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Updated: 21 दिसम्बर, 2019 06:39 PM
खुशदीप सहगल
खुशदीप सहगल
  @khushdeepsehgal
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देश में हर तरफ विरोध की बयार चल रही है. कुछ लोग जन्मजात विरोधी होते हैं. उनका काम हर बात का विरोध करना होता है. 2014 से पहले अरविंद केजरीवाल में भी विरोध की इन-बिल्ट चिप थी. लेकिन उन्होंने दिल्ली की सत्ता में आने पर पहले कार्यकाल में इसे कुछ दिन तक संभाले रखा और इसी की खातिर महज़ कुछ हफ्तों में ही इस्तीफा दे डाला. ये बात अलग है कि दूसरे कार्यकाल में सत्ता का स्वाद उन्हें भा गया और उन्होंने विरोध की चिप को शरीर से बाहर निकाल फेंका.

ख़ैर हम बात कर रहे हैं विरोध की. और विरोध जताने का हमारे देश में सबसे मशहूर तरीका ‘टंकी पर चढ़ना’ रहा है. लोकतंत्र में विरोध जताने के इस तरीके को पॉपुलर करने के लिए धर्मेंद्र पाजी ‘भारत रत्न’ के हकदार हैं. 1975 में जब देश में एमरजेंसी के जरिए अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोटा जा रहा था, तब उसी साल रिलीज़ हुई फिल्म ‘शोले’ में वीरू बने धर्म पाजी ने विरोध जताने के लिए टंकी का रुख किया. अब बसंती (हेमा मालिनी) का हाथ देने के लिए मौसी तैयार नहीं हो रही थी तो धर्म पाजी विरोध जताने के लिए और क्या करते?  

ये तो रही धर्म पाजी की बात. इसे छोड़िए आपको यूपी के लखीमपुर खीरी लिए चलते हैं. इस ज़िले के पलिया कस्बे में लोग गुरुवार सुबह उठे तो उन्हें अजब नजारा देखने को मिला. यहां पोस्ट ऑफिस वाली नगरपालिका की बनी दो मंज़िला मार्केट की छत के बिल्कुल मुहाने पर खड़ा सांड नीचे ताकता मिला. बिल्कुल ‘शोले’ टंकी स्टाइल में. अब ये तो पता नहीं कि सांड ने विरोध जताने के लिए इमारत की छत पर चढ़ने से वीरू की तरह दारू की बोतल गटकी थी नहीं.  

bull on roofछत पर सांड चढ़ तो गया लेकिन उतारने में लोगों का पसीना निकल गया (फोटो क्रेडिट- अभिषेक वर्मा)

लोगों ने सांड को इमारत से उतारने के लिए बड़ी मान-मनुहार की. लेकिन सांड मानने को तैयार ही नहीं. सांड का इरादा साफ था जब तक उसकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं वो हर्गिज़ नीचे नहीं उतरेगा. उसका सवाल था कि मानवाधिकारों की हर कोई फ़िक्र करता है लेकिन सांडाधिकारों पर भी कोई सुनवाई करेगा या नहीं.

आखिर बड़ी मुश्किल से सांड अपनी चार मांगे बताने को तैयार हुआ. मसलन,

1. इन दिनों पता नहीं चलता कि सड़क पर कहां विरोध जताने वाले प्रदर्शनकारी पत्थर-पेट्रोल बम चलाना शुरू कर दें. फिर पुलिस भी लाठी-डंडे से उनकी खासी ख़बर लेती है. कहीं कहीं पानी की बौछार, आंसू गैस, गोलियां तक चल जाती हैं. ऐसे में सांडों को सड़क पर स्वच्छंदता से विचरण करने में बड़ी तकलीफ होती है. ऐसे में शासन-प्रशासन से मांग है कि सांडों को ‘सेफ पैसेज’ देने के लिए तत्काल प्रभाव से ‘डेडिकेटेड ट्रैक्स’ का निर्माण किया जाए.   

2. सांडों को विरोध जताने के लिए ऊंची इमारतों की संकरी सीढ़ियों पर चढ़ने-उतरने में बहुत दिक्कत होती है, इसलिए या तो सीढ़ियों को चौड़ा बनवाया जाए या फिर हर इमारत में ‘हेवी कैपेसिटी लिफ्ट’ लगवाई जाएं.

3. गायों की हर कोई बात करता है. योगी सरकार ने उनके लिए जाड़ों में सर्दियों से बचाने के लिए कोट पहनाने तक का एलान कर डाला. तो सांड क्या ठंडप्रूफ होते हैं. उन्हें सर्दी नहीं लगती क्या? इसलिए योगी सरकार तत्काल प्रभाव से सांडों के लिए भी चेस्टर या लॉन्ग कोट मुहैया कराने की व्यवस्था करें.

4. मानवाधिकार आयोग की तर्ज़ पर अलग से सांडाधिकार आयोग बनाया जाए.

bull on roof(फोटो क्रेडिट- अभिषेक वर्मा)

जो भी हो लखीमपुर-खीरी में गुरुवार को सांड महाराज को इमारत से नीचे उतारने में पुलिस-प्रशासन और लोगों के पसीने छूट गए. चार घंटे की मशक्कत के बाद सांड को चारा दिखाते-दिखाते नीचे उतारा गया. लेकिन सांड ने चेतावनी दी है कि अगर दो दिन में उसकी मांगें नहीं मानी गईं तो वो दिल्ली की किसी बहुमंजिली इमारत पर चढ़ने के लिए कूच कर जाएगा.

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लेखक

खुशदीप सहगल खुशदीप सहगल @khushdeepsehgal

लेखक आजतक में न्यूज़ एडिटर हैं

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