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Updated: 28 दिसम्बर, 2022 09:02 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के एक सियासी परहेज से जो मौका जीतनराम मांझी को मिला था, हाल फिलहाल वैसा ही तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को मिल रहा है - और ये सब नीतीश कुमार के लिए नुकसान पहुंचाने वाला है, जबकि तेजस्वी यादव के लिए फायदेमंद मौका साबित हो रहा है.

तेजस्वी यादव को लेकर नयी उम्मीदें पालने का आरजेडी नेताओं को मौका भी तो नीतीश कुमार ने ही दिया है. आखिर नीतीश कुमार ने ही तो 2025 के लिए तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता घोषित किया है. आखिर नीतीश कुमार ही तो तेजस्वी यादव के लिए मंच से ताली बजाने को कह रहे हैं. आखिर नीतीश कुमार ही तो कहने लगे हैं कि बिहार के विकास के लिए उनकी तरफ से शुरू किये गये सारे ही ड्रीम प्रोजेक्ट की देखभाल और पूरा भी तेजस्वी यादव ही करेंगे.

और जब नीतीश कुमार ऐसी बातें करेंगे तो तेजस्वी यादव के समर्थकों का हौसला तो बढ़ेगा ही. तभी तो बिहार आरजेडी अध्यक्ष जगदानंद सिंह नसीहत दे रहे हैं कि नीतीश कुमार को बड़े बन जाना चाहिये - और यहां तक बोल दे रहे हैं कि नीतीश कुमार को तो तेजस्वी यादव के लिए बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ ही देनी चाहिये. जगदानंद सिंह ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं, बड़ी चीजों के लिए छोटी चीजें छोड़नी पड़ती हैं. मतलब, अगर नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनना है तो बिहार का मुख्यमंत्री बने रहने का मोह छोड़ना पड़ेगा.

लेकिन क्या नीतीश कुमार भी वैसा ही सोच रहे होंगे, जैसा तेजस्वी यादव के साथी नेताओं के मन में चल रहा है या बयानों में नजर आ रहा है? निश्चित तौर नीतीश कुमार चारों तरफ से घिर जाने के कारण मजबूर तो हैं, लेकिन ऐसा मौका कोई पहली बार नहीं आया है - और जब जब ऐसे घिरे से विरोधियों के साथ साथ समर्थकों को भी चकमा देते हुए निकल भी आये हैं.

अभी ये बात इसलिए चर्चा का विषय बनी है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के साथ जिस मीटिंग में नीतीश कुमार को हिस्सा लेना चाहिये, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को भेजा जा रहा है - और ऐसी घटनाओं की एक क्रोनोलॉजी अलग ही इशारे कर रही है.

कोलकाता में 30 दिसंबर को नेशनल गंगा काउंसिल की एक महत्वपूर्ण मीटिंग होने जा रही है. मीटिंग की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करनी है - और मीटिंग में काउंसिल के सदस्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के शामिल होने की अपेक्षा है.

खबर आयी है कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ गंगा काउंसिल की मीटिंग में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जगह तेजस्वी यादव ही बिहार की नुमाइंदगी करने जा रहे हैं. जब से आरजेडी नेताओं और कार्यकर्ताओं के पास ये जानकारी पहुंची है, वे ऐसे खुश हैं जैसे नीतीश कुमार ने सब कुछ तेजस्वी यादव को हैंडओवर ही कर दिया हो. जैसे मई, 2014 में सब कुछ जीतनराम मांझी के हवाले कर दिया था - लेकिन ऐन उसी वक्त वे भूल रहे हैं कि 278 दिन बाद ही नीतीश कुमार ने पूरा पावर वापस अपने हाथ में भी ले लिया था. बीच में जीतनराम मांझी खूब उछले कूदे, बीजेपी के हाथों में खेले और जैसे जैसे नचाया गया, नाचे भी - और आखिर में वो दिन भी आया जब वो फिर नीतीश कुमार के शरणागत होकर जेडीयू नेता के प्रवक्ता जैसा प्रदर्शन करने लगे.

नीतीश कुमार के लिए अब काफी मुश्किल होगा, तेजस्वी यादव के साथ जीतनराम मांझी की तरह पेश आना. तेजस्वी यादव काफी संयम दिखा रहे हैं. मुख्यमंत्री बनने को लेकर तेजस्वी यादव किसी तरह ही हड़बड़ी नहीं दिखा रहे हैं. तेजस्वी यादव अभी ऐसी कोई बात नहीं कर रहे हैं जो नीतीश कुमार के खिलाफ जाती हो. जहरीली शराब के मामले में ही देखें तो तेजस्वी यादव ने हर जगह नीतीश कुमार का बचाव ही किया, और बीजेपी को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की.

जो व्यवहार नीतीश कुमार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ करने जा रहे हैं, बिलकुल वैसे ही अंदाज में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ भी पेश आ चुके हैं - और तेजस्वी यादव को लेकर प्रयोग भी बिलकुल वैसा ही कर चुके हैं.

लेकिन लोगों को हैरानी उस दिन सबसे ज्यादा हुई जब बिहार का नया डीजीपी बनाये जाने के बाद आरएस भट्टी डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मिलने पहुंचे - अमूमन, जैसी की परंपरा रही है, ऐसी मुलाकातें मुख्यमंत्री के साथ ही होती हैं.

क्या मोदी से नीतीश को नजर मिला पाने में दिक्कत हो रही है?

तेजस्वी यादव को पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आमने सामने बात करने का मौका भी पहली बार नीतीश कुमार ने ही मुहैया कराया था - और ऐसा तब हुआ जब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ एनडीए के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता.

narendra modi, nitish kumar, tejashwi yadavतेजस्वी यादव को नफा और नीतीश कुमार को नुकसान - बिहार की राजनीति में फिलहाल यही चल रहा है.

जातीय जनगणना की मांग को लेकर नीतीश कुमार ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री से बिहार के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाकात की थी - और खास बात ये रही कि तेजस्वी यादव के साथ साथ नीतीश कुमार एक बीजेपी विधायक को भी ले गये थे.

अब डिप्टी सीएम होते हुए भी तेजस्वी यादव को देश के कई मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की बैठक में फिर से आमने सामने बैठने का आधिकारिक मौका मिलने जा रहा है - और ये सिलसिला थोड़ा पहले ही शुरू हुआ है.

1. अमित शाह से भी मिलने से नीतीश कुमार परहेज कर रहे हैं: एक वो भी दौर देखा जा चुका है जब प्रोटोकॉल तोड़ कर नीतीश कुमार पटना एयरपोर्ट पर अमित शाह से मिलने पहुंचे थे. तब अमित शाह का पटना में भी कोई सरकारी प्रोग्राम नहीं था, और वो सीधे बीजेपी के कार्यक्रम में हिस्सा लेने जा रहे थे.

देखने में ये आ रहा है कि एनडीए छोड़ कर महागठबंधन का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद से नीतीश कुमार सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं, केंद्रीय मंत्री अमित शाह से भी मिलने से कतराने लगे हैं.

दिसंबर, 2022 में ही ईस्टर्न जोनल सिक्योरिटी काउंसिल की एक मीटिंग हुई थी, जिसमें पूर्वी क्षेत्र के सभी मुख्यमंत्रियों को बुलाया गया था. मीटिंग में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग, और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तो शामिल हुए - लेकिन बिहार से डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने हिस्सा लिया था.

और नीतीश कुमार के उस मीटिंग से दूरी बनाने की एक वजह महसूस की गयी - मीटिंग की अध्यक्षता केंद्रीय मंत्री अमित शाह कर रहे थे. मतलब, जो तरीका नेशनल गंगा काउंसिल के लिए अपनाया है, उसका पहला नमूना अमित शाह के साथ हुई मीटिंग में पेश कर चुके हैं.

2. नीति आयोग की बैठक में तो पहले से ही जाना बंद कर दिया था: वो अगस्त का ही महीना था जब नीतीश कुमार ने एनडीए के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उसके महीने भर पहले से ही वो नीति आयोग की बैठकों में जाना बंद कर चुके थे.

17 जुलाई के बाद से 7 अगस्त तक नीति आयोग की चार बैठकें हुई थीं, लेकिन नीतीश कुमार तो पहले ही मन बना चुके थे. लिहाजा ऐसी बैठकों में जाना पहले से ही बंद कर दिया था. शक तो बीजेपी को भी हो ही रहा होगा, लेकिन नेतृत्व की तरफ से नीतीश कुमार को मौके देने के प्रयास किये जा रहे होंगे.

3. G-20 पर सर्वदलीय बैठक से भी गायब पाये गये: अगले साल भारत में होने जा रहे G-20 सम्मेलन को लेकर एक सर्वदलीय बैठक बुलायी गयी थी. बैठक की अध्यक्षता स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करनी थी, लिहाजा नीतीश कुमार ने पहले ही पैंतरा बदल लिया.

अब अगर सर्वदलीय बैठक में भी नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को भेज दिया होता तो अलग ही बातें होने लगतीं. ये तो पहले से ही चर्चा है कि नीतीश कुमार जेडीयू का आरजेडी में विलय करने जा रहा हैं. ये चर्चा नीतीश कुमार के इस मुद्दे पर स्थिति साफ करने के बाद भी नहीं थम रही है - अगर तेजस्वी यादव को अपना प्रतिनिधि बना कर भेज दिया होता तो पक्का ही मान लिया गया होता.

नीति आयोग के बाद सर्वदलीय बैठक से भी दूरी बनाने को लेकर बिहार बीजेपी के नेता सुशील मोदी ने नीतीश कुमार पर सरकारी प्रोटोकॉल के खिलाफ काम करने का इल्जाम लगाया था. लेकिन उसके बाद जो बात कही, वो काफी धारदार हमले कर रही थी.

कभी नीतीश कुमार की परछाई की तरह देखे जाने वाले सुशील मोदी की प्रतिक्रिया थी, 'जब नीतीश कुमार ने बीजेपी और प्रधानमंत्री को दूसरी बार धोखा दिया है, और महागठबंधन से हाथ मिलाया है - वो प्रधानमंत्री से नजर मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.'

ऐसा ही हाल नीतीश कुमार का तब भी देखा गया जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सम्मान में भोज में शामिल होना था - और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को विदाई दी जा रही थी.

नफा किसे, और नुकसान किसका?

नीतीश कुमार ने जो स्टैंड लिया है, बस एक ही फायदा हो रहा है कि वो मोदी-शाह के आमने-सामने होने से बच रहे हैं. ऐसे वाकये तो तब भी फेस करने पड़े होंगे जब वो एनडीए में दोबारा लौटे थे - और फिर मुलाकातों का सिलसिला नये सिरे से शुरू हो गया था.

मोदी से ही बचने के लिए ही 2013 में नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़ा था. इस बार भी वजह मिलती जुलती ही है. हालांकि, इस बार मोदी से ज्यादा उनको चिढ़ अमित शाह से लगती है. जेडीयू के भीतर भी कुछ नेता मानते हैं कि चूंकि नीतीश ने मोदी को भी अंधेरे में रख कर एनडीए छोड़ने का फैसला किया था, इसलिए भी ज्यादा मुश्किल हो सकती है.

अगर नीतीश कुमार चाहते तो एक बार मोदी को संकेत दे सकते थे कि वो एनडीए छोड़ने जा रहे हैं. जैसे राजनीति में रिश्तों को बाकी चीजों से इतर रखे जाने की परंपरा रही है - और नीतीश कुमार तो ये सबसे ज्यादा निभाते रहे हैं.

नीतीश कुमार की बातों से ऐसा भी नहीं लगता कि बीजेपी और पार्टी के नेताओं से पूरी तरह घृणा करते हैं. ये बात पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी की जयंती के मौके पर भी महसूस की गयी - और अब बीजेपी नेता रहे अरुण जेटली की जयंती पर भी देखने को मिली है.

अरुण जेटली को श्रद्धांजलि देने एक कार्यक्रम में पहुंचे नीतीश कुमार ने वैसी ही दोस्ती और पुराने दिनों को याद किया, जैसे वाजपेयी को लेकर कर रहे थे - और बार बार यही बताने की कोशिश कर रहे थे कि कितने अच्छे वे दिन थे.

लेकिन जैसे ही वाजपेयी-आडवाणी और मोदी-शाह वाली बीजेपी में फर्क को लेकर पूछा जाता है, उनके चेहरे के भाव बदल जाते हैं. सिर्फ इतना ही कहते हैं, 'छोड़िये न... इन सब पर चर्चा क्या करना है?'

देखा जाये तो नीतीश कुमार का नुकसान ही नुकसान हो रहा है. और मुद्दा ऐसा है कि नीतीश कुमार का हर नुकसान तेजस्वी यादव के लिए फायदा ही फायदा दे रहा है.

नये डीजीपी का तेजस्वी को रिपोर्ट करना! अगर कोई अफसर किसी मंत्री से मिलने उसके दफ्तर जाये तो मुलाकात को क्या नाम दिया जाना चाहिये - दरअसल, बिहार के नये डीजीपी आरएस भट्टी का तेजस्वी यादव से मिलने जाना भी ऐसा ही मामला है.

देखा तो अक्सर यही जाता रहा है कि कामकाज संभालने के बाद डीजीपी मुख्यमंत्री से मिलने जाते रहे हैं, लेकिन आरएस भट्टी जब तेजस्वी यादव से मिलने पहुंचे तो काफी लोगों को आश्चर्य हुआ. ऐसे भी लोग रहे जिनको ऐसा कुछ नहीं लगा, लेकिन ये वे लोग रहे जो हकीकत को बखूबी समझ रहे थे.

बिहार सरकार में गृह विभाग नीतीश कुमार ने अपने पास ही रखा है, अगर ये तेजस्वी यादव के पास होता तो भी किसी को अटपटा नहीं लगता. फिर भी डीजीपी अगर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मिल रहे हैं तो शक शुबहे तो होंगे ही. बिहार में सत्ता के गलियारों से वाकिफ लोग इसे अपने तरीके से भी समझने की कोशिश कर रहे हैं - नये डीजीपी लालू-राबड़ी शासन के जमाने के भरोसेमंद अफसर रहे हैं.

कहने को तो डीजीपी के रूप में भट्टी जैस सख्त अफसर की नियुक्ति को नीतीश कुमार की 2024 के आम चुनाव की तैयारियों का हिस्सा भी समझा जा रहा है, लेकिन अब तो मन में ये सवाल भी उठने लगा है कि क्या वास्तव में ये फैसला नीतीश कुमार ने अपने मन से ही लिया है या फिर तेजस्वी यादव के फैसले पर दस्तखत कर दिया है?

प्रधानमंत्री मोदी के साथ मीटिंग में तेजस्वी यादव के शामिल होने को लेकर आरजेडी के प्रवक्ता चितरंजन गगन कहते हैं, 'प्रधानमंत्री मोदी की बैठक गंगा पर है... और तेजस्वी जी शहरी विकास विभाग का नेतृत्व कर रहे हैं... नमामि गंगे परियोजना इसी के तहत आती है... ऐसे में उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण है.'

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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