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Updated: 01 अप्रिल, 2017 02:14 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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बॉलीवुड फिल्में जो रेप पर बेस्ड होती हैं, उनकी स्टोरी लाइन यही होती है कि रेप के बाद प्रेमी, पति, भाई विलेन से बदला लेते हैं. रवीना टंडन की आने वाली फिल्म 'मातृ' भी इसी बदले के इर्द-गिर्द घूमती दिख रही है. ये फिल्म भी रिवेंज थ्रिलर है. फर्क बस इतना है कि इस फिल्म में बदला लेने वाली एक मां है.

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रवीना टंडन उस बच्ची की मां का किरदार निभा रही हैं जो रेप का शिकार होती है और उसकी मौत हो जाती है. अपनी बच्ची के साथ हुए अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए वो अकेली खड़ी होती है. क्योंकि इस लड़ाई में न तो उनका पति साथ होता है और न पुलिस का साथ मिलता है. इसके बाद किस तरह वो आरोपियों से बदला लेती है, यही इस फिल्म की कहानी है, जो ट्रेलर से जान पड़ती है.

ये ट्रेलर देखते वक्त एक बात जो अंदर तक चुभ गई, वो ये कि जब हम इस ट्रेलर को देख रहे थे तो देश में कहीं न कहीं एक लड़की का बलात्कार हो रहा था. हां, ये सच विचलित करता है कि इस देश में हर 22वें मिनट एक लड़की रेप की शिकार होती है. वो चाहे चार महीने की अबोध बच्ची हो, या फिर नाबालिग या शादीशुदा महिला, रेप के लिए किसी की उम्र मायने नहीं रखती, न महिला की और न आबरू लूटने वाले शख्स की.

और जो बीत सबसे ज्यादा खीज पैदा करती है वो है कानून का रवैया. बलात्कार जैसे मामलों पर हमारा कानून इतना लचर है कि अपराधियों को कोई खौफ नहीं, उन्हें इस बात का डर ही नहीं कि बलात्कार जैसे घिनौने अपराध की उन्हें सजा भी हो सकती है. इस देश के लिए इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या होगी कि दिल्ली जो इस देश की राजधानी है, अब रेप कैपिटल के रूप में जानी जाती है.

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भले ही ये फिल्म एक एक्शन थ्रिलर है और इसका सच्चाई से कोई लेना देना भी नहीं है, लेकिन रेप की गंभीरता और उसके बाद कानून के लचर रवैये को नकारा नहीं जा सकता. ये सिर्फ फिल्म नहीं बल्कि आने वाले कल के लिए एक खतरनाक संकेत भी है और आप इस संभावना से इनकार नहीं कर सकते कि भारत में बलात्कार जैसे मामलों पर जब कानून व्यवस्था से भरोसा उठ चुका है, तो महिलाओं को इंसाफ के लिए खुद ही खड़े होकर लड़ना होगा. अपने दोषियों को खुद सजा देनी होगी. पर क्या इसके लिए तैयार है समाज और सरकार?

सरकार को अब समझना चाहिए कि बलात्कार को लेकर जो कानून हैं और उनका क्रियान्वन जिस तरह हो रहा है, उनकी समीक्षा का समय अब आ गया है. इसे लेकर अब और देर नहीं की जा सकती, नहीं तो बहुत देर हो जाएगी.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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