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Updated: 03 सितम्बर, 2016 07:06 PM
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देश के ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक शिक्षा की बदहाली किसी से छुपी नहीं है. उत्तर प्रदेश की स्थिति तो इस मामले में और भी खराब है. ऐसी शिकायतें आम तौर पर मिलती हैं कि शिक्षक स्कूलों से नदारद रहते हैं. स्कूलों में आते भी हैं तो बच्चों को पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं लेते. ऐसे में बच्चे किस तरह का ज्ञान हासिल करते होंगे, ये खुद ही समझा जा सकता है. लेकिन ऐसे हालात में भी उम्मीद की किरण जगाने वाले कुछ शिक्षक हैं, जिन पर गर्व किया जा सकता है.

ऐसी ही कुछ कहानी है यूपी के दो शिक्षकों की, जिनका तबादला हुआ तो स्कूल के बच्चे फूट फूट कर रोने लगे. गांव का हर शख्स दुखी दिखाई दिया. महिलाओं के मंगलगीत गाने के साथ पूरे गांव के गांव ने सड़क तक आकर इन शिक्षकों को विदाई दी.

'मास्टर साहब, हमें रोता छोड़कर मत जाओ'

पहली कहानी है शिक्षक अवनीश यादव की. वे अब तक देवरिया के गौरी बाजार ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय, पिपराधन्नी में प्रधानाध्यापक के पद पर तैनात थे. 

मूल रूप से गाजीपुर के बभनवली गांव के रहने वाले अवनीश की 2009 में इस विद्यालय के लिए तैनाती हुई थी. तब गांव में शिक्षा के हालात बहुत ही बदहाल थे. गांव के लोग बच्चों को स्कूल ही नहीं भेजते थे. अवनीश ने हरिजन बस्ती और मजदूर वर्ग में जा-जा कर लोगों को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए मनाया. साथ ही स्कूल की खामियां भी बताने को कहा. 

अवनीश ने जी-जान लगाकर बच्चों को पढ़ाया. जरूरत पड़ने पर खुद ही उन्हें कॉपी-पेंसिल खरीद कर भी दी. अपने काम की वजह से ही अवनीश को 2013 में इसी विद्यालय में तरक्की देकर प्रधानाध्यापक बना दिया गया. अवनीश की मेहनत से ना सिर्फ शिक्षा के हालात बदले बल्कि उन्होंने गांव की समस्याओं को दूर कराने में भी योगदान दिया.

हाल में अवनीश का तबादला उनके गृह जनपद गाजीपुर के लिए हुआ.मूल रूप से गाजीपुर के बभनवली गांव के रहने वाले अवनीश की 2009 में इस विद्यालय के लिए तैनाती हुई थी. तब गांव में शिक्षा के हालात बहुत ही बदहाल थे. गांव के लोग बच्चों को स्कूल ही नहीं भेजते थे. अवनीश ने हरिजन बस्ती और मजदूर वर्ग में जा-जा कर लोगों को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए मनाया. साथ ही स्कूल की खामियां भी बताने को कहा.

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 मत जाओ सर...हमें छोड़ के

वो स्कूल से विदाई लेने के लिए पहुंचे तो पूरा गांव गमगीन था. बच्चों को फूट-फूट कर रोता देख अवनीश की आंखों से खुद भी आंसुओं की धारा बह निकली.

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 गुरु-शिष्य का ऐसा प्रेम आखिरी बार कब देखा था.. 

क्या बच्चे, क्या महिलाएं, क्या गांव का हर शख्स, सब यही कहते नज़र आये कि 'मास्टरजी हमें रोता छोड़कर मत जाओ.' लेकिन जाना तो था. फिर महिलाओं के मंगलगीत के साथ पूरा गांव अवनीश को सड़क तक छोड़ने के लिए उमड़ आया.

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 पूरा गांव विदाई के लिए उमड़ा..

'हमारे सरजी वापस ले आओ, उनकी बहुत याद आती है'

अवनीश से मिलती कहानी है मुनीश कुमार की भी. मुनीश रामपुर जिले के शाहबाद इलाके के रमपुरा गांव में अब तक प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक के पद पर तैनात थे. इससे पहले वो इसी इलाके में परोता प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर रह चुके हैं.

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 फूट फूट के रोए बच्चे

मैनपुरी के मूल निवासी मुनीश कुमार की इतनी मेहनत का ही कमाल है कि उन्होंने गांव में शिक्षा की तस्वीर बदल दी.

उनकी मेहनत को देखते हुए उन्हें रमपुरा प्राथमिक विद्यालय का प्रधानाध्यापक बना दिया गया. मुनीश का हाल में उनके मूल जिले में तबादला हुआ तो वो रिलीव होने के बाद स्कूल पहुंचे.

स्कूल के बच्चों, शिक्षकों और गांव के हर शख्स को ऐसा लगा कि जैसे उनके घर का कोई अपना ही उनसे दूर जा रहा है. फिर भी गांववालों ने पूरे गाजेबाजे के साथ मुनीश को विदा किया. आज तक की टीम ने जब रमपुरा प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के साथ बात की तो वे अपने मुनीश सर को याद कर दोबारा रोने लगे. साथ ही कहने लगे, 'हमारे सर को वापस ले आएं, उनकी बहुत याद आती है, उनसे अच्छा न कोई था और न कोई आएगा.'

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 इस देश को ऐसे शिक्षक और भी चाहिए...

स्कूलों में पढ़ाने से जो शिक्षक कतराते हैं, उन्हें अवनीश और मुनीश से सीख लेनी चाहिए. यही तो वो जज्बा है जो देश के देहातों में शिक्षा की तस्वीर बदल सकता है.

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