गेंद अब नीतीश के पाले में, मगर फैसला उनके लिए भी आसान नहीं
नीतीश को ये फैसला करना है कि क्या भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भी नीतीश तेजस्वी को अपने मंत्रिमंडल में रखना पसंद करेंगे? नीतीश का यह फैसला बिहार में महागठबंधन के भविष्य के साथ ही इस गठबंधन से जुड़े तीनों दल- जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का भी भविष्य तय करेगी.
-
Total Shares
लालू यादव ने दो टूक शब्दों में यह फैसला सुना दिया है कि तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देंगे. लालू के अनुसार एफआइआर को आधार बनाकर इस्तीफा नहीं लिया जा सकता. लालू के इस बयान के बाद गेंद अब नीतीश कुमार के पाले में हैं. नीतीश की पार्टी ने राजद को तेजस्वी पर फैसला लेने के लिए चार दिनों का समय दिया था. चार दिन की मियाद आज ख़त्म हो चुकी है.
अब नीतीश को ये फैसला करना है कि क्या भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भी नीतीश तेजस्वी को अपने मंत्रिमंडल में रखना पसंद करेंगे? नीतीश का यह फैसला बिहार में महागठबंधन के भविष्य के साथ ही इस गठबंधन से जुड़े तीनों दल- जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का भी भविष्य तय करेगी. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कल होने वाले बैठक के बाद नीतीश कुमार कुछ चौंकाने वाला फैसला ले सकते हैं?
मिस्टर क्लीन को लेन होंगे कड़े फैसलेनीतीश कुमार के लिए भी इस मुद्दे पर फैसला करना आसान नहीं रहने वाला है. क्योंकि उनके लिए जहां एक तरफ गठबंधन धर्म है, तो दूसरी तरफ उनकी खुद की छवि. नीतीश कुमार का अब तक का रिकॉर्ड बताता है कि नीतीश ने अभी तक भ्रष्टाचार पर कभी भी नरमी नहीं बरती है. उन्होंने पूर्व में भी कई मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप में बाहर कर दिया था. चाहे 2005 में जीतन राम मांझी को फर्जी डिग्री के मामले में बाहर करना हो या फिर 2009 में नागमणि को बाहर करना हो. और यही वजह है कि उन्होंने बिहार में अपने लिए सुशाशन बाबू की छवि गढ़ी है. इसी कारण से नीतीश कुमार पर तेजस्वी को निकालने के दबाव ज्यादा है.
मगर लालू के तर्क पर भी ध्यान दें तो उसे भी गलत नहीं ठहराया जा सकता. क्योंकि पूरे देश में ऐसे कम ही उदाहरण होंगे जहाँ नैतिकता के आधार पर किसी मंत्री ने एफआइआर दर्ज होने पर इस्तीफा दे दिया हो. तो ऐसे में सवाल यही है कि क्या नीतीश अपनी छवि के लिए महागठबंधन को संकट में डाल देंगे या तेजस्वी के आरोप के सिद्ध होने तक इंतजार करेंगे?
पुराना गठबंधन होगा एक विकल्पअगर नीतीश महागठबंधन से अलग होने का फैसला करते हैं, तो उनके पास भाजपा के साथ जाने का भी विकल्प होगा. भाजपा के साथ जाना भी नीतीश के लिए नुकसानदायक नहीं है. भाजपा के साथ जाकर नीतीश कुमार अगले कुछ वर्षों तक बिहार की अपनी गद्दी बचा सकते हैं. मगर इसके साथ ही उनका प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब शायद ख्वाब ही रह जायेगा.
तो अब देखना होगा की नीतीश आगे क्या फैसला लेते हैं. हालांकि इसकी संभावना कम ही है कि वो महागठबंधन को छोड़ भाजपा का दामन थामें.
ये भी पढ़ें-
महागठबंधन वो आम है जिसकी गुठली में दम भी है और दाम भी - कोई कैसे छोड़ दे भला
बिहार महागठबंधन : कांग्रेस तो लालू-नीतीश से भी ज्यादा परेशान लगती है
मूंछों पर ताव देकर तेजस्वी यादव इस्तीफा दे देते तो ज्यादा फायदे में रहते
आपकी राय