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Updated: 28 अक्टूबर, 2015 07:17 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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क्रिकेट के बारे में अगर सचिन कुछ कहें तो दुनिया बड़े ध्यान से उसे सुनती है. अब सचिन ने कहा है कि क्रिकेट को ओलिंपिक में शामिल किया जाना चाहिए. सचिन की इस मांग का समर्थन महान ऑस्ट्रेलियाई स्पिनर शेन वॉर्न ने भी किया है.

क्रिकेट को ओलिंपिक में शामिल करने की मांग अक्सर उठती रही है. हालांकि, 1900 के पेरिस ओलिंपिक में एक बार क्रिकेट खेला भी गया. सचिन और वॉर्न का कहना है कि क्रिकेट के टी-20 फॉर्मेट को ओलिंपिक में जगह मिलनी चाहिए क्योंकि यह महज 3 घंटे में खेला जाता है. लेकिन, खुद आईसीसी और क्रिकेट खेलने वाले कई देश खुद इसके पक्ष में नहीं हैं.

क्यों नहीं मिलती क्रिकेट को ओलिंपिक में जगहः

क्रिकेट के ओलिंपिक का हिस्सा न बनने के कई कारण हैं. इसमें सबसे पहला कारण इसकी बेहद कम लोकप्रियता है. क्रिकेट बहुत ही कम देशों द्वारा खेला जाता है. पहला टेस्ट मैच 1877 में खेला गया था, लेकिन इसके बावजूद भी करीब 138 साल बाद भी अब तक टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले महज 10 देश ही हैं. साथ ही क्रिकेट की पहुंच दुनिया और ओलिंपक के ताकतवर देशों अमेरिका, रूस, चीन, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों में या तो नहीं है या न के बराबर है. फुटबॉल, हॉकी. टेनिस के मुकाबले क्रिकेट की लोकप्रियता दुनिया में कहीं भी नहीं ठहरती, यही कारण है कि इन खेलों को तो ओलिंपिक में जगह मिली है लेकिन क्रिकेट को नहीं.

क्रिकेट क्यों ओलिंपिक को सूट नहीं करता?

सिर्फ लोकप्रियता ही नहीं बल्कि और भी कई कारण है जो क्रिकेट को ओलिंपिक जैसे मंच के लिए मिसफिट बनाते हैं. इसमें सबसे पहला कारण इस खेल की अवधि है. टेस्ट क्रिकेट पांच दिन और 50-50 क्रिकेट भी 8-9 घंटे का होता है, जोकि ओलिंपिक के लिहाज से बहुत ज्यादा है. इस वजह से भी क्रिकेट को ओलिंपिक में जगह नहीं मिल पाई. हालांकि सचिन और वॉर्न अब महज 3 घंटे वाले टी-20 फॉर्मेट को ओलिंपिक में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन ओलिंपिक के परंपरागत स्वरूप के लिहाज से टी-20 से ज्यादा टेस्ट क्रिकेट इसके लिए मुफीद है. एक और अहम वजह से क्रिकेट ओलिंपिक को सूट नहीं करता है और वह है एक मैदान का सिर्फ क्रिकेट के लिए ही प्रयोग किया जाना जबकि ओलिंपिक में एक मैदान का प्रयोग कई खेलों के लिए किया जाता है.

इसका एक और कारण निष्पक्षता है जिसका क्रिकेट में कई बार अभाव दिखता हैं. उदाहरण के तौर पर क्रिकेट में टीमें अपने घरेलू माहौल का फायदा उठाने के लिए अपनी पसंद के अनुसार पिचें तैयार करती हैं. जैसे भारत में स्पिन की मददगार और ऑस्ट्रेलिया में तेज गेंदबाजों की मददगार पिचें बनाई जाती है. लेकिन ओलिंपिक में किसी देश विशेष की मददगार नहीं बल्कि निष्पक्ष पिचें बनाई जाएंगी, जो शायद सभी देशों को रास ना आए. एक और समस्या क्रिकेट खेलने वाले देशों की सीमित संख्या है. टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले देशों की संख्या महज 10 है. अगर आईसीसी के एफीलिएट और असोसिएट देशों को शामिल भी कर लिया जाए तो प्रतिस्पर्धा का स्तर घट जाएगा और मुकाबले एकतरफा और नीरस हो जाएंगे.

भारत, इंग्लैंड और आईसीसी ओलिंपिक के पक्ष में नहीं:

अंतर्राष्‍ट्रीय क्रिकेट का संचालन करने वाली संस्था आईसीसी और इसके दो मजबूत और बड़े देश भारत और इंग्लैंड नहीं चाहते कि क्रिकेट को ओलिंपिक में शामिल किया जाए. शायद यही वजह है कि आईसीसी ने कभी इंटरनेशनल ओलिंपिक कमिटी के सामने खुलकर इसका समर्थन नहीं किया है. दरअसल आईसीसी नहीं चाहती कि चार साल बाद होने वाला ओलिंपिक उसके टी-20 वर्ल्ड कप की लोकप्रियता पर प्रभाव डाले, क्योंकि 2016 से आईसीसी ने चार साल के अंतराल पर टी-20 कराने का निर्णय लिया है. ऐसे में ओलिंपिक और टी-20 वर्ल्ड कप के एक ही साल में होने से आईसीसी को वित्तीय नुकसान हो सकता है. भारत और इंग्लैंड भी ओलिंपिक के दौरान होने वाली क्रिकेट सीरीजों पर पड़ने वाले प्रभाव और आर्थिक नुकसान के कारण ही इस प्रस्ताव का विरोध करते रहे हैं.

कहीं इसकी हालत एशियाड में कबड्डी जैसी न होः

क्रिकेट को ओलिंपिक में शामिल करने के पीछे का एक तर्क इसके वैश्विक विकास से है. लेकिन ऐसा होने की संभावना कम दिखती है क्योंकि पिछले कई सालों से एशियाई खेलों में शामिल रहा कबड्डी दुनिया तो छोड़िए एशिया के भी लोकप्रिय खेलों में शामिल नहीं हो पाया और यह सिर्फ भारत का खेल बनकर रह गया. क्रिकेट के भी ओलिंपिक में शामिल होने भर होने से इसके चीन, रूस और अमेरिका में लोकप्रिय हो जाने की संभावना कम ही लगती है. इन देशों में इसे लोकप्रिय बनाने के लिए जरूरी है कि आईसीसी इस दिशा में कदम उठाए और इसके विकास के लिए काम करे.

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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