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Updated: 19 मई, 2015 12:17 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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तारीख अभी पक्की नहीं है. मगर, ये तो तय हो गया है कि सितंबर-अक्टूबर के दरम्यान ही बिहार में चुनाव होंगे. लोक सभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही ज्यादातर पार्टियां बिहार चुनाव की तैयारियों में जुटी हैं. अगर अब तक कोई सक्रिय नहीं हुआ है तो वो है कांग्रेस.

मैदान में उतरने से पहले इम्तिहान

243 सीटों पर विधानसभा चुनाव से पहले 24 सीटों के लिए बिहार विधान परिषद के चुनाव होने हैं. इसको लेकर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की पार्टी ने 10-10 सीटें आपस में बांट ली हैं और चार सीटें कांग्रेस और सीपीआई के लिए छोड़ी है. वैसे दोनों नेताओं ने यहां तक कह डाला है कि अगर किसी को मंजूर नहीं होगा तो बाकी सीटें भी वे आपस में बांट लेंगे. इस बीच खबर है कि सीपीआई और सीपीएम ने दो-दो सीटों पर लड़ने का फैसला किया है. इन चार में एक सीट मधुबनी भी है जहां दोनों पार्टियां कॉमन उम्मीदवार उतारने पर सहमति बनाने की कोशिश कर रही हैं. उधर, सीपीआई-एमएल के भी 10 सीटों पर लड़ने की खबर है. अब क्या कांग्रेस दो सीटों पर ही संतोष करेगी या कुछ और कदम उठाएगी? अभी ये साफ नहीं हो पाया है.

बिहार में भी तीसरा मोर्चा

लोक सभा चुनावों की तरह बिहार विधान सभा चुनाव से पहले भी तीसरे मोर्चे की आहट सुनाई दी है. अगर ऐसा होता है तो इसमें कांग्रेस की अहम भूमिका होगी. आरजेडी से निकाले जाने के बाद मधेपुरा से सांसद राजेश रंजन यानी पप्पू यादव ने जनक्रांति अधिकार मोर्चा के नाम से नया फोरम खड़ा किया है. पप्पू यादव का कहना है कि इसका मकसद एक मजबूत तीसरा विकल्प खड़ा करना है. पप्पू यादव का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और कांग्रेस के साथ मिल जाए तो ऐसा मुमकिन हो सकता है.

अब तक की तैयारी

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो चुनावों के लिए ही एड़ी चोटी का जोर लगाकर मांझी से मुख्यमंत्री की कुर्सी वापस ले पाए. मांझी भी अपनी नई पार्टी के साथ मैदान में उतरने का इरादा जता चुके हैं. उनके साथ प्लस प्वाइंट ये है कि वो बीजेपी के संपर्क में तो हैं ही पप्पू यादव का भी उन्हें न्योता मिल चुका है. पिछले महीने बीजेपी ने पटना के गांधी मैदान में बड़ा कार्यकर्ता सम्मेलन किया था - और बड़े पैमाने पर कार्यकर्ताओं को चुनावी तैयारी में लगा दिया है.

जनता परिवार का तो औपचारिक विलय बिहार चुनाव के चलते ही रोक दिया गया है. बिहार में बीजेपी को रोकने के नाम पर लालू यादव सबको एकजुट करने में जुटे हुए हैं. इस रणनीति में नीतीश को आगे कर चुनाव लड़ने की तैयारी है, अगर सीटों का बंटवारा सबके मनमाफिक हो जाए. लालू के हिसाब से तो कांग्रेस को भी उनकी मुहिम का हिस्सा होना चाहिए. हालांकि, कांग्रेस की कोई सक्रियता दूर दूर तक नजर नहीं आ रही है.

कांग्रेस की सक्रियता

मोटे तौर पर तो कांग्रेस अब तक लालू की मुहिम का हिस्सा ही नजर आ रही है. पिछले महीने कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी यही संकेत दिए थे कि बीजेपी को रोकने के लिए पार्टी कुछ भी करने को तैयार है.

संसद से लेकर सड़क तक किसानों के मुद्दे पर राहुल गांधी हमलावर रुख अपनाए हुए हैं. वो महाराष्ट्र, तेलंगाना और अमेठी तो जा रहे हैं लेकिन बिहार को लेकर कोई सुगबुगाहट तक नहीं दिखाई दे रही है. अमेठी में भी मुद्दा और तेवर वही है जिसका आगाज दिल्ली के रामलीला मैदान की रैली में हुआ था और फिर संसद तक पहुंचा. बिहार को लेकर अभी राहुल गांधी का कोई कार्यक्रम भी फाइनल नजर नहीं आ रहा है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की रस्म अदायगी ही नजर आई थी. कांग्रेस को बिहार के चुनावी नतीजों की आहट भी पहले ही मिल चुकी है क्या? कांग्रेस के मौजूदा तेवर तो यही बताते हैं कि वो बिहार विधानसभा नहीं बल्कि अगले लोक सभा चुनाव पर फोकस कर रही है. छुट्टी से लौटने के बाद जिस तरह से राहुल गांधी सक्रिय और केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ हमलावर हुए हैं वे भी यही संकेत दे रहे है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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