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Updated: 22 फरवरी, 2017 04:11 PM
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बीजेपी नेता वरुण गांधी आमतौर पर कम बोलते हैं और कई मुद्दों पर जब तक अखबारों में लिखते रहते हैं. उनके लेखों में जिन मुद्दों का जिक्र होता है उन्हें वे काफी गंभीरता के साथ पेश करते हैं.

रोहित वेमुला और अल्पसंख्यकों को लेकर वरुण गांधी के ताजा बयान को देखें तो वो बीजेपी को ही कठघरे में खड़ा करता है - लेकिन उसमें किसी खास एजेंडे पर फोकस के आखिर क्या मायने हैं?

ये वही वरुण गांधी हैं जो हिंदुओं के खिलाफ उठने वाले हाथों को काट डालने की बात करते रहे - अचानक उन्हें अल्पसंख्यकों की इतनी फिक्र क्यों होने लगी? जब रोहित वेमुला का पत्र पढ़ कर दुखी होने वालों के आंसू सूख चुके हैं फिर ऐन चुनाव के बीच उनकी आंख क्यों भर आई?

मन की बात!

पिछले साल जब बीजेपी की कार्यकारिणी की मीटिंग इलाहाबाद में चल रही थी, वरुण ने मन की बात अपने एक्शन से दिखाने और शायद बीजेपी को समझाने की कोशिश की - जब वो समर्थकों की लंबी चौड़ी फौज के साथ संगम नगरी में दाखिल हुए. उनके काफिले की तड़क भड़क की तुलना अमित शाह और राजनाथ सिंह जैसे नेताओं के काफिले से की गयी. जब राजनाथ सिंह के हाथ में बीजेपी की कमान थी, वरुण को अहम जिम्मेदारियां मिली हुई थीं. अमित शाह ने तो उन्हें हाशिये पर ही भेज दिया. माना यही जाता है कि मोदी की सभा में भीड़ पर वरुण का बयान ही उनके लिए मुसीबतों का सबब बना. चुनावी माहौल गर्म होने से पहले जब स्मृति ईरानी से लेकर योगी आदित्यनाथ तक के नाम यूपी के सीएम कैंडिडेट के तौर पर उछल रहे थे तो वरुण गांधी भी सूची में ऊपर ही थे. चुनाव शुरू होने पर स्टार प्रचारकों की पहली सूची से नाम ही नदारद रहा. दूसरी सूची में नाम तो छपा लेकिन ऊपरवालों ने कहीं खुल कर बोलने का मौका ही नहीं बख्शा.

वरुण से बीजेपी के परहेज की एक और वजह रही होगी अमेरिकी हथियार डीलर एडमंड ऐलन का प्रधानमंत्री मोदी को लिखा पत्र. एडमंड ऐलन ने हथियारों के सौदे में दलाली के आरोपी अभिषेक वर्मा के हनी ट्रैप का शिकार होकर वरुण गांधी वरुण गांधी के ब्लैकमेल हो जाने का दावा किया था. वरुण गांधी ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था.

खैर, वरुण गांधी को बोलने का मौका मिला भी तो मध्य प्रदेश में जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. मंच मिला तो उन्होंने मन की बात सरेआम कर दी. इस मन की बात में वरुण ने पूरी भड़ास निकाली जिसमें निशाने पर बीजेपी नेतृत्व नजर आया.

अगर वरुण की बातों पर गौर करें तो क्या उसका निहितार्थ बस इतना ही है. वरुण की बातों से ऐसा क्यों लगता है कि बीजेपी नेतृत्व को टारगेट करने के नाम पर वो कुछ और भी कहना चाहते हैं.

ये निरपेक्ष भाव क्यों?

वरुण गांधी ने मुख्य तौर पर दो बातें कही हैं. एक, रोहित वेमुला के बहाने वरुण ने दलितों का मुद्दा उठाया है और दूसरा, अल्पसंख्यकों की हालत पर चिंता जतायी है. वैसे वरुण गांधी ने विजय माल्या के कर्ज लेकर भाग जाने से लेकर किसानों के मसले को भी अपने भाषण में उठाया है.

एक दलितों का मुद्दा और दूसरा अल्पसंख्यकों का - ये दोनों ही मुद्दे फिलहाल मायावती के एजेंडे में सबसे ऊपर हैं और इन्हीं के बूते वो यूपी की कुर्सी पर फिर से बैठने की कोशिश में हैं. दलित और ब्राह्मण की कामयाबी से नाकामी तक के सफर के बाद मायावती दलित-मुस्लिम एजेंडे के साथ आगे बढ़ रही हैं.

वरुण गांधी ने रोहित वेमुला की बात उस वक्त की है जब उनकी मां राधिका वेमुला पर अनुसूचित जाति का लाभ लेने के लिए फर्जीवाड़े के आरोप लगे हुए हैं - और सरकारी मशीनरी उन्हें कठघरे में खड़ा कर जवाब मांग रही है.

varun-gandhi_650_022217023447.jpgवरुण गांधी का दूसरा निशाना कौन?

रोहित वेमुला की खुदकुशी का मामला बीजेपी की दुखती रग रहा है जिसकी आंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं बच पाये. संसद में मायावती केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से भिड़ गयीं तो लखनऊ में छात्रों ने प्रधानमंत्री को काले झंडे तक दिखा डाले - और फिर मोदी को चुप्पी तोड़नी पड़ी.

वरुण ने अल्पसंख्यकों के लिए भी गहरी चिंता जतायी है. लेकिन 2009 में वरुण गांधी के भाषणों के वीडियो यूट्यूब पर भरे पड़े हैं. इन वीडियो में वरुण हिंदुओं के खिलाफ उठने वाले हाथों को काट डालने की बात करते हैं - वो भी गीता की कसम खाकर. तकनीकी तौर पर वरुण गांधी भी अपने विवादित बयानों से उसी तरह बेदाग निकल चुके हैं जैसे मोदी 2002 के गुजरात दंगों से. वरुण गांधी को अदालत ने समाज में घृणा फैलाने के आरोपों से बरी कर दिया है, इसलिए ऐसी बातों का कोई मतलब नहीं बनता.

हृदय परिवर्तन क्यों?

वरुण गांधी के अचानक इस हृदय परिवर्तन का राज क्या है? क्या ऐसी बातें कर वरुण गांधी की बीजेपी नेतृत्व को सबक सिखाने की मंशा है? लेकिन क्या वरुण के मध्य प्रदेश में भाषण देने से यूपी चुनाव पर कोई असर पड़ेगा? वरुण की बातें शायद मीडिया के जरिये बीजेपी नेतृत्व तक पहुंच भी जाये तो क्या आम लोगों पर भी इसका कोई असर होगा? कहना मुश्किल है.

मायावती के एजेंडे के दायरे से थोड़ा आगे बढ़ कर देखें तो वरुण ने अपने भाषण में उन सभी मुद्दों को छुआ है जो उनके चचेरे भाई राहुल गांधी काफी दिनों से उठाते रहे हैं.

वरुण गांधी की बीजेपी नेतृत्व से नाराजगी तो समझ आती है, लेकिन आइडियोलॉजी में यू टर्न को किस रूप में देखा जाना चाहिये? ये महज वरुण गांधी के नेतृत्व पर दबाव बनाने की एक और रणनीति भर है या भविष्य में किसी नये समीकरण में फिट होने के संकेत हैं?

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