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Updated: 03 मई, 2016 06:15 PM
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खतरा महसूस करें तो लाल बटन दबाएं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे बस, मेट्रो, ट्रेन इत्यादि में सफर के दौरान आप किसी तरह का खतरा देखें अथवा महसूस करें तो अपने आसपास लगे लाल रंग के बटन को दबा दें. ये पैनिक बटन जल्द ही सभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट्स में लगा मिलेगा. इस बटन को यात्रियों की सुरक्षा और खासतौर पर यात्रा के दौरान महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए लगाया जा रहा है. लिहाजा, जो लोग बस, मैट्रो और ट्रेन से सफर के दौरान महिलाओं को अकेला समझकर छेड़खानी करेंगे तो आपकी खैर नहीं. सीसीटीवी में आप की हरकत कैद हुई तो सजा मिलने की पूरी गारंटी है. साथ ही सभी यात्रियों को सशक्त करने के लिए पैनिक बटन भी हर ट्रांसपोर्ट में रहेगा जिसका इस्तेमाल कर सुरक्षा एजेंसियों को चौकन्ना किया जा सकता है.

ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के फैसले के मुताबिक 23 और उससे यात्रियों को अधिक ढोने वाले सभी साधनों में सीसीटीवी कैमरा, पैनिक बटन समेत जीपीएस कनेक्टिविटी की सुविधा मौजूद रहना जरूरी है. सभी गाड़ियों में इन तीनों चीजों की फिटिंग मैन्यूफैक्चरर, डीलर अथवा ऑपरेटर को करना होगा. गौरतलब है कि निर्भया फंड की मदद से केन्द्र सरकार ने देश के 32 शहरों में यह सुविधा उपलब्ध कराने का प्रोजेक्ट 2012 में तैयार किया था जिसे अब लागू किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के जरिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रूट का नक्शा तैयार करना, रूट पर किसी भी गाड़ी को खोजने, एसएमएस और वीडियो के जरिए अलर्ट जारी करने और यात्रियों के लिए पैनिक बटन का प्रावधान करने का काम किया जाना है.

आसमान में ड्रोन चमके, तो समझ लेना निगरानी जारी है पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अगर जीपीएस और सीसीटीवी आपको सुरक्षा का अहसास कराएगा तो आसमान में कोई चमकदार चीज आपको डरा भी सकती है. आसमान में चांद-सितारों के अलावा कभी-कभार हवाई जहाज दिखाई दे तो आप असहज नहीं होता. लेकिन जल्द आसमान में आपको बड़ी संख्या में चमकदार उड़ती हुई चीज दिखाई देगी जिसे ड्रोन कहा जा रहा है. लिहाजा आप जब इसे अपने ऊपर उड़ते देखें तो समझ जाएं कि यह आपको साफ-साफ देख रहा है. आपकी हर हरकत इस ड्रोन में लगे हाई-डेफिनीशन कैमरे में कैद हो रही है और उसे कहीं न कहीं देखा भी जा रहा होगा.

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निगरानी का भविष्‍य.

गौरतलब है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में अमेरिकी सेना का ड्रोन जमीन पर आतंकी गतिविधियों की जानकारी देता है. इसके अलावा वहां ड्रोन को रॉकेट हमला करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है और कई बड़े आतंकियों को ड्रोन हमले में सेना ने मार गिराया है. ऐसे खतरनाक ड्रोन हमारे यहां भी सीमावर्ती इलाकों में अहम किरदार निभाएंगे ही लेकिन हमारा पाला आमतौर पर ऐसे ड्रोन से पड़ेगा जो हम पर नजर तो जरूर रखेगा लेकिन हमारे लिए कई अहम काम भी करेगा.

फिक्शन मूवीज को देखिए या कुछ आनलाइन शॉपिंग कंपनियों के प्रचार तो पिज्जा डेलिवरी से लेकर ऑनलाइन शॉपिंग की डिलेवरी तक ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसा कब होगा ये तो अलीबाबा ही बता पाएंगे लेकिन इतना जरूर है कि आने वाले दिनों में हमें आसमान में बड़ी संख्या में ड्रोन दिखाई देंगे जो पुलिस, इंश्योरेंस कंपनी, कंस्ट्रक्शन कंपनी जैसी अनेक संस्थाओं के लिए आसमान में उड़ा भरेंगे. इसके अलावा ड्रोन का इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों में खेती का जायजा लेने के लिए भी किया जाएगा. एग्रीकल्चर क्षेत्र में ड्रोन के जरिए फसल और जल संसाधनों की निगरानी के साथ-साथ दवाओं के छिड़काव के लिए किया जा सकता है.

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आसमान में उड़ता ड्रोन

इसके अलावा आम आदमी महज आसमान में कुछ उड़ाने का लुत्फ उठाने के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल कर सकता है. इसे उड़ाकर आसपास के नजारों का रोमांतक एरियल व्यू देखा जा सकता है. हालांकि ड्रोन का इस्तेमाल करने के लिए हर किसी को पहले डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एवीएशन (डीजीसीए) से यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर लेना होगा. हालांकि किसी आम आदमी को सुरक्षा के लिहाज से प्रतिबंधित इलाकों में ड्रोन उड़ाने की मनाही होगी.

अब ऐसी खूबियों से लैस आसमान में चमकता ड्रोन दिखे तो साफ है कि कोई जरूरी काम हो रहा है. किसी चोरी की गाड़ी को खोजा जा रहा है या कानून तोड़ने के आरोपियों पर नजर रखी जा रही है या फिर कहीं कोई बस अपनी मस्ती में धुन आसमान से धरती का नजारा देख रहा है. इन सबके बीच एक बात साफ है कि ऊपरवाला देख रहा है. कुछ गलत करते कैमरे पर पकड़े गए, तो सजा दिलाने की सौ फीसदी गारंटी जीपीएस के साथ-साथ ये ड्रोन दिला देंगे.

क्या वाकई कारगर होगी ये निगरानी? देश की राजधानी में 2014 की तुलना में 2015 में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों में 20 फीसदी की तेजी दर्ज हुई है. सिर्फ बलात्कारों की तादाद ही 27 फीसदी बढ़ गई थी. दिल्ली पुलिस ने शुरुआती 8 महीनों के दौरान बलात्कार के लगभग 7,124 मामले दर्ज किए जिसमें महज एक मामले को सुलझाया जा सका है. जबकि 2014 और 2013 में 11,209 और 9,271 मामले दर्ज हुए जिसमें केवल 9 और 65 मामले क्रमश: सुलझाए गए थे.

ये तो महज बलात्कार के दर्ज हो रहे मामलों की रिपोर्ट है. जाहिर है बीते कुछ सालों में बढ़ती जागरुकता के चलते देश में महिलाओं के खिलाफ दर्ज अपराधों में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिली है. उम्मीद है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट में पैनिक बटन, सीसीटीवी और जीपीएस टेक्नोलॉजी जैसी सुविधा देने के बाद महिलाओं के खिलाफ दर्ज होने वाले अपराधों की संख्या में और वृद्धि देखने को मिलेगी. लेकिन क्या महज अधिक रिपोर्ट दर्ज कराना ही हमारा मकसद है? बीते साल में जिस तरह दर्ज मामलों को निपटाया गया है उसे देखकर तो यही लगता है कि सरकार का यह कदम भी महज आंकड़ों में दर्ज होकर रह जाएगा.

अब 10 दिन पहले बंगलूरु में 25 साल की मणिपुरी लड़की को अगवा करने का मामला ही देख लीजिए. 23 अप्रैल को लड़की को अगवा करने की कोशिश की गई. घटना के तुरंत बाद शिकार महिला ने पुलिस को सूचना दी और खुद ही घटना की सीसीटीवी फुटेज उन्हें मुहैया कराई. 2 हफ्ते तक पुलिस महकमा मामले को नजरअंदाज करता रहा. मायूस होकर जब लड़की ने एक लोकल टीवी चैनल को सीसीटीवी फूटेज दे दिया और उसका प्रसारण कर दिया गया तब दबाव में आकर पुलिस में मामले में एफआईआर दर्ज की. जाहिर है पब्लिक ट्रांसपोर्ट में पैनिक बटन और सीसीटीवी लगने के बाद आने वाली नई शिकायतों पर भी पुलिस का यही रुख देखने को मिलेगा. लिहाजा, महिलाओं को सुरक्षा की 100 फीसदी गारंटी देने के लिए जरूरी है न्याय प्रक्रिया में हावी उस मानसिकता को बदला जाए जो हांथ में सुबूत लेकर खड़े लोगों की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं होने देती.

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