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Updated: 21 सितम्बर, 2017 08:04 PM
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अभी तक आम आदमी पार्टी की ओर से एक ही बात साफ है - यूपी की ही तरह वो हिमाचल प्रदेश का चुनाव नहीं लड़ने जा रही है. यूपी के बारे में आप की दलील रही कि उसके पास बैंडविथ नहीं थी, हिमाचल को लेकर पार्टी कह रही है कि वहां उसका सपोर्ट बेस नहीं है.

पंजाब, गोवा और फिर दिल्ली के एमसीडी चुनावों में मुहंकी खाने के बाद आप अपनी रणनीति में खासा बदलाव करने जा रही है - दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का पहले से कहीं ज्यादा एक्टिव होना उसी का हिस्सा है.

गुजरात चुनाव को लेकर तो आप ने बहुत पहले ही एलान कर दिया था. अब आखिरी फैसला गुजरात में टीम केजरीवाल के फीडबैक पर निर्भर करता है जब उनकी मुलाकात 6 जून को होगी.

सिर्फ काम पर फोकस

पंजाब और गोवा चुनावों की तैयारियों के दिनों में ही अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि आप गुजरात की 182 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. तब उन्हें जो उम्मीद रही उस पर पानी फिर गया. सबसे ज्यादा झटका तो दिल्ली में एमसीडी चुनावों में लगा.

केजरीवाल की दिल्ली में बढ़ी सक्रियता बता रही है कि किस तरह वो काम पर फोकस करने लगे हैं. केजरीवाल को शायद इस बात का अहसास हो गया है कि उनकी बातों से लोग ऐसी राय बनाते हैं जो उनके खिलाफ जाती है. कभी वो कहते हैं कि दिल्ली छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा और कभी कहते हैं कि पंजाब में ही खूंटा गाड़ कर डटा रहूंगा. ये बातें केजरीवाल को दिल्ली और पंजाब दोनों जगहों से दूर कर देती है.

arvind kejriwalनजर दिल्ली पर भी... दूर भी...

ऐसे में अगर केजरीवाल दिल्ली पर फोकस करते हैं तो आप के लिए इससे बेहतर फिलहाल तो कुछ हो नहीं सकता. हां, अगर दिल्ली की ही तरह पंजाब पर भी उन्होंने ध्यान दिया तो आप के लिए फायदे की बात होगी - क्योंकि दिल्ली के बाद पंजाब ही उनके काम आया है. पंजाब में सत्ता नहीं मिली तो क्या हुआ, विपक्ष की भूमिका भी तो लोकतंत्र में उतनी ही अहमियत रखती है.

विस्तार सोच समझ कर

आप के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ एक बार टूट पड़ता तो बात और होती - हालत तो ये है कि कई तरफ से पहाड़ों के टुकड़े टूट कर लगातार गिर रहे हैं. चुनावों में हार के बाद आम आदमी पार्टी में बगावत शुरू हो गयी जिसके बारे में कहा गया कि तख्तापलट की साजिश भी रही. पहली बार सीधे सीधे केजरीवाल पर दो करोड़ कैश वाले आरोप भी उन्हीं के पुराने साथी कपिल मिश्रा ने लगाये - और उनकी मिसाइलें अभी थमी नहीं हैं.

केजरीवाल के सामने एक नई मुश्किल ये है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में काम करने के लिए उन्हें कोई अफसर नहीं मिल रहा. खबर है कि दर्जन भर अफसरों ने सीबीआई के रडार पर आने के डर से विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया है. आप की मुश्किलों की फेहरिस्त में पैसे की कमी भी बतायी जा रही है. पंजाब, गोवा और एमसीडी चुनावों के बाद पार्टी के सामने फंड का भी संकट बताया जा रहा है.

केजरीवाल गुजरात का कई बार दौरा कर चुके हैं. एमसीडी चुनाव से पहले भी उनके गुजरात जाने का कार्यक्रम था लेकिन उसे टालना पड़ा. दिल्ली के हार के बाद तो विचार इस बात पर भी होने लगा कि गुजरात चुनाव लड़ने को लेकर पुनर्विचार करना चाहिये. गुजरात चुनाव केजरीवाल के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि वो मोदी को चैलेंज करना जारी रखना चाहेंगे. यूपी और दिल्ली के एमसीडी चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है कि मोदी की लोकप्रियता एक बार फिर ट्रैक पर है - और गुजरात में मोदी को चुनौती देने का परिणाम भी वैसा ही हो सकता है जैसा वाराणसी में चुनाव लड़कर उन्होंने अनुभव किया.

वैसे अगर आम आदमी पार्टी गुजरात चुनाव से अलग रहने का फैसला करती है तो अगले साल भी उसके पास कई मौके हैं. आप ने 2018 में होने जा रहे राजस्थान और मध्य प्रदेश चुनावों पर भी विचार शुरू कर दिया है. जहां तक एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर की बात है, वो तो गुजरात पर भी लागू होती है लेकिन मोदी फैक्टर अगर भारी पड़ा तो बीजेपी के सामने कोई बड़ी बाधा नहीं खड़ा कर पाएगा.

कांग्रेस नेताओं का मानना रहा है कि केजरीवाल का उन्हीं राज्यों पर जोर होता है जहां पार्टी लड़ाई में मजबूत होती है. आप के भीतर भी एक धारणा रही है कि जहां बीजेपी और कांग्रेस सीधी लड़ाई में होती हैं वहां तीसरे का स्कोप बनता है - और आम आदमी पार्टी उसी का फायदा उठाना चाहती है. गुजरात के साथ साथ राजस्थान और मध्य प्रदेश इस लिहाज से बड़े सटीक बैठते हैं.

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