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Updated: 04 अगस्त, 2017 01:39 PM
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बदलाव का मतलब तो तभी समझ में आता है जब उसका प्रभाव दिखे. फिर तो हफ्ते भर में ही बिहार में बदलाव का असर दिखने लगा है. भोजपुर में गौरक्षकों ने ट्रक रोक कर उस पर सवार तीन लोगों की पिटाई कर दी. हमलावरों को ट्रक में मीट भरे होने का शक था जिसे पश्चिम बंगाल ले जाया जा रहा था.

गौरक्षकों के इस हमले से कुछ पुराने सवाल फिर से प्रासंगिक हो गये हैं तो कुछ नये भी खड़े हो गये हैं. पुराना सवाल तो यही है कि इस मसले पर तीन बार प्रधानमंत्री के बयान देने के बाद भी यथास्थिति क्यों बनी हुई है? नया सवाल ये है कि क्या ये हमला बिहार में बीजेपी की सत्ता में हिस्सेदारी के लिए वेलकम नोट है? या फिर क्या ये हमला बीजेपी के बिहार की सत्ता में शामिल होने की दस्तक है, जिसे लेकर बीजेपी आरोपों के घेरे में है?

फिर कठघरे में बीजेपी

अन्य राज्यों के बाद बिहार में भी गौरक्षकों के हमले ने विपक्ष को मौका दे दिया है. सीपीएम नेता सीताराम येचुरी का कहना है, "इससे साफ हो गया है कि बीजेपी ने बिहार में सत्ता संभाल ली है. अब सिर्फ हिंदुत्व की नीतियों पर अमल होगा और वो मुख्यमंत्री बने रहेंगे." येचुरी की इस टिप्पणी में निशाने पर नीतीश कुमार भी हैं. आरजेडी ने भी कहा है कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद तो राज्य में गौरक्षकों के कहर और मॉब लिंचिंग की घटनाएं तो होंगी ही.

cow transportबिहार में भी गौरक्षों का खौफ...

इस बीच मध्यप्रदेश के बैतूल से भी ऐसी ही घटना की खबर है. वहां कुछ लोगों ने चार युवकों को बांध कर बेरहमी से पिटाई की. इन स्वयंभू गौरक्षकों को चारों के गौ तस्कर होने का शक था. पुलिस तब सक्रिय हुई जब इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. फिर पुलिस ने पिटाई से जख्मी चारों युवकों को गौ तस्करी के आरोप में तो गिरफ्तार कर लिया लेकिन हमलावरों तक नहीं पहुंच पाई क्योंकि वे भागने में कामयाब रहे.

इंडियास्पेंड के डाटा से पता चलता है गाय के नाम पर हिंसा की घटनाएं आधे से ज्यादा उन राज्यों में हुई हैं जहां बीजेपी की सरकारें हैं. बिहार और मध्य प्रदेश की ताजा घटनाओं को छोड़ कर पिछले आठ साल में ऐसी 70 घटनाएं रिपोर्ट की गयी हैं. 27 जुलाई तक के आंकड़ों से पता चलता है कि 70 में से 38 मामले उन राज्यों से हैं जहां बीजेपी का शासन है. हाल फिलहाल झारखंड, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश से ऐसी खबरें आई हैं जहां बीजेपी की सरकारें हैं.

प्रधानमंत्री की अपील भी बेअसर

गौरक्षा के नाम पर हत्या और बीफ पर बहस ने ज्यादा जोर पकड़ा जब सितंबर 2015 में जब दादरी में एखलाक की हत्या कर दी गयी. ये तभी की बात है जब बिहार में विधानसभा के चुनाव की तैयारियां चल रही थीं. गौरक्षकों के हमले की पहली घटना में सामने तभी आयी है जब चुनाव के 20 महीने बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार बना ली है. राजस्थान में पहलू खान से लेकर ईद से पहले ट्रेन में जुनैद की भीड़ द्वारा हत्या जैसी घटनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है जिसमें केंद्र की मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर रही है.

हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी कह चुके हैं कि गौरक्षा के नाम पर उत्पात करने वालों का राज्य सरकारें डॉजियर बनायें. प्रधानमंत्री मोदी तो महात्मा गांधी और विनोबा भावे की दुहाई देकर भी किसी को कानून हाथ में न लेने की अपील की. मॉनसून सेशन के शुरू होने से पहले भी मोदी ने गौरक्षा के नाम पर कानून हाथ में लेने वालों के खिलाफ राज्य सरकारों से कार्रवाई के लिए कहा.

इस बीच रिटायर हो चुके 100 से ज्यादा फौजियों ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में गौरक्षकों द्वारा मुस्लिमों और दलितों पर हमलों की निंदा की है. चिट्ठी में पूर्व सैनिकों ने फ्री-स्पीच पर लगाम कसे जाने और भय का माहौल कायम किये जाने पर चिंता जताई है.

बजरंग दल का ट्रेनिंग प्रोग्राम

बजरंग दल ने अपने ट्रेनिंग प्रोग्राम में गौरक्षा को भी शामिल कर लिया है जिसमें हिस्सा लेने वालों को तमाम कानूनी जानकारी गयी. उन्हें गोरक्षा कानून, एनिमल ट्रांसपोर्ट एक्ट और पशु क्रूरता कानून के बारे में भी बताया जा रहा है. ट्रेनिंग कैंप के साथ ही वर्कशॉप के जरिये भी उन्हें बताया जा रहा है कि कानून के आधार पर ही वे काम करें और यदि कहीं कुछ गलत हो रहा है तो कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करें.

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