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Updated: 26 जनवरी, 2017 08:57 PM
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मणिपुर चुनाव में मुख्य तौर पर तीन दावेदार हैं - कांग्रेस, बीजेपी और प्रजा. इरोम शर्मिला की पार्टी प्रजा यानी पीपल्स पीपुल्स रिसर्जेंस एंड जस्टिस एलायंस नयी किरदार है.

इरोम का एक मात्र एजेंडा AFSPA हटाना तो बीजेपी का मणिपुर को कांग्रेस मुक्त बनाना है और कांग्रेस का ख्वाब बस चौथी बार सत्ता हासिल करना है.

एजेंडा अपना अपना

अपनी नई नवेली पार्टी प्रजा के साथ चुनाव मैदान में कूद रही इरोम शर्मिला का बस एक ही मकसद है - मणिपुर से AFSPA हटाना. इसी काम के लिए उन्होंने 16 साल तक अनशन किया और फिर खुद ही पैंतरा बदलते हुए आंदोलन छोड़ कर राजनीति के रास्ते मंजिल हासिल करने का इरादा जताया. अब वो सीधे सीधे 15 साल से मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह को चैलेंज कर रही हैं - और उन्हीं के गढ़ में घुस कर चुनाव लड़ने वाली हैं.

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बीजेपी ने भी इस बारे में अपना इरादा साफ कर दिया है. बीजेपी का कहना है कि उसका एक मात्र एजेंडा मणिपुर को कांग्रेस मुक्त बनाना है. असम में सरकार बनाने और मणिपुर में दो उपचुनाव जीतने के बाद उसके हौसले बुलंद हैं. बीजेपी ने इसकी जिम्मेदारी असम की जीत के आर्किटेक्ट हिमंत बिस्वा सरमा को दी है.

कांग्रेस का एक मात्र एजेंडा चौथी बार सत्ता में वापसी है. 69 साल के इबोबी सिंह मार्च 2002 से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले हुए हैं.

किसे कितनी उम्मीद

चुनावों से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सियासी नुस्खे सीखने वाली इरोम शर्मिला ने भी उन्हीं की तरह नई पार्टी बनाई है. अपनी पार्टी प्रजा के लिए इरोम ने भी केजरीवाल की तरह लोगों से चंदा लेना शुरू किया है.

irom-sharmila_650_012617061254.jpg15 साल से सीएम इबोबी सिंह को चुनौती दे रही हैं इरोम शर्मिला

प्रजा के क्राउड फंडिंग कैंपेन को एक खास नाम भी दिया गया है - टेन4चेंज. इसका मतलब ये है कि मणिपुर में बदलाव के इस संघर्ष में हर शख्स दस रुपये की सहयोग राशि दे. इतना ही नहीं पार्टी बदलाव के पक्षधर हर व्यक्ति से ये भी अपेक्षा करती है कि वो अपने साथ दस मतदाताओं को जोड़ेगा और उन्हें प्रजा की नीतियों के बारे में बताएगा.

चुनाव में इरोम के लिए जो मजबूत पक्ष होता वही उनकी कमजोर कड़ी बन गया है. इरोम मणिपुर की उस मैती समुदाय से आती हैं जो आबादी का 63 फीसदी है. इस तरह मणिपुर की 60 में से 40 सीटों पर मैती समुदाय की निर्णायक भूमिका होती है.

जब से इरोम ने आंदोलन छोड़ कर राजनीति का रास्ता अख्तियार करने की बात की मैती समुदाय उनसे खफा हो गया. इस कदर खफा कि इरोम को उन्हीं के घर में नहीं घुसने को मिला. फिर भी इरोम ने हिम्मत नहीं हारी और अपने तरीके से लड़ाई लड़ रही हैं.

इरोम की पार्टी की ओर से बताया गया कि वो कम से कम सात सीटों पर चुनाव लड़ेगी. अब तक पांच ही उम्मीदवार तय भी किये जा सके हैं. खुद इरोम इबोबी के चुनाव क्षेत्र थोउबल के साथ साथ खुरई से चुनाव लड़ने वाली हैं.

तो क्या महज दस फीसदी सीटों पर चुनाव लड़ कर इरोम मणिपुर की सीएम बनने की अपेक्षा रखती हैं? हो सकता है इरोम और उनके सलाहकारों ने कामयाबी के लिए कोई खास रणनीति तैयार की हो.

खास बात ये है कि मुख्यमंत्री इबोबी सिंह भी मैती समुदाय से ही आते हैं और उसी के बूते 15 साल से कुर्सी पर कब्जा जमाए हुए हैं. अब वो अपनी चौथी पारी की तैयारी में हैं. उनके खिलाफ असम के तरुण गोगोई जैसा असंतोष तो नहीं लेकिन एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर जरूर है.

बीजेपी मणिपुर में भी असम की तरह एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का ही फायदा उठाने की कोशिश में है. बीजेपी को जोर का झटका भी लगा है. बीजेपी एमएलए खुमुकचम जयकिशन फिर से कांग्रेस में लौट गये हैं. जयकिशन उन दो विधायकों में से एक हैं जिनके जरिये मणिपुर में बीजेपी का खाता खुला था.

जयकिशन बीजेपी की तीन सदस्यों वाली चुनाव समिति में भी थे और बीजेपी के युवा चेहरे के साथ साथ उन्हें पार्टी के सत्ता हासिल करने पर मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी माना जा रहा था.

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मणिपुर में बीजेपी के प्रभारी केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ साथ राम माधव, अजय जामवाल, रामलाल जैसे नेता चुनावी रणनीति तैयार कर रहे हैं.

कांग्रेस ने चुनाव के ऐन पहले मुख्यमंत्री इबोबी सिंह ने मणिपुर में सात नये जिले बनाकर ऐसी राजनीतिक चाल चली जिसकी काट बीजेपी नेताओं को समझ में नहीं आ रही है. कांग्रेस सरकार ने नगा बहुल इलाके के पहाड़ी जिलों से काटकर दो नये जिले बनाये हैं जिसकी मांग कुकी समुदाय काफी पहले से कर रहा था. दरअसल, सिर्फ कूकी बहुल इलाकों में विधानसभा की छह सीटें हैं.

इन सबके बावजूद राज्य में उग्रवाद, फर्जी मुठभेड़, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच टकराव ऐसे मसले हैं जिन्हें उछाल कर बीजेपी कांग्रेस शासन को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही है.

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