17 साल का बच्चा 'इस्लाम' को बचाने नहीं, मारने निकला था
ISIS कर रहा है वैश्विक साजिश. बस एक मकसद के साथ - 'इस्लाम' को पूरी दुनिया में फैलाना. तल्हा असमल इनकी साजिश का शिकार बना. लेकिन ऐसे ही तल्हा इनकी कब्र खोदेंगे.
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तल्हा असमल. उम्र 17 साल. ब्रिटेन का नागरिक. पढ़ाई छोड़ सीरिया गया. दिमाग पर धर्म हावी था. खेलने-कूदने, मौज-मस्ती करने की जगह आतंकी बनने का सपना पाल लिया. बन भी गया. एक आत्मघाती हमले को अंजाम दिया. 10 'काफिरों' को मार डाला. साथ में खुद को भी.
17 साल की उम्र बड़ी रोमांचक होती है. हर कोई प्यार करने लगता है - कोई लड़की से, कोई पढ़ाई से, कोई खेल से, कुछ किसी और से... बड़े-बुजुर्ग भी मना नहीं करते. वो खुद भी गुजरे होते हैं इस उम्र से. लेकिन जरा सोचिए क्या कोई मां-बाप इस उम्र के बच्चे के हाथ में प्यारवश ही सही हथियार देखना चाहेगा? चाहते तो तल्हा असमल के मां-बाप भी नहीं थे. लेकिन एक वैश्विक साजिश के तहत उन्हें यह दिन देखना पड़ा.
ISIS. फिलहाल यही है उस वैश्विक साजिश के पीछे का दिमाग. नाम पर मत जाइए. इनके नाम बदलते रहते हैं. बस मकसद एक होता है - 'इस्लाम' को पूरी दुनिया में फैलाना. तारीफ की बात है कि इन्हें इस्लाम से भी नफरत है. यह सिर्फ अपने परिभाषित 'इस्लाम' को सच्चा और पाक-साफ मानते हैं. इसके अलावा सब को काफिर कहते हैं. हथियारों से लड़ाई, परंपरागत लड़ाई के अलावा इन्होंने मानसिक लड़ाई का भी एक रास्ता चुना है. इसी का शिकार हुआ तल्हा असमल. तल्हा अकेला नहीं है. न जाने कितने तल्हा इनकी फैक्ट्री में मानव बम बना दिए गए!
तल्हा के मां-बाप भी मुसलमान हैं. वो कहते हैं, 'इस्लामिक स्टेट के नेताओं ने हमारे बच्चे को हमसे छीन लिया. इंटरनेट और सोशल मीडिया के रास्ते उसके दिमाग पर कब्जा जमा लिया. अपने गंदे काम करवाने के लिए उन्होंने मेरे बेटे को हथियार बनाया. ISIS कहीं से भी इस्लाम नहीं है. न सोच के स्तर पर, न व्यवहार के स्तर पर. हम मुसलमान अपने धर्म को ऐसे दरिंदो के हाथों में कभी नहीं जाने देंगे.'
यह कैसा 'इस्लाम' है ISIS? जिसने अपनी जिंदगी के हर रंग भी नहीं देखे, उसे तुम्हारे विचारों ने खून का रंग दिखा दिया! लाल रंग तो कभी भी इस्लाम का रंग नहीं रहा है. हरा जरूर रहा है, प्रकृति की माफिक. ठंडक, शीतलता लिए. अगर इस रंग में वजूद नहीं होता तो क्या मजाल था कि इस्लाम पूरी दूनिया में फैल पाता और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म बन पाता. लाल रंग के 'इस्लाम' से आप खुद को कमजोर कर रहे हैं. और हां, बहुत सारे मुसलमानों को आपसे तकलीफ है... ओह-ओह, पर उनसे आपका क्या लेना-देना? वो इस्लाम को मानते हैं, आप तो 'इस्लाम' को.
दुनिया में सिर्फ एक ही रंग हो तो सोचिए कितनी बदरंग हो जाएगी यह दुनिया! धर्म केवल एक बच जाए तो होली के रंग और ईद की सेवइयों का स्वाद कैसे चख पाएंगे! कौन सांता आकर हमें गिफ्ट देगा और कैसे हम लोहड़ी पर झूमती भाभियों को देख पाएंगे? सोच कर ही मन बदरंग हुआ जाता है. काश ISIS भी यह पढ़ पाए, सोच पाए... पर अफसोस यह काले रंग से लिखा गया है, उन्हें शायद दिखे ही नहीं.

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