन वीक का रैंप नहीं मिलता? क्यों डायन करार देकर प्रताड़ित की गई महिलाओं को कोई हाथ नहीं मिलता?

हम सबके अंदर ही इन सवालों के जवाब छिपे हैं, हम भी इंसान हैं लेकिन अपने अंदर की इंसानियत पहचान नहीं पाते, हम सब में वो बात है कि एक जिंदगी में उम्मीद जगा सकें... पर ये हम ही हैं जो किसी भूखे, बेसहारा, लाचार, गरीब और गंदे व्यक्ति को देखकर बच के निकल जाते हैं.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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