New

होम -> समाज

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 11 जनवरी, 2023 09:41 PM
  • Total Shares

"हर ओर ही मुझको हिंदी दिखती, कलम मेरी बस हिंदी लिखती, बढ़ा रही यह मेरी शान, हिंदी ही है मेरी पहचान! बचपन से हिंदी बोलते आए, जीवन का ज्ञान हम इस से पाएं, हिंदी में बसती मेरी जान, हिंदी ही है मेरी पहचान; अंग्रेजी भी पढ़ता हूं पर, लगे न उसमें मेरा ध्यान, हिंदी भाषा है सबसे महान!" परंतु अपनी इस खरी खरी बात को धक्का लगता है जब हिंदुस्तानी ही हिंदुस्तान में हिंदी को कमतर समझते हैं.

विडंबना ही है हिंदी कमतर आंकी गई पूर्व प्रधानमंत्री यशस्वी मनमोहन सिंह जी की पार्टी की महत्वाकांक्षी यात्रा में जिसका हिंदी नाम "भारत जोड़ो यात्रा" पब्लिक कनेक्ट सिद्ध हो रहा था. मनमोहन सिंह साहब का जिक्र इसलिए किया चूंकि उनके जरिए ही 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिंदी दिवस मनाया गया था. सवाल है क्या राजनीति इस कदर मजबूर कर देती है कि यात्रा ने जगजाहिर हिंदी विरोधी कमल हसन को प्लेटफार्म दे दिया हिंदी का विरोध करने के लिए? भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के बाद उनके सिलसिलेवार ट्वीट्स शर्मसार कर देते हैं और यात्रा के 'अगुआ' ने भर्त्सना करना तो दूर असहमति भी नहीं जताई.

650x400_011123065700.jpg

दरअसल कमल हसन ने केरल के सांसद जॉन ब्रिटास के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए तमिल भाषा में पोस्ट शेयर करते हुए लिखा, "मातृभाषा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. दूसरी भाषा बोलना और उसे सीखना यह निजी पसंद है. हिंदी को दूसरों पर थोपना मूर्खता है. जो थोपा गया है, उसका विरोध किया जाएगा." वे यहीं रुक जाते तो शायद सफाई दे दी जाती कि वे अपनी मातृभाषा 'तमिल' की बात कर रहे हैं, विरोध हिंदी का नहीं वरन हिंदी थोपे जाने का विरोध कर रहे हैं. लेकिन उनका अगला ट्वीट चेतावनी भरा था, "केरल में भी यही बात साफ नजर आती है. आधे भारत में यह बात कही गई है. खबरदार पोंगल आ रहा है.

ओह! माफ करें, आपको समझने में आसानी हो, इसके लिए जागते रहो...!" पता नहीं हिंदी की बात करना, हिंदी को प्रमोट करना थोपना कैसे हो जाता है? किसे एतराज है मातृभाषा के जिक्र पर, अंग्रेजी के महिमामंडन पर; लेकिन हिंदी की कीमत पर जिक्र क्यों ? यही तो यात्रा के 'अगुआ' ने भी किया. भला क्या जरूरत थी अंग्रेजी की महत्ता बताने के लिए हिंदी को कमतर बताने की? और वे ऐसा कर रहे हैं हिंदी में बोलकर! वे कह बैठते हैं, "मैं ये नहीं कह रहा हूं कि हिंदी नहीं पढ़नी चाहिए, जरूर पढ़नी चाहिए. तमिल पढ़नी चाहिए, हिंदी पढ़नी चाहिए, मराठी पढ़नी चाहिए, हिंदुस्तान की सब भाषाएं पढ़नी चाहिए, अगर आप बाकी दुनिया से बात करना चाहते हो, चाहे वह अमेरिका के लोग हों, जापान के लोग हों, इंग्लैंड के लोग हों, तो वहां हिंदी काम नहीं आ पाएगी. वहां अंग्रेजी ही काम आएगी और हम चाहते हैं कि हिंदुस्तान के गरीब से गरीब किसान का बेटा, एक दिन जाकर अमेरिका के युवाओं से कंपटीशन करे और उनको उन्हीं की भाषा में हराए."

उनके तेज तर्रार प्रवक्ता गौरव वल्लभ हैं. उन्होंने हिंदी में पढ़ाई लिखाई कर ऊंची-ऊंची डिग्रियां मसलन सीए, एलएलबी, कंपनी सेक्रेटरी, बिजनेस मैनेजमेंट आदि हासिल की है. कहने का मतलब ऐसा क्यों नहीं कहा जाता कि हिंदुस्तान के लिए हिंदी है, औरों से कनेक्ट करने के लिए अंग्रेजी या अन्य कोई भी क्षेत्रीय या विदेशी भाषा (जर्मन, फ्रेंच, स्पैनिश आदि) सीखी जा सकती है? खैर! कहां उलझा दे रहे हैं हम हिंदी को? नेतागण ही काफी है जिनका तात्कालिक हित सधता है हिंदी का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विरोध कर. वो कहें तो हिंदी को कोसेंगे भी तो हिंदी में ही.

इस वर्ष का विश्व हिंदी दिवस इस मायने में ख़ास है कि 15-17 फ़रवरी 2023 को फिजी में 12वां विश्व हिंदी सम्मलेन आयोजित किया जा रहा है. जहां तक विश्व भाषा के रूप में हिंदी की पहचान है तो तथ्य है कि 10 जून 2022 को संयुक्त राष्ट्र के सहकारी कामकाज के रूप में इसे स्वीकार किया गया. देश के उन लोगों को जो हिंदी की स्वीकृति पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं, शायद उन्हें पता नहीं है अबू धाबी (संयुक्त अरब अमीरात) ने अरबी और अंग्रेजी के साथ हिंदी को अपनी अदालतों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल कर लिया है. हिंदी दुनिया में तीसरे नंबर की (अंग्रेजी और मेंड्रिन के बाद) सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. हिंदी को हिंदुस्तान में ही डायपर पहने छोटा बच्चा बता दिया जाता है. ग्लोबल भाषाओं के परिवार में तीसरा स्थान रखने वाली हिंदी को भाषाओं के परिवार का सबसे छोटा सदस्य बताने वाले की बुद्धि पर तरस ही न आएगा, भले ही महान दल के अगुआ उन्हें गले लगायें भारत जोड़ने के नाम पर हिंदी से डिस्कनेक्ट रखकर. फ़िजी में हिंदी को आधिकारिक भाषा का भी दर्जा प्राप्त है.

नेपाल, मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, टोबैगो जैसे देशों में भी हिंदी प्रमुखता से बोली जाती है. कोई आश्चर्य नहीं होगा निकट भविष्य में यूएन में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाए जाने का दशकों से चला आ रहा प्रयास फलीभूत हो जाए, विश्व मंच पर भारत मजबूत जो हो रहा है. राष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदी को राजभाषा के साथ साथ समस्त भारत के लिए संपर्क भाषा के रूप में भी विकसित करने के यत्न के सुफल धीरे धीरे सामने आ रहे हैं. शायद यही रास नहीं आ रहा स्वार्थपरक राजनीति को. यदि मौजूदा सरकारें हिंदी का प्रमोशन कर रही हैं तो गलत क्या है? कहां अंग्रेजी बंद की है या हिंदी को अनिवार्य किया है? सुपरस्टार कमल हासन की राजनीति में अपनी नैया तो डूब चुकी और वे चले हैं कांग्रेस की नैया पार लगाने और कांग्रेस की मति मारी गई है. पता नहीं है शायद कांग्रेस को, तमिलनाडु में सबसे ज्यादा हिंदी सीखने की ललक है.

यदि कांग्रेसी नेता हिंदी ना बोलें तो क्या यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झाड़खंड, पंजाब, दिल्ली आदि में कनेक्ट कर पाएंगे? फिर आज कम्युनिकेशन के इतने उपकरण आ गए हैं कि कहना ही बेमानी है कि अंग्रेजी नहीं आती तो ग्लोबली कनेक्ट नहीं कर पाएंगे हमारे लोग. एक तथ्य है कि दुनिया भर का प्रवासी भारतीय जहां भी है, वहां की भाषा बोलता है लेकिन हिंदी पढ़ना खूब पसंद करता है, तमाम विदेशी मीडिया हिंदी वर्जन भी खूब चला रहे हैं. आश्चर्य होगा जानकर गीतांजलि श्री के बारे में जिन्हें अपनी हिंदी रचना 'रेत समाधि' के लिए लिटरेचर का ऑस्कर समझा जाने वाला बूकर प्राइज़ मिला कि वे स्वयं अंग्रेजी में पढ़ी लिखी है श्रीराम कॉलेज और जेएनयू में लेकिन विधा चुनी हिंदी. यदि अंग्रेजी ही वजह होती विकास की तो चीन, जापान, जर्मनी सरीखे देश सबसे पिछड़े होने चाहिए थे दुनिया में.

भारत की संसद के दोनों सदनों में हिंदी में कामकाज का प्रतिशत बढ़ा है. यहां तक कि गैर हिंदी राज्यों से आने वाले सांसद भी अंग्रेजी के बजाय हिंदी में चर्चा को प्रधानता दे रहे हैं. यूएस सरकार ने अपने विदेश मंत्रालय की वेबसाइट का हिंदी संस्करण भी शुरू कर दिया है. परिवर्तन अभी रुका नहीं है. 2022 से भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदी में याचिकाएं स्वीकार करना शुरू कर दिया है. 2021-22 सत्र से देश के प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी संस्थान मसलन आईआईटी, एनआईटी आदि ने हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढाई भी आरम्भ हो चुकी है. कुल मिलाकर हिंदी प्रतिष्ठित हो रही है. हिंदी में डॉक्टरी की पढ़ाई करवाने वाला पहला राज्य मध्य प्रदेश पिछले साल ही बना है.

अब वे दिन लद गए या कहें किसी की जुर्रत नहीं है कहने की कि अगर सुंदर पिचाई आईआईटी में हिंदी में परीक्षा देते तो क्या गूगल में टॉप पोस्ट पर होते? निःसंदेह होते ! किसी भी मल्टीनेशनल जायंट के लिए ज्ञान (नॉलेज) मायने रखता है और ज्ञान भाषा का मोहताज नहीं होता. विश्व हिन्दी दिवस 2023 की थीम है हिन्दी को जनमत का हिस्सा बनाना. इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि किसी को अपनी मातृभाषा छोड़नी होगी. हां, शुद्ध हिंदी का स्वरूप थोड़ा जटिल जरूर है, आम आदमी के लिए शुद्ध हिंदी को समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन नामुमकिन नहीं है क्योकि हिंदी हमारी रगों में है. थोड़े प्रयासों से ही हिंदी साहित्य को, इसकी गरिमा को समझा जा सकता है.

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय