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Updated: 01 दिसम्बर, 2016 05:26 PM
राठौर विचित्रमणि सिंह
राठौर विचित्रमणि सिंह
  @bichitramani.rathor
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बस 100 पन्ने पढ़ने में ही कई बार भावुकता आंखों से टपकी, गुस्सा धमनियों में उबला और आक्रोश चेहरे पर तमतमाया. जब समाज बराबरी के सिद्धांत को भुला देता है, जब मर्दों वाली बात किसी महिला की ना को सुनने की मर्यादा खो देती है तब कायरों का सबसे बड़ा हथियार एसिड होता है और उसका शिकार बनती हैं महिलाएं. पत्रकार प्रतिभा ज्योति की किताब 'एसिड वाली लड़की' आपकी मुठभेड़ समाज के बिगड़ैल चरित्र और एसिड की शिकार लड़कियों-महिलाओं से कराती है. 

इस पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर 8 तस्वीरें हैं. दिखती थोड़ी सी, लेकिन समाज की कुरूपता को पूरी तरह दिखाती हुईं. ये तस्वीरें उन लड़कियों की हैं, जिनके चेहरे की मुस्कान एसिड की ताप में मुरझा गई और खुली आंखों वाले सपने पुरुष अहंकार के पैरों तक कुचल दिए गए. ये कहानी उन 8 लड़कियों की है, जिनमें से किसी की खूबसूरती, किसी का अपने काम के लिए जुनून, किसी की मासूमियत तो किसी का दलित-दमित होना ही अभिशाप बन गया.

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समाज के बिगड़ैल चरित्र से परिचय

इस पुस्तक में कहीं नहीं लिखा है कि 21वीं सदी में हमारे होने का मतलब क्या है. इस पुस्तक में ये भी नहीं लिखा है कि परमाणु शक्ति संपन्न होने के हमारे अभिमान का मतलब क्या है. इस पुस्तक में तो ये बिल्कुल नहीं लिखा है कि अब अमेरिका जैसा देश हमको अपना बराबरी का दोस्त मानता है. लेकिन ये पुस्तक बताती है कि हम संवेदना के न्यूनतम स्तर पर भी नहीं हैं, कि हम सभ्य समाज होने के पहले चरण पर भी नहीं पहुंचे हैं, कि हम खोखली व्यवस्था का जीता जागता सबूत हैं.

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नहीं तो अपने कॉलेज की एनसीसी कैप्टन 18 साल की सोनाली मुखर्जी के चेहरे पर एसिड क्यों फेंका जाता? एक मामूली से क्लर्क की बेटी प्रीति राठी तो दिल्ली से मुंबई अपनी जिंदगी में नई उड़ान के लिए निकली थी, पहली नौकरी के लिए. लेकिन उसकी तरक्की को क्यों किसी पुरुष ने अपनी नाकामी का तेजाब बना लिया? बनारस की प्रज्ञा सिंह के घरवालों ने किसी लड़के को ना कहा था लेकिन इकतरफा प्यार करने वाले सिरफिरे ने प्रज्ञा के सपनों को क्यों तेजाब में जला दिया? 20 साल बड़ा मामा रेशम को अपना बेगम बनाना चाहता था. 18 साल की रेशम नहीं मानी तो उसके रेशमी चेहरे पर तेजाब फेंक दिया. उसे क्यों नहीं इस समाज और कानून से डर लगा? अनु मुखर्जी तो बचपन में अनाथ हो गई थी. अपना और छोटे भाई का पेट पालने के लिए डांस बार में काम करती थी. उसकी अदाओं से क्यों किसी का दिल जला और उसने अनु के चेहरे को तेजाब से जला दिया?

और आजादी के 70 साल बाद भी किसी दलित की बेटी को क्यों हमारे तथाकथित सभ्य समाज की मानसिकता अपनी जागीर समझती है और उसके ना कहने पर तेजाब का हंटर उसके चेहरे पर चलाती है? और तो और, जब अपना सगा बाप भी तेजाब का हमसाया बन जाए तो...इस तो का जवाब कौन दे सकता है? चाहे लखनऊ की कविता हो या पहाड़ की कविता विष्ट, इनके पिता ही तेजाब फेंकने वाले से मिल गए. सिर्फ पैसे के लिए. तब ये बेटियां अपना तेजाबी दर्द लेकर कहां जाएं?

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जिसके शरीर पर तेजाब गिरता है, उसके शरीर को गलाता है लेकिन जिसके हाथों से ये तेजाब फेंका जाता है, उसकी आत्मा पहले ही गल चुकी होती है. प्रतिभा ज्योति ने एसिड वाली लड़की के माध्यम से समाज के पाखंड और विरोधाभास पर उंगली रखी है. उस मनोविकार की संपूर्ण व्याख्या की है, जो हमारे आपके बीच मौजूद है और उन हौसलों को सलाम किया है, जिन्हें गलाने की कुव्वत किसी तेजाब में नहीं है. एसिड वाली ये आठों लड़कियां हमारे भद्दे समाज को आईना दिखा रही हैं. उस आईने में अपने समाज का चेहरा देखने के लिए प्रतिभा ज्योति की किताब एसिड वाली लड़की को जरूर पढ़ें और अपने दिल से पूछें कि हमारे समाज का संस्कार कहां चूक गया.

लेखक

राठौर विचित्रमणि सिंह राठौर विचित्रमणि सिंह @bichitramani.rathor

लेखक आजतक में डिप्टी एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं

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