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Updated: 23 जुलाई, 2016 07:00 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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यूरोप फिर दहला. स्थान है म्यूनिख. जर्मनी का एक महत्वपूर्ण शहर जहां पर एक 18 वर्षीय जर्मन-ईरानियन मूल के बंदूकधारी ने शहर के एक शॉपिंग मॉल में फायरिंग कर 9 लोगो को मौत के घाट उतार दिया. इस बंदूकधारी ने घटना को क्यों अंजाम दिया, इसकी जांच जारी है. इस बंदूकधारी ने बाद में खुद को मौत के घाट उतार दिया, फिर भी आतंक, डर और खौफ का माहौल म्यूनिख में पसरा हुआ है.

यह जर्मनी का तीसरा बड़ा शहर है और करीब 44 साल के बाद फिर से ये घटना म्यूनिख ओलम्पिया शॉपिंग सेंटर में हुई है. ये घटना लोगो को फिर 1972 ओलिंपिक अटैक की याद दिला रही है, जब फिलिस्तीनी आतंकी ग्रुप 'Black September' ने 11 इस्रायली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया था और फिर उनकी हत्या कर दी थी. हाल के दिनों में जिस तरह से यूरोप और अन्य देशो में इस तरह के घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है वो बहुत ही चिंतनीय है.

यह ओलिम्पिया शॉपिंग सेंटर पहली बार 1972 ओलिंपिक खेल के दौरान ही ओपन हुई थी. यह जर्मनी की साउथर्न बवेरिया स्टेट की सबसे बड़ी शॉपिंग सेंटर है.

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 जब 1972 में आतंकियों ने किया खिलाड़ियों का कत्ल

ये सोचिये की इस भीड़-भाड़ वाली जगह पर हमला कितना नुकसान पहुंचा सकती थी. खैर, नुकसान तो कम हुआ पर दहशत की चादर पूरे जर्मनी और यूरोप में पसर गई जो अभी भी नीस और वुर्जबर्ग हमले से उबर नहीं पाई है.

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पिछले 8 दिनों के अंदर यूरोप में नागरिकों के खिलाफ हिंसा की ये तीसरी घटना है. हलांकि पहले दो घटनाओं में ISIS का हाथ होने की बात कही जा रही है. पश्चिमी यूरोप इन घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित है. तमाम घटनाओ में समानता यह है कि इन तीनों वारदातों को अंजाम एक-एक हमलावरों ने ही दिया है. ये आतंक का एक नया तरीका माना जा रहा है, जिसका मकसद ये है कि लोग हमेशा दहशत में रहें और इन घटनाओं को अंजाम देने वाले लोगो के सामने समर्पण कर दें.

ISIS का प्रसार जिस तरह से पूरे विश्व में हो रहा है वो हमें और चौंकने रहने और सुरक्षा तंत्र को और अधिक फूलप्रूफ बनाने की ओर इशारे कर रही है.

इस तरह की घटना को आतंकी संस्था कब अंजाम दे, ये पता नहीं रहता. अगर हाल की घटनाओं पर ही गौर करें तो जैसा कि ढाका में रेस्टोरेंट में अटैक, नीस में ट्रक द्वारा हमला, वुर्जबर्ग में रीजनल ट्रैन में चाकू द्वारा पैसेंजरो पर हमला और म्यूनिख में शॉपिंग सेंटर में गोलाबारी. गौर कीजिये किसी को कुछ पता नहीं कब किस पर कहां हमला हो जाए. इस तरह की घटनाओं के लिए हमारी सुरक्षा तंत्र तुरंत तैयार नहीं रहती है और इसी का फायदा आतंकी उठाते है. लिहाजा, खामयाजा भुगतना पड़ता है आम नागरिकों को.

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भारत भी इन घटनाओं को रोकने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है. जिस तरह से पहले भारत में हमले होते रहे है जैसे की मुंबई में कैफ़े और ट्रैन अटैक, वाराणसी में मंदिर में धमाका, दिल्ली में सरोजिनी नगर मार्किट में धमाका, यहां तक कि सुरक्षित माने जाने वाले पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन में आतंकी हमला. इन सब में सुरक्षा की खामी दिखाई देती है.

हाल के दिनों में जिस तरह से ISIS का फैलाव भारत में देखने को मिल रहा है वो बहुत ही बड़ी चिंता का विषय है. कई राज्यों से करीब करीब हर दिन कोई ना कोई ISIS समर्थक की गिरफ़्तारी की खबर आती है. ISIS आतंकी हर समय कुछ ना कुछ नए तरह के आतंकी अटैक की फिराक में रहते हैं. हाल की घटनाओ को देखने के बाद यह लगता है कि बांग्लादेश, फ्रांस और जर्मनी के बाद कहीं अब भारत की बारी तो नहीं!

समय आ गया है की भारत अपने सुरक्षा और इंटेलिजेंस सिस्टम को और मजबूत करे ताकि इस तरह के 'लोन वूल्‍फ अटैक' को रोक सके और पहले से ही सचेत रहे. नवम्बर 2015 में भारत के गृह राज्य मंत्री ने ये कहा था की ISIS 'लोन वूल्‍फ टेरर अटैक' देश में करवा सकता है. साथ ही यह भी कहा था कि भारत ने इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं. उम्मीद करते है की हाल की घटनाओं को देखते हुए भारत सरकार इससे सबक लेकर हमारी सिक्योरिटी को पुख्ता करेगी और साथ ही नागरिकों को भय मुक्त होकर रहने का विश्वास भी दिलाएगी.

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लेखक

आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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