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Updated: 09 मार्च, 2017 07:49 PM
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एक्सिस माईइंडिया एग्जिट पोल के आकलन की मानें तो यूपी में मोदी का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोला है - और अमित शाह की अचूक रणनीति ने अपने ऊपर उठने वाले सारे सवालों के मुहंतोड़ जवाब दे दिये हैं.

जिसे तुक्का समझा वो तीर निकले

असम में सत्ता हासिल करना बीजेपी के लिए बड़ी बात जरूर रही लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अमित शाह दिल्ली और बिहार की हार का दाग नहीं मिटा पा रहे थे. यूपी चुनाव के लिए शाह ने जातीय समीकरणों के हिसाब से एक-एक चाल सोच समझ कर चली और हर गोटी सटीक जगह फिट किया. अब लगता है अमित शाह उन पर सवाल उठाने वालों को समझा सकेंगे कि जिसे वे तुक्का समझ या समझा रहे थे वे सारे के सारे तीर निकले. बीएसपी के बड़े मजबूत नेता स्वामी प्रसाद मौर्या के पार्टी छोड़ने के काफी दिनों बाद उन्हें बीजेपी में एंट्री मिली, लेकिन अमित शाह का ये फैसला बीजेपी के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. स्वामी प्रसाद मौर्य को बीजेपी में लाकर शाह ने बीएसपी को डबल नुकसान पहुंचाया.

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केशव प्रसाद मौर्य को यूपी की कमान सौंपने के साथ ही, ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल को कम से कम सीटों पर राजी कर लेना शाह की बड़ी उपलब्धि रही.

इन सबका फायदा ये रहा कि बीजेपी ने अपने परंपरागत वोटों के साथ साथ ओबीसी वोटों पर भी कब्जा कर लिया जो उसकी जीत में निर्णायक साबित हुए.

तो क्या बीजेपी को सीएम कैंडिडेट घोषित न करने का कुछ नुकसान हुआ?

काफी हद तक इस सवाल का जवाब हां में देखा जा सकता है. अगर बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के साथ मैदान में उतरती तो सीटों की संख्या 300 के पार जा सकती थी. वैसे शुरू से आखिर तक राजनाथ सिंह इस पद के लिए लोकप्रिय चेहरा बने रहे - बाकी अब तो आला कमान की मर्जी.

यूपी नहीं पसंद आया साथ

एग्जिट पोल से मालूम होता है कि साल की शुरुआत मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए बेहतरीन वक्त रहा जब चुनाव आयोग का फैसला उनके पक्ष में आया. समाजवादी पार्टी में तमाम उठापटक और परिवार में झगड़े के बावजूद वो चुनाव चिह्न साइकिल पर हक जताने में कामयाब रहे.

अपने पिता मुलायम सिंह यादव की राजनीति को पीछे छोड़ते हुए अखिलेश अपनी विकासोन्मुख छवि के सहारे आगे तो बढ़े लेकिन मंजिल दूर ही रह गयी. अखिलेश ने उस गठबंधन को भी हकीकत में बदल दिया जिसके बूते उन्हें सीटें 300 पार जाने की उम्मीद रही, लेकिन यूपी को वो 'साथ' बिलकुल भी पसंद नहीं आया.

अखिलेश के मुस्लिम विरोधी होने का मुलायम का शक तो गलत साबित हुआ लेकिन उनका चुनाव प्रचार से दूर रहना अखिलेश के लिए बहुत महंगा साबित हुआ. आपराधिक छवि के लोगों से दूरी बनाने और अच्छी इमेज के साथ चुनाव मैदान में उतर कर हाइवे, एक्सप्रेस-वे और मेट्रो का उन्होंने खूब प्रचार किया, लेकिन लोगों ने उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाई.

एग्जिट पोल के ऐन पहले समाजवादी पार्टी के नेता रविदास मेहरोत्रा का बयान आया कि गठबंधन से समाजवादी पार्टी को नहीं बल्कि कांग्रेस को फायदा हुआ.

तभी समाजवादी पार्टी के सीनियर लीडर आजम खां भी कैमरे पर आये और कहा - अगर समाजवादी पार्टी हार भी जाती है तो उसकी जिम्मेदारी अकेले अखिलेश की नहीं होगी.

माना जा सकता है कि ओबीसी वोटों का समाजवादी पार्टी से नाउम्मीद होना भी उसे सत्ता से दूर करने की वजह बनने जा रहा है - क्योंकि बीजेपी को लीड देने में उसीकी निर्णायक भूमिका नजर आ रही है.

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बेदम साबित हुआ 'दम' फैक्टर

उम्मीदवार तय करने से लेकर उनकी सूची जारी करने के मामले में बीएसपी सबसे आगे रही, लेकिन उसे उसका फायदा नहीं मिला. जिस दम फैक्टर यानी दलित मुस्लिम फैक्टर की बदौलत मायावती कुर्सी का ख्वाब संजोये रहीं उसका तो दम ही निकल गया.

दरअसल, बीएसपी को अपेक्षित मुस्लिम सपोर्ट न मिलने की एक वजह उसके पास कोई लोकप्रिय मुस्लिम फेस नहीं होना भी रहा. मायावती ने पश्चिम यूपी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी को जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन वो भी कोई करिश्मा नहीं दिखा सके, पूर्वी उत्तर प्रदेश में मायावती ने अंसारी बंधुओं से हाथ मिलाया जो शायद लोगों को जमा नहीं. मायावती के पास ले देकर दलितों का सपोर्ट रहा लेकिन वो चुनाव जीतने के लिए नाकाफी रहा.

स्वामी प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक जैसे बीएसपी नेताओं के साथ छोड़ देने को मायावती ने जरा भी तवज्जो नहीं दी. मायावती पर उन्होंने पैसे लेकर टिकट बेचने के आरोप लगाये तो बीएसपी नेता ने दूसरे इल्जाम लगा कर काउंटर करने किया. कुल मिलाकर बीएसपी का लोक सभा चुनाव जैसा ही बुरा हाल रहा.

एग्जिट पोल में कौन कितने पानी में

एग्जिट पोल के हिसाब से देखें तो बीजेपी को उम्मीद से दो गुणा सीटें मिलती नजर आ रही हैं. इस तरह बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को 251 से 279 सीटें मिलने की संभावना जतायी गयी है.

यूपी में बीजेपी ने अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन किया था जिन्हें क्रमश: 6-8 और 4-6 सीटें मिलने की संभावना जतायी गयी है.

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को 88 से 112 सीटें मिलने की संभावना है जिसमें कांग्रेस के हिस्से में 10 से 15 सीटों आ रही हैं. बीएसपी का तो खेल ही खत्म हो गया है. 2012 में सत्ता गंवाकर भी बीएसपी के खाते में 80 सीटें आई थीं लेकिन इस बार तो महज 28 से 42 सीटों से ही उसे संतोष करना पड़ सकता है.

पश्चिम यूपी में अजीत सिंह की आरएलडी को भी गहरा झटका लगा है उसके हिस्से में महज 2 से 5 सीटें आने की संभावना रह गयी है. यूपी में अन्य को 4 से 11 सीटें मिलने की संभावना है.

CNNnews18 का एग्जिट पोल

जनसत्ता का एग्जिट पोल

NDTV का एग्जिट पोल

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