दशहरा: पक्षपातपूर्ण आक्रोश का अंत हो
दादरी और मूंदबिदरी को अलग-अलग आइने से नहीं देखा जा सकता है. दादरी गलत था और मूदबिदरी भी गलत. दोनों के आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए. और न्यााय के लिए हमारी लड़ाई पक्षपात रहित होनी चाहिए.
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दशहरा अच्छाई की बुराई पर जीत का पर्व है. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने रावण का अंत कर दिया था लेकिन अच्छाई और बुराई के बीच की यह जंग आज भी जारी है. लिहाजा, हमें अपने-अपने तरीके से बुराई के खिलाफ इस लड़ाई को जारी रखना है.
शक्तिशाली भारत के निर्माण के लिए हमें भी भेदभावपूर्ण आक्रोश या छद्म धर्म निर्पेक्षता के दानव के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है. फिर वह दादरी हो या मूदबिदरी, अखलाक हो या प्रशांत पुजारी, यहां हार तो भारत की हो रही है.
कुछ लोग हमें बांटने का खेल खेल रहे हैं और वे इसे जारी रखेंगे. जैसे कि 1984 बनाम 2002 और दो दंगों में तुलना करते हुए आक्रोश जाहिर करेंगे. क्यों न हम सभी दंगों को एक समान मानते हुए पूरी ताकत से उनका दमन करने की कोशिश करें, न कि दंगों में भेद कर कुछ को सही साबित करने के तर्क ढूंढें. ऐसा कोई भी दंगा, जिसमें इस देश के आम जनमानस के खिलाफ हिंसा का प्रयोग हो रहा है, को किसी हालत में उचित नहीं ठहराया जा सकता. यही आदर्श स्थापित करने की जरूरत है. हम इस बेतुके तर्क को कभी बर्दाश्ता नहीं कर सकते कि किसी ढांचे को गिरा दिए जाने के प्रतिशोध में आंतकी घटना को अंजाम दिया गया.
हमें ऐसे बयान कि ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है’ को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. न ही हमें महज इसलिए उन दंगों पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है जिन्हें पहली बार टेलीवीजन पर प्रसारित किया गया है. हमारी जिम्मेदारी सभी दंगाइयों को बेनकाब करने की है और यह काम हमें पूरे साहस के साथ करने की जरूरत है. हमारा लक्ष्य एक दंगा मुक्त भारत का निर्माण करना है.
दादरी में मारे अखलाक और मूदबिदरी में हुई प्रशांत पुजारी की हत्या. |
इसके साथ ही हमें अपने भीतर झांक कर देखने की भी जरूरत है. क्या हम भी दादरी बनाम मूदबिदरी के आरोपी हैं, और हम दादरी का मूदबिदरी के अपेक्षा ज्यादा कवरेज कर रहे हैं? हालांकि, जब हम अपना काम कर रहे होते हैं, हमारा दर्शक तय करता है कि हम अपने काम को कितनी ईमानदारी से कर रहे हैं. बहरहाल, सच्चाई यही है कि किसी भी भारतीय का कत्ल समान रूप से निंदनीय है.
दादरी और मूंदबिदरी को अलग-अलग आइने से नहीं देखा जा सकता है. दादरी गलत था और मूदबिदरी भी गलत. दोनों के आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए. और न्यााय के लिए हमारी लड़ाई पक्षपात रहित होनी चाहिए, ताकि किसी को ये न लगे कि हमने किसी का पक्ष लिया और किसी को नजरअंदाज किया.
अखलाक बेकसूर था, उसका कत्ल गोमांस रखने की अफवाह के चलते हुआ. उसके कातिलों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए. लेकिन क्या प्रशांत पुजारी, जो महज गैरकानूनी कत्लखाने पर छापेमारी कर रहे दल में शामिल था, उसके कत्ल को जायज ठहराया जा सकता है? क्या उसके कत्ल पर भी उतना ही असंतोष और आक्रोश नहीं होना चाहिए? हमें इस पक्षपातपूर्ण आक्रोश के लिए खुद को तैयार रखना होगा.
प्रशांत पुजारी की निर्मम हत्या तथाकथित उन 4-6 लोगों द्वारा की गई जिन्होंने उसे जान से मारने की सार्वजनिक धमकी दी थी. इस देश का कानून सब पर समान लागू होता है. अगर हम बतौर मीडिया अच्छी भीड़ और बुरी भीड़ का अंतर करते हैं तो हम अपने काम के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं. इस देश का कानून सभी पर समान रूप से लागू होना ही चाहिए. वही भी बिना डर और पक्षपात के. लिहाजा, हमें सभी पक्षों को समान साहस के साथ सामने रखने की जरूरत है.
हम सभी को राम राज्य स्थापित करने की कोशिश करनी होगी. हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी यही कहा है.
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