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Updated: 19 मई, 2015 12:54 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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एक बच्चा बड़ा होकर कुछ बनना चाहता हैं. सिर्फ 'कुछ' नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहता है. लेकिन प्रधानमंत्री ही क्यों?

मौका मिलते ही वो अपना इरादा भी साफ कर देता है, 'मैं बड़ा होकर संयोग से प्रधानमंत्री बना तो सबसे पहले देश के सभी प्राइवेट स्कूलों को बंद करवा दूंगा. सारे बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे, एक-दूसरे से सीखेंगे. तभी सही मायने में देश में समान शिक्षा प्रणाली लागू होगी.'

इस बच्चे की बात पर गौर करें तो पता चलता है कि उसमें प्रधानमंत्री बनने की इच्छा से कहीं ज्यादा निजी स्कूलों को बंद करने का इरादा झलक रहा है.

'मुझे भी कुछ कहना है.' उस तख्ती पर यही लिखा था जिसे हाथों में लिए एक बच्चा मंच के सामने खड़ा था. पटना में चौरसिया समाज के एक कार्यक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पहुंचे थे. जब उनकी नजर बच्चे पर पड़ी तो उन्होंने उसे मंच पर बुला लिया. ये बच्चा बिहार के आरा जिले से कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचा था. नीतीश ने जब बच्चे से बोलने को कहा तो बच्चा शुरू हो गया. जब बच्चा बोलने लगा तो हर कोई हैरान हो उठा.

'देश में दो तरह की शिक्षा व्यवस्था है. अमीरों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं. गरीबों के बच्चे सरकारी स्कूलों में.'

एक छोटे बच्चे ने ऐसा बुनियादी सवाल उठाया था जिसका जवाब बड़ों को भी नहीं मिल रहा. हालत ये है कि बच्चे का स्कूल में एडमिशन हो जाने को हर कोई किसी जंग जीतने से कम नहीं समझता.

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच बच्चे ने बोलना जारी रखा...

'अब मैं क्या बोलूं। मैंने क्या सही बोला, क्या गलत मुझे नहीं मालूम। इसका निर्णय तो आप लोग कर सकते हैं। एक बात जरूर है कि मेरे दिल में जितनी भी बात थी मैंने कह दी। अब मैं अपने आप को बहुत हल्का महसूस कर रहा हूं।'

दिल्ली की मौजूदा सरकार सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के मुकाबले खड़ा करने की बात कही है. पिछले महीने दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग के 40 अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ के दुर्ग में एक कार्यशाला में हिस्सा लिया. सरकार की योजना है कि दिल्ली के स्कूलों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएं ताकि बच्चों को बेहतर नागरिक बनने में मदद मिल सके. तमिलनाडु में एक कलेक्टर की बेटी सरकारी स्कूल में पढ़ती है. लेकिन ऐसे कितने उदाहरण मिलेंगे?

कुमार की बातें देश की शिक्षा व्यवस्था का हकीकत बयां कर रही हैं. कुमार की बातें उस बच्चे की पीड़ा की झलक पेश कर रही हैं जब वो अपने ही जैसे बच्चों को सज धज कर निजी स्कूलों की ओर जाते हुए देखता है. वो बच्चा बस देखता है. वो बच्चा जानता है कुछ कर नहीं सकता. वो बच्चा जानता है कुछ करने के लिए उसे अधिकार हासिल करना होगा. इसीलिए वो प्रधानमंत्री बनना चाहता है.

सात साल के कुमार राज की बातों ने नीतीश कुमार को तकरीबन खामोश कर दिया. बस इतना ही बोल पाए, 'चाय वाला पीएम बन सकता है तो पान वाले का बेटा क्यों नहीं?' नीतीश की बातों में भले कोई और भी अर्थ छिपा हो, पर उसमें एक उम्मीद तो है ही. वैसे ये कुमार राज के सवालों का जवाब तो नहीं ही है. इसमें वक्त लगेगा.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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