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Updated: 18 जून, 2023 06:47 PM
डॉ. आशीष वशिष्ठ
डॉ. आशीष वशिष्ठ
  @vashishtspeaks
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एक देश के नागरिक दूसरे देश और एक शहर से दूसरे शहर तक आते-जाते ही हैं तो फिर वह कौन अमेरिका है जो मुंबई नहीं पहुंच सका. असल में यह अमेरिका अपने ही देश का नाम है, जो अब इस दुनिया में नहीं है. अमेरिका की जान सरकारी सिस्टम ने ले ली. वह बेचारा रोजी-रोटी कमाने के लिए घर से मुंबई जाने के लिए रेलगाड़ी पकड़ने निकला था, लेकिन प्लेटफार्म पर हुई भगदड़ में अपने प्राण गंवा बैठा. वैसे यह कोई ऐसा पहला मामला नहीं है कि कोई अमेरिका व्यवस्था की लापरवाही और लचर सिस्टम का शिकार हुआ हो. कोई भी हादसा होने के बाद सरकारी व्यवस्था और प्रशासन लकीर पीटने का काम करता है. और दो चार दिन के बाद गाड़ी पुरानी पटरी पर दौड़ने लगती है.

ताजा मामला देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के भटनी रेलवे स्टेशन का है. मूलत: बिहार निवासी 48 वर्षीय अमेरिका राजभर अपने 20 वर्षीय भतीजे आनंद के साथ बीती 24 मई को भटनी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर 1 पर मुंबई जाने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे. मुंबई जाने वाली काशी एक्सप्रेस के प्लेटफार्म नंबर एक पर आने की सूचना थी. यात्री इसी प्लेटफार्म पर ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे. अचानक घोषणा होने लगी कि काशी एक्सप्रेस प्लेटफार्म चार पर आ रही है. यह सुनते ही यात्रियों में भगदड़ मच गई. भागकर लोग प्लेटफार्म चार पर पहुंचे. इसी बीच कई लोग गिर कर चोटिल भी हो गए.

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वहीं बिहार के गोपालगंज के विजयीपुर क्षेत्र के कुटिया छितौना गांव निवासी अमेरिका राजभर और उनका भतीजा आनंद प्लेटफार्म एक से चार पर जाने लगे. फुट ओवरब्रिज पर भीड़ अधिक होने की वजह से दोनों सीधा ट्रैक पार करके प्लेटफार्म तीन पर पहुंचे थे कि काशी एक्सप्रेस चल पड़ी. यह देख अमेरिका ट्रैक से ही ट्रेन पर चढ़ने लगा. तभी उनका पैर पावदान से फिसल गया और वह ट्रेन की चपेट में आ गए. मौके पर चश्मदीद भतीजा आनंद ने अचानक प्लेटफार्म बदलने पर घटना के लिए रेलवे के जिम्मेदारों को दोषी ठहराया.

इस मामले को मीडिया ने उठाया तो डीआरएम वाराणसी ने प्लेटफार्म बदलने और रेलवे के जिम्मेदारों की वजह से मजदूर की मौत के आरोप को गंभीरता से लेते हुए विभागीय अधिकारी को इसकी जांच सौंपी है. ये तो हर बार घटना के बाद होता है. जांच बिठाई जाती है और जाचं रिपोर्ट का क्या होता है, ये व्यवस्था में शामिल लोग बेहतर तरीके से जानते हैं. अमेरिका के घर वालों को जांच रिपोर्ट से क्या लेना-देना, उनका तो सहारा सरकारी सिस्टम का शिकार होकर अपनी जान गंवा बैठा.

ये कोई पहला मौका नहीं है जब अचानक गाड़ी का प्लेटफार्म बदला गया हो, या फिर भगदड़ में किसी की मौत हुई हो. लेकिन घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इस पर किसी का ध्यान नहीं है. घटना घटती है, दो-चार दिन चर्चा होती है और उसके बाद नयी घटना घटने तक सब अपने काम में लग जाते हैं. 24 अक्टूबर 2018 को पश्चिम बंगाल के संतरागाछी रेलवे स्टेशन पर भगदड़ से दो लोगों की मौत हो गई. वही 14 लोग घायल हो गए. यहां दो ट्रेनों के एक साथ आने से फुट ओवरब्रिज पर भगदड़ मच गई, जिसकी वजह से यह हादसा हुआ.

आंकड़ों के आलोक में बात करें तो 23 अप्रैल 2018 को लखनऊ जिले के हरौनी रेलवे स्टेशन पर पैसेंजर ट्रेन के आने से ठीक पहले प्लेटफार्म बदलने की सूचना पर भगदड़ मच गई. इस भगदड़ में 25 वर्षीय प्रदीप कुमार की ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई और दो अन्य यात्री बुरी तरह जख्मी हो गए. 30 सिंतबर 2017 को मुंबई में एल्फिंस्टन रोड रेलवे स्टेशन के पास फुट ओवर ब्रिज पर भगदड़ में 22 लोगों की मौत हो गई और करीब 32 लोग घायल हुए.

10 फरवरी, 2013 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में कुंभ मेला के दौरान रेलवे जंक्शन पर भगदड़ मचने से 38 लोगों की मौत हो गई जबकि 50 लोग घायल हो गए. 29 सितंबर 2011 को मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन में बने फुटओवर ब्रिज पर भगदड़ की वजह से 22 से ज्यादा लोगों की मौत हुई.

16 मई 2010 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मची. जिसमें एक महिला और बच्चे की मौत हो गई ओर सात लोग घायल हुए. हादसा अचानक प्लेटफॉर्म बदलने की वजह से हुआ. गर्मियों की छुट्टी होने की वजह से स्टेशन पर मुसाफिरों की भारी भीड़ थी. नई दिल्ली से भागलपुर जाने वाली संपर्क क्रांति एक्सप्रेस को प्लेटफॉर्म नंबर 13 पर आना था लेकिन आखिरी वक्त में ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदल दिया गया. इससे यात्रियों में भगदड़ मच गई.

03 अक्तूबर, 2007 को जिउतिया व्रत के अवसर पर वाराणसी में गंगा स्नान के बाद मुगल सराय जंक्शन पर जमा भीड़ में मची भगदड़ में 14 महिलाओं की मौत हो गई और 40 से अधिक यात्री घायल हो गए. 13 नवंबर, 2004 को नई दिल्ली स्टेशन पर छठ पूजा के दौरान बिहार जाने वाली ट्रेन की प्लेटफार्म अचानक बदल दिए जाने से दूसरे प्लेटफार्म पर जाने के लिए ओवरब्रिज पर भगदड़ मच गई जिसमें पांच की मौत हो गई तथा 10 लोग घायल हो गए.

28 सितंबर, 2002 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बासपा की रैली में आए कार्यकर्ता के वापस घर लौटते समय स्टेशन पर भीड़ अधिक होने के कारण ट्रेन के उपर चढ़ रहे लोगों में से चार की करंट लगने से मौत हो गई और उसके बाद मची भगदड़ में कई लोग घायल हो गए.

वैज्ञानिकों ने सन 1900 के बाद से अब तक भगदड़ या भीड़भाड़ के कारण हुई घटनाओं का एक डेटाबेस तैयार किया है. वे उम्मीद कर रहे हैं कि इस डेटाबेस के आधार पर दुनियाभर में भीड़भाड़ के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए समुचित उपाय उठाए जा सकेंगे.

इस डेटाबेस में 1900 से 2019 के बीच हुईं 281 उन घटनाओं को शामिल किया गया है जिनमें या तो कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई या दस से ज्यादा लोग घायल हुए. आंकड़े दिखाते हैं कि भारत और पश्चिमी अफ्रीका भगदड़ की दुर्घटनाओं के सबसे बड़े केंद्र बनते जा रहे हैं. पिछले तीन दशक में इस तरह की घटनाएं घातक होने की संभावना लगातार बढ़ी है. अन्य खतरनाक इलाकों में दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य-पूर्व हैं.

रेलवे स्टेशन पर ही नहीं अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भी भगदड़ के कारण दुखद हादसे की खबरें सुर्खियां बनती हैं. लेकिन हादसे के बाद शायद ही कभी उसकी रोकथाम के स्थायी उपायों पर कोई ठोस कार्यवाही होती हो. सरकार और प्रशासन का पूरा फोकस मामले को निपटाने और मुआवजा बांटने पर होता है. बेशक सार्वजनिक स्थलों पर नागरिकों को भी संयमित व्यवहार करना चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं है कि संवेदनशील व्यवस्था आम जन के जीवन को सहज बनाती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में रेलवे प्रशासन पूरी मुस्तैदी से कार्य करेगा.

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