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Updated: 27 जुलाई, 2017 12:24 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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पोस्ट की पहली लाइन ही सारा ध्यान अपनी तरफ खींचती है और आप शायद उससे इत्तेफाक भी न रखें, कि 'भारतीय माता-पिता अपने बेटों से इतनी नफरत क्यों करते हैं.' भारत के माता-पिता अपने बेटों से नफरत !! जबकि भारत के लोगों का पुत्र प्रेम तो जग जाहिर है. फिर किसी ने ये क्यों लिखा.

indian sad man

पर पोस्ट पढ़कर सारा संशय दूर हो जाएगा-

'मैं बस सोच रही थी कि भारतीय माता-पिता अपने बेटों से इतनी नफरत क्यों करते हैं. इन बेचारों को खुद के लिए एक कप चाय बनाना भी सिखाया नहीं जाता, पूरा खाना तो भूल ही जाओ. उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं कि घर की साफ सफाई कैसे करें, कपड़े कैसे धोएं या फिर अपना ध्यान कैसे रखें.

उन्हें हमेशा दूसरों की दया पर ही रहना पड़ता है. ये बहुत दुख की बात है. मैंने  ऐसे परिपक्व पुरुष भी देखे हैं जो कभी भी किसी ऑफिस ट्रिप या फिर घूमने नहीं जा सकते, जब तक कि उनकी पत्नियां उनका सूटकेस तैयार न कर दें. भारतीय मर्दों की ये पूरी पीढ़ी भूखों मरेगी अगर इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया जाए.

मैंने हमेशा यही सोचा था कि माता-पिता अपने बच्चों को बराबर का प्यार देते हैं. लेकिन ऐसा है नहीं. वो बेटियों को इस तरह बड़ा करते हैं कि वो अपना ध्यान रख सकें और किसी भी परिस्तथिति में जीवन गुजार सकें...लेकिन वो बेटों को इस तरह बड़ा करते हैं कि वो मजबूर रहते हैं और उन्हें कुछ नहीं आता.

मुझे लगता है कि मुझे घर पर पुरुषों के लिए समान अधिकार के लिए एक पिटिशन शुरू करनी चाहिए. हंसिए मत... इसके बारे में सोचिए..जबकि भारतीय महिलाएं मार्स तक जा पहुंची हैं, वहीं हमारे यहां के ये बेचारे लड़के धीमी मौत मर रहे हैं क्योंकि किसी ने उन्हें गैस तक जलाना तक नहीं सिखाया है !'

इस पोस्ट को एक बेटे ने ट्विटर पर शेयर किया, जिसके बाद लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया और वायरल कर दिया. इस पोस्ट का वायरल होना लाज़मी था क्योंकि हो न हो या हर महिला के दिल की बात थी और हर घर की कहानी.

अब तो आप समझ ही गए होंगे कि एक मां ने ऐसा क्यों लिखा. सुननें में अजीब लगा होगा, लेकिन ये वास्तविकता है जिसे हमारा समाज जीता आया है. समाज लड़कों और लड़कियों की परवरिश हमेशा अलग-अलग तरीके से करता आया है. और उसकी नतीजा यही है कि आज लड़के पूरी तरह अपने मां और बीवियों पर ही निर्भर रहते हैं. क्योंकि ये वो दौर था जब लड़कों पर बाहर के काम की और पैसा कमना की जिम्मदेरी होती थी और लड़कियों को सिर्फ यही सिखाया जाता था कि उन्हें तो केवल पराए घर जाना हा और घर संभालना है.  

girl, indiaबेटियों को बचपन से ही घर के काम सिखाए जाते हैं

पर समय भले ही बदल गया हो, लड़के-लड़कियां भले ही आज कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हों लेकिन लड़कों की परवरिश का तरीका अब भी नहीं बदला. मां चाहे कितनी भी बूढ़ी हो जाए वो अपने बेटे के लिए पानी भी खुद ही लाकर देती है. मां पास न हो तो घर के काम करने के लिए लड़के मेड रखते हैं, और अगला पड़ाव शादी होता है, जिसका आधार भी यही होता है कि बीवी आएगी तो घर संभाल लेगी.

आखिर समाज लड़कों के लिए इतना बेफिक्र क्यों है, जबकि वास्तविकता यही है कि एक औरत के बिना वो ढंग का खाना भी नहीं खा सकता. लड़कियों के सिर पर ही सारी जिम्मेदारियों का बोझ डाल दिया जाता है. कि वो घर भी संभालेगी, खाना भी बनाएंगी, कपड़े भी वही धोएंगी, बच्चे पैदा करके उनकी परवरिश भी करेंगी, और तो और हद तो तब होती है जब महिला कामकाजी होने के बावजूद भी ये सारे काम करती है और पति और घरवाले उसी मुगालते में जीते रहते हैं कि ये सारे काम तो महिलाओं के ही हैं.

अब जरा आंकड़ों पर नजर डाल लीजिए-

ये सिर्फ कहने की बात नहीं, सबूत भी साथ हैं. 2014 में Organization for Economic co-operation and Development (OECD) ने एक सर्वे कराया था जिसमें ये पाया गया कि भारत के पुरुष औसतन केवल 19 मिनट ही घर के काम को देते हैं, जो पूरी दुनिया के आकड़ों के हिसाब से सबसे कम है. जबकि सोल्वेनिया के पुरुष घर के कामों में करीब 114 मिनट बिताते हैं. भारतीय पुरुष 703 मिनट यानी 11 घंटे रोज खुद को देते हैं- जैसे सोना, खाना और पीना. और माताएं इस सच को बहुत गर्व से कहती हैं कि हमारे बेटे ने तो कभी पानी भी खुद से लेकर नहीं पिया.   

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हालांकि 2010 में International Center for Research on Women (ICRW) के सर्वे में ये भी पाया गया कि केवल 16% पुरुष ही ऐसे हैं जो घर में बराबरी से काम करते हैं. और जो लोग दिल से चाहते हैं कि वो घर के कामों में पत्नियों का सहयोग करें उन्हें पता ही नहीं है कि उन्हें काम कैसे करना है, क्योंकि उन्हें कभी कुछ सिखाया ही नहीं गया. बहुत से पुरुषों को तो रसोई में एलपीजी सिलेंडर तक बदलना नहीं आता.

household_070317020130.jpgजरूरी है बेटों को भी सभी काम सिखाना

आश्चर्य और अफसोस तब होता है जब इसकी जड़ पर ध्यान जाता है. इस पूरी कवायद में महिलाएं खुद शामिल हैं क्योंकि बेटों की परवरिश करने वाले पिता अकेले नहीं होते मां भी होती हैं. खुशी है कि आजकल की भुक्तभोगी महिलाएं अपने बेटों को ऐसी परवरिश दे रही हैं कि उन्हें आगे चलकर किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़े. 

तो खुद से पूछिए, और आकलन कीजिए खुद का कि आप कितने पानी में हैं. और कब तक पानी में ही रहना चाहते हैं?

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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