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Updated: 24 मई, 2015 06:01 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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क्या जीतन राम मांझी एक बार फिर बिहार की राजनीति के सेंटर प्वाइंट बनने जा रहे हैं? आरजेडी नेता लालू प्रसाद के बयान के बाद उनकी अहमियत फिर से बढ़ गई है. लालू का कहना है कि हमारी कोशिश धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट रखने की होनी चाहिए - और इसके लिए वो मांझी को भी साथ लेने के पक्ष में हैं. जाहिर है ये बात नीतीश को तो कतई रास नहीं आएगी.

लालू के लिए कितने अहम हैं मांझी

इससे पहले लालू की पार्टी आरजेडी के नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने मांझी को नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम बनाने की सलाह दी थी. उस बयान के पीछे भी लालू की ही सहमति मानी जा रही थी.

अब मांझी को लेकर लालू के ताजा बयान के क्या मायने क्या हो सकते हैं?

जनता परिवार का विलय अब तक नहीं हो सका है. कवायद तो जारी है लेकिन इसकी संभावना भी काफी कम नजर आ रही है. ऐसे में लालू प्रसाद और और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टियों में गठबंधन होगा. दोनों नेता अपने खाते में ज्यादा सीटें लेने की कोशिश में हैं. सीटें तो उसी को ज्यादा मिलेंगी जो ज्यादा मजबूत पड़ेगा या जिसके पास कोई और तर्कसंगत आधार होगा.

बताते हैं कि नीतीश पिछले विधान सभा चुनाव में मिली सीटों के आधार पर बंटवारा चाहते हैं. लालू चाहते हैं कि 2014 के लोक सभा चुनाव शेयर के हिसाब से बंटवारा हो. अगर वोट शेयर के लिहाज से देखा जाए तो लालू की ज्यादा दावेदारी बनती है. इस हिसाब से देखा जाए तो 32 विधानसभा क्षेत्रों में आरजेडी नंबर वन रही जबकि 110 क्षेत्रों में वो दूसरे स्थान पर रही. इसी तरह जेडीयू 18 विधानसभा क्षेत्रों में पहले स्थान पर जबकि 19 क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही. इसी तरह 14 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस पहले स्थान पर और

43 क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही. अगर गठबंधन होता है तो कांग्रेस की भी अपनी दावेदारी बनेगी. कांग्रेस भी फिलहाल लालू और नीतीश के साथ खड़ी है.

एक चर्चा और है. कहते हैं कार्यकर्ताओं से लालू को फीडबैक मिला है कि लोगों के बीच नीतीश के मुकाबले मांझी का व्यक्तिगत पलड़ा भारी हो सकता है. इसकी वजह ये है कि दलितों की सहानुभूति अब भी मांझी के साथ है. बिहार की राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों का मानना है कि मांझी का नाम उछाल कर लालू ज्यादा सीटों के लिए दबाव बनाने की कोशिश में हो सकते हैं.

बीजेपी के लिए मांझी की अहमियत

विश्वास मत के मामले में बीजेपी ने खुलकर मांझी का साथ देने का एलान किया था. ये अलग बात है कि मांझी ऐन वक्त पर खुद ही पीछे हट गए. बाद के दिनों में बीजेपी की ओर से मांझी को लेकर कोई नया स्टैंड सामने नहीं आया है. ये बात अलग है कि दलित वोटों को खींचने के लिए ही उसने पटना रैली के लिए अंबेडकर जयंती का दिन चुना और दलितों वोटों को बीजेपी के पक्ष में करने के लिए कार्यकर्ताओं को अपनी खास रणनीति समझाई. जहां तक मांझी की बात है तो बीजेपी की मजबूरी ये है कि वो न तो मांझी को दूर होने देना चाहती है और न ही सवर्ण वोटों को हाथ से जाने देना चाहती है. असल में बीजेपी का सवर्ण वोट बैंक मांझी को पसंद नहीं करता. लेकिन नीतीश को टारगेट करने के लिए मांझी से बेहतर कोई और उपाय भी नहीं है.

तीसरा मोर्चा भी मांझी के बगैर नहीं

तीसरे मोर्चे की बात उछाली है मधेपुरा से सांसद राजेश रंजन यानी पप्पू यादव ने. अब इस बात में कोई दम है या नहीं ये आने वाला वक्त तय करेगा. आरजेडी से निकाले गए पप्पू यादव भी मांझी को साथ लेने की बात काफी पहले से कर रहे हैं. जब उन्होंने अपना अलग फोरम जनक्रांति मोर्चा बनाया तो मांझी को लेकर तीसरा मोर्चा बनाने का इरादा जाहिर किया. पप्पू यादव का कहना था कि मांझी और कांग्रेस को साथ लेकर वो तीसरे मोर्चे के तौर पर एक मजबूत विकल्प देना चाहते हैं. हालांकि, उसके कुछ ही दिन बाद उन्हें बीजेपी के एक बड़े नेता के संपर्क में देखा गया.

चाहे लालू प्रसाद हों या बीजेपी, दोनों के लिए मांझी एक कारगर हथियार नजर आ रहे हैं. मांझी का सबसे बड़ा फायदा ये है कि वो जिसके भी साथ रहेंगे उसे दलित वोट बैंक का फायदा तो मिलेगा ही. लगे हाथ वो नीतीश को वो अपनेआप नुकसान पहुंचाएंगे. यही बात नीतीश को ज्यादा खटकती है. जो भी हो, इतना तो है कि एक बार फिर बिहार की राजनीति मांझी के इर्द गिर्द घूमने लगी है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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