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Updated: 08 सितम्बर, 2017 01:16 PM
सिद्धार्थ हुसैन
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  @siddharth.hussain
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अर्जुन रामपाल की पिछली फिल्म 'कहानी 2' बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कारनामा नहीं कर पायी थी, लेकिन उनके अभिनय की तारीफ हुई थी. फिल्म 'डैडी' अर्जुन के लिये बहुत अहम है, क्योंकि वो इस फिल्म के निर्माता भी हैं और डैडी के लेखक भी.

निर्देशक आशिम अहलुवालिया और अर्जुन रामपाल की लेखनी में रिसर्च तो अच्छी दिखती है, लेकिन कहानी का ग्राफ़ बहुत धीमा है. जिस वजह से फिल्म कई जगह बोर करने लगती है.

Film Daddy on don Arun Gawliफिल्‍म डैडी, अरुण गवली.

फिल्म की कहानी अंडरवर्ल्ड से जुड़ी है और अरुण गवली की ज़िंदगी पर आधारित है. किस तरह से ग़रीब मिल वर्कर का लड़का अंडरवर्ल्ड में कदम रखता है, उसकी ज़िंदगी में ऐसा मौक़ा आता है जब वो जुर्म की दुनिया छोड़ना चाहता है लेकिन अपने दोस्त के झूठे एनकाउंटर के बाद वो इस दलदल से बाहर नहीं निकल पाता. वक्त के साथ वो दाऊद इब्राहिम का सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है. फिल्म में एक डायलॉग है, 'उनके पास दाऊद है तो हमारे पास गावली', जो उसके हीरोइज्म को दर्शाता है. बहुत से गैंगस्टर्स की तरह अरुण गवली राजनीति में कदम रखता है. और अपने अतीत को भुलाने की कोशिश करता है. फिलहाल अरुण गवली जेल में है. फिल्म में गवली को मर्डर करते हुए भी दिखाया है, लेकिन साथ ये भी दिखाया है किस तरह पुलिस ने भी उसके साथ ज्यादती की है. बाकी हर गुनहगार की तरह वो भी ऐसा महसूस करता है कि वो बुरा आदमी नहीं है, हालात ने उसे बुरा बना दिया.

'डैडी' में अरुण गवली की प्रेम कहानी भी दिखायी गयी है. किस तरह उसे मुस्लिम लड़की से प्यार हो जाता है और वो उससे शादी करता है. और कई मौक़े ऐसे आते हैं, जहां जुर्म करने से पहले उसे डर भी लगता है.

अरुण गवली की ज़िंदगी को निर्देशक आशिम अहलुवालिया ने बख़ूबी दिखाया है, लेकिन सिनेमा के हिसाब से स्क्रीनप्ले वो पूरी तरह से दिलचस्प नहीं बना सके. नितिन गायकवाड़ और पारुल सोंध का आर्ट डायरेक्शन और फिल्म के सेट की तारीफ करनी होगी. 70 और 80 के दशक को बहुत इमानदारी से दिखाया गया है. डैडी में गाने का बहुत स्कोप नहीं था, और उससे बचते तो बेहतर होता. जेसिका और पंकज कुमार की सिनेमेटोग्राफ़ी लाजवाब है, जो फिल्म के मूड के साथ इंसाफ़ करती है.

डैडी फिल्‍म की झलक :

अब बात अभिनय की. अर्जुन रामपाल ने अरुण गवली के किरदार को न सिर्फ निभाया है, बल्कि जिया है. बतौर एक्टर उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है. बाकी सभी कलाकार भी अच्छा अभिनय करते हैं. राजेश श्रगिंहार पुरे, निशीकांत कामत अपनी छाप छोड़ने में कामयाब होते हैं. फरहान अख्तर दाऊद के किरदार में हैं. हालांकि फिल्म में उस किरदार का नाम मक़सूद रखा है, और वह शुरू में पहचान में ही नहीं आता. फरहान ने कम बोलने वाले माफ़िया के किरदार में जान डाल दी है.

ये फिल्म पूरी तरह से बायोपिक नहीं है और आखिर में गवली जेल में ज़रूर दिखाये गये हैं लेकिन फिर भी एक हीरो की तरह ही नज़र आते हैं. या शायद यही वजह होगी जो 'डैडी' अरुण गवली की इजाज़त के बाद ही बनी है. फिल्म शुरू होने से पहले लिख कर आता 'अरुण गवली का शुक्रिया'. बात तब ही समझ में आ जाती है कि फिल्म में वो हीरो की तरह ही दिखाये जायेंगे. 'डैडी' अर्जुन रामपाल के फ़ैन्स जरूर देखें या वो जिन्हें अंडरवर्ल्ड की दुनिया में दिलचस्पी है. लेकिन ये तय है कि फिल्म के लेखक और निर्देशक डाक्यूमेंट्री बनाते तो बेहतर होता.

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सिद्धार्थ हुसैन सिद्धार्थ हुसैन @siddharth.hussain

लेखक आजतक में इंटरटेनमेंट एडिटर हैं

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