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Updated: 10 मार्च, 2017 06:07 PM
सुजीत कुमार झा
सुजीत कुमार झा
  @suj.jha
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चुनाव उत्तरप्रदेश में लेकिन उसका असर बिहार में महसूस किया जा सकता है. सभी की नजर उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम पर है. अटकलों का बाजार गर्म है. यह कयास लगया जा रहा है कि उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम का बिहार की राजनीति पर क्या असर कर सकता है. चर्चा जोरों पर है कि अगर उत्तरप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनती है तो बिहार में भी राजनैतिक परिवर्तन हो सकता है. और अगर उत्तरप्रदेश में समाजवादी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनती है तो आरजेडी और लालू प्रसाद यादव को मनोवैज्ञानिक बढत मिलेगी.

यहां एक बात गौर करने वाली है कि लालू प्रसाद यादव 2010 के बाद से बिहार की राजनीति के हाशिए पर थे. लेकिन 2012 में उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव की जीत ने उन्हें फिर से अपने को मजबूत करने का एक बल दिया. संयोग से कुछ महीनों बाद जेडीयू और बीजेपी का रिश्ता टूटा और उन्हें राजनीति का एक नया रास्ता मिला. इसलिए उनके लिए समाजवादी पार्टी का फिर से उत्तरप्रदेश में चुनाव जीतना काफी मायने रखता है.

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बिहार में महागठबंधन की सरकार है जिसमें जनता दल यू आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन है. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने शुरू से ही समाजवादी पार्टी का समर्थन किया. और इस समर्थन के मद्देनजर उत्तरप्रदेश में चुनाव न लडने का ऐलान बहुत पहले कर दिया. बाद में जब कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी का गठबंधन हुआ लेकिन लालू प्रसाद का समर्थन जारी रहा. उन्होंने उत्तर प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों के लिए प्रचार किया. हालांकि ये बहुत ज्यादा नहीं था फिर भी जहां-जहां गठबंधन ने बुलाया वो गए. बनारस पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और पूरे उत्तरप्रदेश चुनाव में नरेन्द्र मोदी ही लालू प्रसाद यादव के निशाने पर थे.

दूसरी तरफ चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद सबसे पहले 2016 मई में बनारस से ही उत्तर प्रदेश में अपने चुनाव अभियान की शुरूआत की. अपनी पार्टी के उत्तरप्रदेश में विस्तार के लिए उन्होंने बनारस लखनऊ पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कई जनसभाएं की. समाजवादी पार्टी मे जब पारिवारिक झगड़े चल रहे थे तब नीतीश कुमार ने इशारों इशारों में अखिलेश यादव को साथ में चुनाव लड़ने का न्यौता भी दिया था. लेकिन चुनाव के ऐन पहले जनता दल यू ने चुनाव से अपने पांव खीच लिए. पार्टी ने अचानक ऐलान किया कि वो उत्तरप्रदेश में अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी और ना ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी के लिए प्रचार के लिए वहां जायेंगे. पूरे चुनाव में नीतीश कुमार ने न तो किसी के समर्थन में बयान दिया और ना ही किसी के विरोध में. यही नहीं जब उत्तरप्रदेश में जनता दल यू प्रदेश अध्यक्ष ने समाजवादी पार्टी को समर्थन देने की बात कही तो उसे पार्टी से ही निकाल दिया गया.

कांग्रेस तो बिहार में भी सरकार में है और उत्तरप्रदेश में भी समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड रही है. यानि देखा जाए तो बिहार की महागठबंधन पार्टी उत्तरप्रदेश में जाकर बिखर गई. यानि बिहार मे चट्टानी एकता का दावा करने वाली महागठबंधन उत्तरप्रदेश में क्यों बिखर गई. सबसे पहली बात नीतीश कुमार ने अपने बयान में पहले ही कहा था कि उत्तरप्रदेश में गठबंधन है महागठबंधन नही. जबतक समाजवादी और बीएसपी एक साथ नही आते तबतक उत्तरप्रदेश में महागठबंधन नहीं बन सकता है. दूसरी बात ये भी है कि बिहार के चुनाव में जिस तरीके से समाजवादी पार्टी और खासकर उस समय के पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अब पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने न सिर्फ बिहार में अपने उम्मीदवार उतारे बल्कि उन्होंने अपनी जनसभाओं में बिहार में बीजेपी की सरकार बनने का दावा भी किया. एक समय ये भी था कि जब नीतीश कुमार ने अपने नेतृत्व में जनता दल यू आरजेडी और समाजवादी पार्टी के विलय का बहुत बड़ा बीडा उठाया था जिसका राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह को बनाया जाना था. लेकिन ऐन वक्त पर मुलायम सिंह ने अपने हाथ खींच लिए. इसलिए नीतीश कुमार ने इशारों में ही सही अखिलेश को अपने साथ आने का न्यौता दिया लेकिन मुलायम सिंह को नहीं.

चुनाव परिणाम के ठीक एक दिन पहले वैशाली में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव 343 करोड की लागत से स्वीकृत 17 सड़क परियोजनाओं का कार्यराभ्भ कर रहे हैं, लेकिन इस समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कोई तस्वीर नहीं है, ना ही विज्ञापन में और ना ही सभा स्थल पर. यही नहीं सभा स्थल पर जेडीयू और कांग्रेस का झंडा तक नहीं है. ऐसा लग रहा है जैसे यह आरजेडी का कार्यक्रम हो. यह एक दृश्य है तो दूसरी तरफ आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने तमाम एजिट पोल के रिजल्ट को खारिज करते हुए कहा कि उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी. हालांकि उनके चेहरे शब्दों का साथ नहीं दे रहे हैं पर हो सकता है कि सरकार बने लेकिन उस अंदाज में जैसे 2012 में अखिलेश यादव ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी.

उधर एनडीए के घटक दल और हम पार्टी के अध्यक्ष बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने सबसे स्पष्ट कहा कि उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम का असर बिहार की राजनीति पर भी पडेगा. अगर बिहार में समाजवादी और कांग्रेस की सरकार बनती है तो लालू प्रसाद यादव मजबूत होगें. और अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो नीतीश कुमार पर लालू का राजनैतिक दबाव कम होगा, अगर लालू यादव ज्यादा दबाव बनाते हैं तो नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के रास्ते सदैव खुले हुए हैं.

लेकिन बीजेपी और एनडीए के नेताओं का मानना है कि अगर उत्तरप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनती है तो बिहार के गठबंधन में भी परिवर्तन हो सकता है. पिछले कुछ हफ्तों से बीजेपी की तरफ से लगातार बयान आ रहे हैं कि नीतीश कुमार ने बीजेपी को छोड़ा है बीजेपी ने उन्हें नहीं छोडा. पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार के मिजाज में भी परिवर्तन देखा गया है. कई मुद्दों पर उन्होंने प्रधानमंत्री के कदम का समर्थन किया है चाहे सर्जिकल स्ट्राईक का मामला हो या फिर नोटबंदी का.

अब काफी कुछ उतरप्रदेश के चुनाव परिणाम पर निर्भर करता है दोनों की राजनीतिक जमीन करीब करीब एक जैसी है, ऐसे में कुछ न कुछ असर तो पड़ेगा ही भले ही इसकी समय सीमा अभी तय न हो.

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लेखक

सुजीत कुमार झा सुजीत कुमार झा @suj.jha

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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