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Updated: 16 जून, 2015 02:33 PM
आरुषी चड्ढ़ा
आरुषी चड्ढ़ा
  @aarushichadha
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जो स्टूडेंट बोर्ड एग्जाम दे चुके हैं, उनके लिए डीयू के कटऑफ आने से बड़ी घटना कोई नहीं हो सकती. कटऑफ आने से पहले कितनी अटकलबाजी होती है, इसे समझा जा सकता है.
 
इस बारे में सबकी अपनी थ्योरी है. जितने लोग, उतनी बातें. रिश्तेदार भी अपना मत देने से पीछे नहीं रहते. भारतीय परिवार को दो चीज एक साथ लाती है, जिसमें पहला है फैमिली पॉलिटिक्स और दूसरा बोर्ड एग्जाम का रिजल्ट. पड़ोसी, नजदीकी, टीचर्स और क्लासमेट भी पूरी प्रक्रिया पर अपनी राय देने से पीछे नहीं रहते.
 
इन सब अलग-अलग विचारों के बीच एक सच ये है कि कटऑफ हर बार बढ़ता जा रहा है. आप कहेंगे कि पिछले साल ही कटऑफ आसमान छू रहा था तो इसमें वृद्धि कैसे संभव है? क्या हमें डीयू पर भरोसा रखना चाहिए? मुझे पूरा भरोसा है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी प्रशासन जरूर कोई रास्ता निकालेगा, ताकि इस साल कोई परेशानी न हो.
 
दूसरी खबर ये है कि सीबीएसई की मार्क्सशीट स्कूल में पहुंच चुकी हैं. हमने इस सप्ताह मार्क्सशीट ले ली. मेरी मां और भाई के साथ मैं सोमवार को मार्क्सशीट लेने स्कूल पहुंची और वहां से केक और नारियल बर्फी के साथ वापस लौटी. बिना मिठाई के दूसरों को खुशखबरी सुनाना बड़ा अपराध है.
 
एक सप्ताह के भीतर रिजल्ट की जो खुशी थी वो कम होने लगी. अब धीरे-धीरे गुस्सा और अधीरता आने लगी है. पापा के साथ जाकर मैंने साइकोलॉजी की आंसरशीट को फिर से जांचने के लिए अप्लीकेशन दी है. मुझे लगता है कि जितना अच्छा मेरा पेपर हुआ था, उस हिसाब से मेरे नंबर नहीं आए. मेरी साइकोलॉजी टीचर ने भी मुझसे कहा कि "दस नंबर कहां गए?"
 
एक सप्ताह गुजर जाने के बाद भी मुझे इसके बारे में कोई अपडेट नहीं मिला. एक दिन मेरी फ्रेंड ने मुझे बताया कि उसके फिजिक्स की आंसरशीट का वेरिफिकेशन हो गया है और उसके दस नंबर बढ़ गए हैं. मैंने अपनी अंगुलियों को क्रॉस कर प्रार्थना की कि मुझे भी इसी तरह की खबर सुनने को मिले.
 
डीयू में क्रेडिट सिस्टम को लागू करने के बारे में चर्चा हो रही है. स्टूडेंट्स को एक सुविधा दी जाती है कि वो कोर, इलेक्टिव या सॉफ्ट स्किल कोर्स को चुन सकें. क्रेडिट बेस्ड सैमेस्टर सिस्टम के अनुसार स्टूडेंट्स को डिग्री या डिप्लोमा उसके द्वारा प्राप्त क्रेडिट के आधार पर दिया जाना है.
 
हालांकि क्रेडिट सिस्टम स्टूडेंट्स के लिए कुछ खास अच्छा  है, लेकिन इसे इतने कम समय में लागू कर पाना भी मुश्किल है. बिना फैकल्टी, ऑर्गेनाइजेशन और इनफ्रास्टक्टर के इस बारे में यूनिवर्सिटीज से ज्यादा उम्मीद करना भी सही नहीं है.
 
इस सप्ताह शिक्षा के क्षेत्र में कुछ दिलचस्प प्रगति हुई है. कटऑफ के आने तक अगला हफ्ता खामोशी से गुजरेगा. आइए प्रार्थना करें कि उसके बाद कुछ बुरा न हो.

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लेखक

आरुषी चड्ढ़ा आरुषी चड्ढ़ा @aarushichadha

लेखिका डीयू की छात्रा हैं.

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