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Updated: 06 मई, 2017 11:31 AM
पीयूष पांडे
पीयूष पांडे
  @pandeypiyush07
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एनडीए और यूपीए के बीच राष्ट्रपति चुनाव की बिसात बिछनी शुरु हो गई है. आंकड़े कह रहे हैं कि राष्ट्रपति एनडीए का होगा. या कहें, जिसे बीजेपी चाहेगी, वो राष्ट्रपति बनेगा. लेकिन, राजनीतिक गतिविधियां कह रही हैं कि राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर कांग्रेस सीधी हार मानने के मूड में नहीं है.

पहले आंकड़ों के आइने में राष्ट्रपति चुनाव का खेल समझ लें-

राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट 11,04,546 हैं. एनडीए के तमाम दलों के विधायक-सांसद के कुल वोटों को जोड़ दें तो यह आंकड़ा है 5,37,683, यानी कुल वोटों के 48.64 फीसदी. यूपीए के पास हैं 3,91,739 यानी 35.47 फीसदी और अन्य के पास हैं 1,44,302 यानी13.06 फीसदी.

कांग्रेस को लगता है कि बीजेपी की सत्ता से रुठे वो दल जो ना तो एनडीए में हैं और ना ही यूपीए में, वे बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के साथ आ सकते हैं. और अगर ऐसा होता है तो 13.06 फिसदी वोट विपक्ष के साथ जुड़कर एनडीए को चुनौती देने की स्थिति में आ जाएंगे.

48.64 %  =     35.47% + 13.06 % = 48.53 %एनडीए     =     यूपीए   +   अन्य    

लेकिन फिर भी देखें तो अगर समूचा विपक्ष पूरी तरह एकजुट हो जाए तो भी वो एनडीए को मात नहीं दे सकता. लेकिन विपक्ष एकजुट होगा तो अंतर सिर्फ 0.11 फीसदी या कहें 1642 वोट का ही होगा.

president election, bjp

यानी राष्ट्पति चुनाव की बिसात पर हर मोहरा बीजेपी के हिसाब से चला तो उसकी जीत में कहीं कोई शक नहीं है. लेकिन-बैकफुट पर पहुंची यूपीए इतनी आसानी से हार मानना नहीं चाहती लिहाजा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एक तरफ यूपीए के सहयोगियों को एकजुट करने में जुटी है, तो दूसरी तरफ यह कोशिश भी है कि एनडीए से कोई घटक टूट जाए. और एनडीए में जिस एक दल के टूटने की थोड़ी सी आशंका है वो है शिवसेना. राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना के पास 2.34 फीसदी मत हैं यानी अगर यूपीए और अन्य के साथ शिवसेना भी मिल जाए तो बाजी एनडीए के हाथ से छिटक सकती है.

लेकिन तमाम नाराजगियों के बावजूद उद्दव ठाकरे ने राष्ट्रपति चुनाव में खुलेतौर पर बीजेपी के कैंडिडेट का विरोध करने का कोई संकेत अभी नहीं दिया है. वहीं दूसरी तरफ तेलंगाना राष्ट्र समिति ने जरुर ये संकेत दिए हैं कि वो राज्य के हित में बीजेपी कैंडिडेट को समर्थन दे सकती है. टीआरएस के पास 1.99 फीसदी मत हैं.

यूं तो विपक्ष की तरफ से शरद पवार, शरद यादव, मुलायम सिंह से लेकर मनमोहन सिंह और मीरा कुमार तक के नाम दौड़ में हैं, लेकिन पहला सवाल तो आपस में सहमति का है. क्योंकि एक नाम पर ठोस सहमति बनने के बाद ही ऐसे हालात बन सकते हैं कि विपक्ष एनडीए के उम्मीदवार को चुनौती दे पाए.

दरअसल, बैकफुट पर होते हुए भी अगर सोनिया गांधी राष्ट्रपति चुनाव के लिए एडी चोटी का जोर लगा रही हैं तो मतलब साफ है. 2019 के चुनाव से पहले कांग्रेस देख लेना चाहती है कि कौन सी पार्टी किस तरफ खड़ी है? यानी एक सीधी लकीर सत्ता और विपक्ष के बीच राष्ट्रपति चुनाव के आसरे खींची जाएगी. और अगर विपक्ष बुरी तरह बंटता दिखा या कहें नाम को लेकर विपक्ष में ही घमासान मचा तो कांग्रेस तुरुप का इक्का चलते हुए प्रणव मुखर्जी का नाम ही दोबारा राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित कर सकती है.

प्रणव मुखर्जी के नाम का विरोध कर पाना बीजेपी के लिए भी आसान नहीं होगा, क्योंकि प्रणव मुखर्जी ने जिस तरह बीजेपी को सत्ता में लाने का काम किया है उसमें उनका विरोध कभी बीजेपी कर नहीं पाई अलबत्ता प्रधानमंत्री ने मौके-बेमौके प्रणव मुखर्जी की खुलकर तारीफ ही की. इस बीच बीजपी और एआईएडीएमके ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं तो उनका रुख भी साफ कर देगा कि विपक्ष के दांव में कितना दम है. गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव 25 जुलाई से पहले होने हैं क्योंकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 25 जुलाई को खत्म हो रहा है.

इस बीच, इतना जरुर है कि विपक्ष की कोशिशों ने राष्ट्रपति चुनाव को दिलचस्प बनाना शुरु कर दिया है.

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लेखक

पीयूष पांडे पीयूष पांडे @pandeypiyush07

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और व्यंगकार हैं.

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