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Updated: 02 जुलाई, 2017 06:46 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में राजनीति में बने रहने के लिए एक नेता का बयान देना बहुत ज़रूरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि नेता के लोकप्रिय होने का माध्यम उसका बयान ही होता है. कह सकते हैं जो नेता जितने बयान देगा वो उतना ज्यादा दिखेगा और उतना छपेगा.

मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में शायद इस बात को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले बखूबी समझते हैं और आए दिन वो कोई न कोई ऐसा बयान दे देते हैं जो उन्हें चर्चा में ला देता है. रामदास अठावले का ताजा बयान आरक्षण पर है. आरक्षण के हिमायती अठावले ने इस बार खेल में आरक्षण देने की बात की है. अठावले ने अपने बयान में कहा है कि क्रिकेट और अन्य खेलों में दलितों और आदिवासियों को 25 प्रतिशत आरक्षण देना चाहिए. क्रिकेट में आरक्षण लागू होना चाहिए. अठावले के अनुसार उन्होंने क्रिकेट के साथ अन्य खेलों में भी आरक्षण लागू करने की बात पहले भी कही थी, ऐसा इसलिए क्योंकि उनको महसूस होते है कि इससे दलित समुदाय की प्रतिभाओं को भी खेलने का अवसर मिलेगा.  

हो सकता है इस अजीब ओ गरीब मांग के बाद लोग अठावले की बात से सहमत हों और ये मान लें कि इसके विरुद्ध अठावले की कड़े शब्दों में निंदा करनी चाहिए मगर इसके दूसरे पहलू को देखें तो मिलता है कि अठावले ने आज जो भी मांग उठाई है वो बिल्कुल सही है और खेल में रिजर्वेशन होना चाहिए.

आरक्षण, सरकार, दलित   हां हम भी कहते हैं ताजा हालात के मद्देनजर खेलों में दलितों और आदिवासियों को आरक्षण मिलना चाहिए

निस्संदेह ही ये बात आपको सोचने पर विवश कर देगी कि कैसे हम अठावले की बात से सहमत हैं और उनका समर्थन कर रहे हैं तो इसके पीछे छुपा तर्क बहुत साधारण हैं. आज अगर देश को देखें तो मिलता है कि पूरा देश आरक्षण की आग में सुलग रहा है. जाट, गुज्जर, बोडो, दलित, पिछड़े, आदिवासी और मुसलमान सभी अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं. हम कई ऐसे मामले भी देख चुके हैं जब लोगों ने अपनी मांग न माने जाने के चलते हिंसक आंदोलन किये हैं. उदाहरण के तौर पर हम बीते दिनों राजस्थान में हुए जाट आंदोलन को देख सकते हैं जहां न सिर्फ जाटों ने आरक्षण की मांग के चलते प्रदर्शन किया बल्कि उनके प्रदर्शन से लोगों को भी खासी दिक्कत हुई.

जब आज शिक्षा से लेके नौकरी तक सरकार द्वारा लगभग हर क्षेत्र में आरक्षण दिया जा रहा है तो फिर सरकार को अठावले की मांग सुन लेनी चाहिए और दलितों और आदिवासियों को 25 प्रतिशत आरक्षण दे देना चाहिए. यदि सरकार अठावले की बात को नजरंदाज करती है तो फिर हम यही कहेंगे कि सरकार को सभी जगहों से आरक्षण हटा देना चाहिए और सबको समान अवसर देना चाहिए.

कहा जा सकता है कि राष्ट्र के सभी नागरिकों के लिए सरकार को एक ही रवैया रखना चाहिए. ये कोई बात नहीं कि अगर दलित को आरक्षण मिल रहा है तो सरकार मुसलमान को आरक्षण देने में आनाकानी करे. यदि सरकार आदिवासियों को नौकरी दे रही है तो उसे बोडो, जाटों और गुज्जरों को भी सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी देनी चाहिए.      

अतं में इतना ही कि हां अठावले की बात पर उस देश में गौर जरूर किया जा सकता है जहां लोग कोटे के लोटे से आरक्षण की अफीम चाट रहे हैं. जब सबको अपने-अपने हिस्से का आरक्षण मिल रहा है तो फिर खेल में भी खिलाडियों को भी मिलना चाहिए. यदि सरकार खिलाडियों को आरक्षण देने में असमर्थ है तो उसे सभी जगहों से आरक्षण जैसी सामाजिक कुरीति को निकाल देना चाहिए.

यदि साकार ऐसा कर पाती है तब भी 'सबका साथ-सबका विकास' के नारे को चरितार्थ किया जा सकता है अन्यथा ये महज लोगों को ठगने का एक अन्य माध्यम बन कर रह जाएगा.    

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बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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