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Updated: 24 नवम्बर, 2015 07:22 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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अदिति चौहान ने एशियन वुमैन फुटबॉलर ऑफ द ईयर का खिताब जीतकर इतिहास रच दिया है. वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला फुटबॉलर हैं. अदिति की यह उपलब्धि इसलिए भी खास बन जाती हैं क्योंकि वह उस देश से आती हैं जहां महिला फुटबॉलरों के लिए एक ढंग के टूर्नामेंट का आयोजन तक नहीं होता है. 

वैसे तो भारत में फुटबॉल की ही हालत बहुत बेहतर नहीं है लेकिन फिर भी पुरुष फुटबॉल के विकास के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है. लेकिन इसके उलट महिला फुटबॉल की सुध लेने वाला कोई नहीं है. ऐसे में एक भारतीय महिला फुटबॉलर का नाम सुर्खियों में आना फुटबॉल फैंस के लिए किसी सुखद अहसास से कम नहीं है. अदिति की जीत भारतीय महिला फुटबॉल की ओर लोगों का ध्यान खींचती है और उसकी हालत बेहतर बनाने के लिए बहस शुरू करने का मौका देती है.

अदिति भारतीय महिला फुटबॉल की रोल मॉडल हैं: 

23 वर्षीय अदिति चौहान के आर्मी मैन पापा चाहते थे कि वह टेनिस खेलें लेकिन अदिति का दिल फुटबॉल में बसता था. वह कहती हैं, 'शायद टेनिस में करियर बनाने पर मुझे ज्यादा शोहतर मिल सकती थी लेकिन मैंने फुटबॉल को इसलिए चुना क्योंकि मैं इससे प्यार करती हूं. मैंने इसे पैसे और शोहरत के लिए नहीं बल्कि इसके प्रति अपने प्यार के लिए चुना.' 

भारतीय अंडर-19 टीम की गोलकीपर चुने जाने के बाद उन्होंने फुटबॉल को गंभीरता से लेना शुरू किया. दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन करने के बाद वह ब्रिटेन की लॉगबरो यूनिवर्सिटी से स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की पढ़ाई करने गईं. अदिति को लॉगबरो यूनिवर्सिटी की फुटबॉल टीम में जगह बनाते देर नहीं लगी. हालांकि उन्हें वहां के मौसम और मैदान से तालमेल बिठाने में थोड़ा वक्त लगा लेकिन जल्द ही वह इसकी आदी हो गईं. इसके बाद अगस्त 2015 में उन्हें इंग्लिश प्रीमियर लीग की टीम वेस्ट हेम लेडीज फुटबॉल क्लब (WHLFC) ने एक साल के लिए साइन किया. वह किसी इंग्लिश क्लब के लिए खेलने वाली पहली भारतीय महिला फुटबॉलर हैं.

इसी टीम के लिए खेलने के बाद उन्हें इस साल का एशियन वुमैन फुटबॉलर ऑफ द ईयर चुना गया. लेकिन इस कहानी का दूसरा पहलू अदिति और भारतीय महिला फुटबॉल टीम की बदहाली दिखाता है. इस सफलता के बावजूद अदिति अपने भविष्य के प्रति सुनिश्चित नहीं हैं. अदिती का एक साल का स्टूडेंट वीजा तीन महीने में खत्म हो जाएगा और इसके बाद उन्हें ब्रिटेन में रहने और वेस्ट हेम के लिए खेलने और ट्रेनिंग का खर्च खुद वहन करना होगा क्योंकि इंग्लिश फुटबॉल असोसिएशन किसी भी थर्ड टियर महिला लीग क्लब को अपने खिलाड़ी को आर्थिक मदद देने और उसके वीजा को स्पॉन्सर करने की इजाजत नहीं देता है. 

भारतीय महिला फुटबॉल की सुध लेने वाला कोई नहीं है:  अदिति की तरह ही भारतीय महिला फुटबॉल टीम का भी भविष्य अनिश्चित ही नजर आता है. देश में महिला फुटबॉलरों के विकास और उनकी मदद के लिए कदम उठाना तो दूर, उनके लिए अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए अच्छे टूर्नामेंट तक नहीं आयोजित होते. इसीलिए देश से जो प्रतिभाएं निकलती भी हैं वे उचित अवसर के अभाव में कुछ नहीं बन पातीं. महिला फुटबॉल की अनदेखी का अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि देश में पुरुष फुटबॉल के लिए इंडियन सुपर लीग, आईलीग, आईलीग-2 और राज्य स्तर पर होने वाली लीग मौजूद हैं लेकिन यहां एक भी महिला फुटबॉल लीग नहीं होती है. वहीं इसके अलावा भी पुरुष फुटबॉल टीम के पास वर्ष भर खेलने के लिए फेडरेशन कप, डूरंड कप, संतोष ट्रॉफी, आईएफए शील्ड, इंडियन सुपर लीग जैसे कई टूर्नामेंट हैं. लेकिन महिला फुटबॉलरों के पास भारतीय महिला फुटबॉल चैंपियनशिप के नाम से वर्ष भर में होने वाला एक ही टूर्नामेंट है. 

लेकिन हैरानी की बात ये है कि इतनी अनदेखी के बावजूद महिला टीम फीफा रैंकिंग में पुरुष टीम से काफी आगे है. 177 देशों की रैंकिंग में महिला टीम की रैंक 56वीं हैं, जबकि पुरुष फुटबॉल टीम 209 देशों में 167 रैंक पर मौजूद है. हाल ही में जहां पुरुष फुटबॉलरों के लिए 20 लाख डॉलर की भारी भरकम इनामी राशि वाली इंडियन सुपर लीग के दूसरे सीजन का उद्घाटन किया गया. तो वहीं पिछले साल दिसंबर में ही महिला फुटबॉलरों के लिए भी ISL जैसे टूर्नामेंट के आयोजन का वादा कर चुके अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ ने एक साल बाद भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है. AIFF का यह रवैया भारतीय महिला फुटबॉल के प्रति उसकी सोच दिखाता है.

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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