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Updated: 21 जुलाई, 2016 07:30 PM
बालकृष्ण
बालकृष्ण
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बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह के एक आपत्तिजनक बयान ने दलितों का दिल जीतने की बीजेपी की कोशिशों पर पलीता लगा दिया है. मायावती के अपमान के खिलाफ बीएसपी के कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को लखनऊ की सड़कों पर जैसा जोरदार प्रदर्शन किया उससे बीजेपी नेताओं की नींद जरूर उड़ गई होगी. उधर संसद में मायावती ने खुद मोर्चा संभाला और कहा कि ये घटना दिखाती है कि बीजेपी अंबेडकर के सम्मान का नाटक तो करती है लेकिन उसकी सोच नहीं बदली है.

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दयाशंकर को फौरन पार्टी से निकाल कर और उनके बयान के लिए अरुण जेटली ने खेद प्रकट करके बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की. लेकिन विरोधी पार्टियों के तेवर को देखकर लगता है की दयाशंकर का यह बयान चुनाव में बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है. अब बहुजन समाज पार्टी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस और यहां तक की समाजवादी पार्टी भी इस बयान के आधार पर बीजेपी को दलित विरोधी साबित करने में जुट गए हैं.

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 मायावती पर बीजेपी नेता की अभद्र टिप्पणी

हर कीमत पर यूपी जीतने की मुहिम में लगी बीजेपी के लिए, दलितों को मायावती के खेमे से तोड़कर, भगवा झंडे के नीचे लाना रणनीति का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है. लोकसभा के चुनाव में मोदी की लोकप्रियता के आधार पर बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में दलितों का वोट हासिल करने में शानदार सफलता पाई थी. तब दलितों की राजनीति करने वाली मायावती की हालत ऐसी हो गई थी की उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश में 80 में से एक भी सीट नहीं मिल पायी.

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हालांकि विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी के पास मोदी जैसा कोई चेहरा तो नहीं है और ना ही उसने अभी तक अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है. लेकिन दलित वोट बैंक की ताकत को समझते हुए बीजेपी से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार दलितों के बीच पैठ बनाने में लगे हुए हैं. बीजेपी के हौसले इसलिए भी बुलंद थे, क्योंकि बीएसपी में पिछले दिनों भगदड़ की सी हालत दिख रही थी. कुछ नेता पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं और कुछ के जाने की चर्चा आम थी. दलितों को जोड़ने की कोशिश के तहत ही बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने वाल्मिकी साधुओं के साथ स्नान किया और दलितों के घर जाकर भोजन किया. संघ ने अपने प्रचारकों से कहा कि वो हिंदू समाज के भीतर भेदभाव को मिटाने के लिए पूरी ताकत से काम करें. मकसद ये कि दलितों को उनकी हिंदू पहचान के साथ जोडो. हाल ही में कानपुर में हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक की बैठक में इस बारे में विस्तार से रणनीति बनी है.

लेकिन मायावती अगर दयाशंकर सिंह के बयान को दलित स्वाभिमान से जोड़ पाने में और इस बयान की वजह से सहानुभूति बटोरने में सफल होती हैं तो बीजेपी की कोशिशों को बड़ा झटका लग सकता है. मायावती के खिलाफ दयाशंकर सिंह का बयान वैसे ही तूल पकड़ सकता है, जैसे बिहार चुनाव के दौरान आरक्षण को लेकर दिए गए मोहन भागवत के बयान ने बीजेपी की हालत पतली कर दी थी.

एक सप्ताह पहले ही बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए दयाशंकर सिंह बलिया के रहने वाले हैं. उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत छात्र नेता के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय से की थी और 1999 में छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. बीजेपी ने उन्हें दो बार MLC का टिकट दिया लेकिन वो दोनों बार हार गए. एक बार बलिया से विधानसभा का चुनाव लड़ा तो पांचवे नंबर पर रहे. इसके बावजूद बीजेपी ने इस बार उन्हें उपाध्यक्ष बनाया और माना जा रहा था कि उन्हें विधानसभा का टिकट भी मिल सकता है. दयाशंकर सिंह को अहमियत देने के पीछे बीजेपी की सोच थी कि इससे पार्टी को पूर्वी उत्तर प्रदेश में फायदा होगा और क्षत्रिय तथा भुमिहार वोट बीजेपी के साथ जुड़ेंगे. दयाशंकर सिंह छत्रिय बिरादरी से हैं जिसका वोट कई बार समाजवादी पार्टी को मिलता रहा है.

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लेकिन बीजेपी को क्या पता था कि दया शंकर सिंह उसके लिए भस्मासुर निकलेंगे. बीएसपी गुरुवार को लखनऊ में जैसा जबरदस्त प्रदर्शन किया उससे ये बात साफ हो गई कि इस मुद्दे को वह चुनाव तक गरमाए रखने की भरपूर कोशिश करेगें. यह भी साफ हो गया की बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी. बीजेपी की बदकिस्मती यह है की दयाशंकर सिंह के बयान से दलितों का मुद्दा ऐसे वक्त उछला है जब गुजरात में दलितों पर कथित अत्याचार को लेकर कांग्रेस ओर बीएपी पहले से ही उसे घेरने में लगे थे. अब रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले से लेकर दलितों के बारे में दिए गए वीके सिंह के बयान एक बार फिर लोगों को याद कराए जा रहे हैं.

अभी हाल तक बीएसपी एक के बाद एक नेताओं के पार्टी छोड़ने से हैरान परेशान थी और ऐसा लग रहा था कि वह यूपी के रेस में पिछड़ रही है. लेकिन लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार कहा था कि बीजेप को हिट विकेट करके आउट होने की आदत हो गयी है. दयाशंकर सिंह इसके सबसे ताजा उदाहरण साबित हुए हैं.

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बालकृष्ण बालकृष्ण @bala200

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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