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Updated: 13 अप्रिल, 2017 02:26 PM
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दिल्ली उपचुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की जमानत भी जब्त हो गयी है. राजौरी गार्डन विधानसभा सीट आप के विधायक जनरैल सिंह के इस्तीफा देने से खाली हुई थी. जनरैल ने लांबी में प्रकाश सिंह बादल को चुनौती दी थी, लेकिन वहां वो भी जमानत नहीं बचा पाये थे.

पंजाब और गोवा की हार के बाद गुजरात की सत्ता पर नजर लगाये अरविंद केजरीवाल के लिए ये बहुत बड़ा झटका है, लेकिन क्या इस हार से आम आदमी पार्टी कोई सबक लेगी? आप उम्मीदवार का बीजेपी को चुनौती देना तो दूर उसे तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा है.

उपचुनाव का ये रिजल्ट केजरीवाल के लिए कहीं खतरे की घंटी तो नहीं?

1. पंजाब-गोवा की बात और थी : पंजाब और गोवा चुनाव में आप की हार और दिल्ली उपचुनाव में शिकस्त बिलकुल अलग है. दिल्ली के ही लोगों ने ही दो साल पहले विधानसभा चुनाव में सिर आंखों पर बिठाया था - अब उतारने क्यों लगे? जिस पार्टी को 70 में से 67 सीटों पर जीत मिले और अपनी ही जीती हुई सीट पर उसे तीसरे स्थान पर भेज दिया जाये, मामला गंभीर तो है ही बहुत बड़ा सबक भी.

2. जनता बार बार माफी नहीं देती : पहली बार की 49 दिन की सरकार के लिए केजरीवाल ने माफी मांगी और दिल्लीवालों ने दिल से माफ किया. तब कहते रहे - 'दिल्ली छोड़ कर नहीं जाऊंगा.' जब पंजाब पहुंचे तो बोला - 'यहीं खूंटा गाड़ कर यहीं बैठूंगा.' लोग भला किस बात पर यकीन करें?

3. दिल्ली मॉडल खारिज : पंजाब और गोवा में केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली जैसी सरकार देने का वादा किया था, लेकिन लोगों को नहीं सुहाया. लगता है लोगों को दिल्ली मॉडल नहीं भा रहा. केजरीवाल के लिए ये भी एक सबक है - फिर से विचार करना होगा कि कहां कमी है.

manish-kejriwal-650_041317015901.jpgये तो आप के अच्छे दिन जाने लगे...

4. पब्लिक सब जानती है : रामलीला आंदोलन के वक्त केजरीवाल सांसदों को संगीन जुर्म के अपराधी बताते रहे. फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार टारगेट कर और 'कायर' और 'मनोरोगी' बताते रहे. सिर्फ भाषणबाजी और ट्विटर पर पोस्ट कर लंबे अरसे तक जनता का समर्थन बरकरार नहीं रखा जा सकता. ये पब्लिक सब जानती है, लेकिन बताने के लिए उसे ऐसे ही मौकों का इंतजार रहता है.

5. गुजरात मॉडल से बेहतर : केजरीवाल का अगला मिशन गुजरात चुनाव है. वो चाहें तो मोदी पर हमले जारी रख सकते हैं, लेकिन बीजेपी के गुजरात मॉडल से बेहतर वो गुजरात को क्या देंगे? उनकी ओर से ऐसा कोई प्लान नहीं सामने आया है. फिर तो पंजाब और गोवा के बाद गुजरात चुनाव भी ऐसे ही बीत जाएगा - अगर कोई ठोस रणनीति नहीं तैयार की जाती.

6. अखिलेश जैसा हाल : अगर आप की दिल्ली सरकार को लगता है कि उसने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया है तो भूलना नहीं चाहिये यूपी में अखिलेश सरकार ने भी तो एक्सप्रेस वे और मेट्रो के नाम पर वोट मांगा था. जनता ने कानून व्यवस्था और दूसरे मामलों में बीजेपी को तरजीह दी. दिल्ली में आप को भी लोगों ने कुछ वैसा ही सबक सिखाने की कोशिश की है.

7. भ्रष्टाचार का क्या हुआ : केजरीवाल की राजनीति में एंट्री ही सिस्टम से भ्रष्टाचार मिटाने को लेकर हुई थी. शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार के खिलाफ करप्शन के मामलों की लंबी फेहरिस्त सामने आई है. कहां गया लोकपाल? लोकपाल न सही, अब उसका जिक्र भी क्यों नहीं होता?

8. आप नेताओं पर आरोपों का अंबार : आप के मंत्री सत्येंद्र जैन मनी लॉन्डरिंग केस में सीबीआई के घेरे में हैं. दर्जन भर विधायक और मंत्री जेल की हवा खा चुके हैं जिन पर फर्जी डिग्री से लेकर बलात्कार जैसे संगीन आरोप हैं. आखिर कब तक मोदी सरकार को कोसते हुए वक्त गुजारा जा सकता है?

9. EVM के सहारे कब तक : आप के नेता लगातार EVM और चुनाव आयोग पर सवाल खड़े कर रहे हैं. यहां तक कि कांग्रेस नेता एम वीरप्पा मोइली ने अपनी ही पार्टी के इरादे पर शक जाहिर किया है. केजरीवाल को तो नहीं मोइली ने EVM पर कांग्रेस के स्टैंड को हार का बहाना बताया है. केजरीवाल और उनकी पार्टी भले इंकार करे, बात में दम तो है.

दिल्ली में आप का सरकारी दफ्तर खाली करने के उप राज्यपाल के कदम को केजरीवाल राजनीति से प्रेरित बता सकते हैं - राजौरी गार्डन की जनता के फैसले के बारे में क्या ख्याल होगा उनका?

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