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Updated: 13 मार्च, 2017 09:20 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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"पूत के पांव पालने में ही दिखते हैं" बस ये कहावत थी और होलिका, यूं समझ लीजिये इस कहावत को चरितार्थ ही होलिका ने किया था. होलिका बचपन से ही पढाई में बहुत अच्छी थी. नवीं तक सब ठीक था मगर हाई स्कूल में वो थोड़ा बहक गयी और उसके सीबीएसई बोर्ड में 79 परसेंट मार्क्स आए. घर वालों ने उसे बहुत समझाया और इंटर के लिए आई.एस.सी बोर्ड में ट्रांसफर कर दिया, लड़की ज़हीन थी, बात समझ गयी और इस तरह उसने 99 परसेंट के साथ इंटर की परीक्षा में पास होकर के इतिहास रच दिया.

99 पर्सेंट मार्क्स लाने के बाद होलिका को ग्रेजुएशन में एडमिशन के लिए धक्के नहीं खाने पड़े. “लेडी श्री राम कॉलेज” और मिरांडा हाउस दोनों की पहली ही कट ऑफ़ लिस्ट में उसका नाम आ गया था. दोस्तों और रिश्तेदारों के कहने पर उसने “लेडी श्री राम कॉलेज” को चुना और 3 साल तक वहां की सबसे ब्राइट स्टूडेंट रही.

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पढाई में अच्छे होने और मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुख रखने के कारण उसका भी सपना आई.ए.एस बनना था. परिवार में पैसों की तंगी के चलते होलिका एक बैंक पीओ की तैयारी कराने वाले इंस्टिट्यूट में पार्ट टाइम जॉब करती थी. मैथ्स के अलावा होलिका "एप्टीट्यूड और रीजनिंग" में भी बहुत अच्छी थी. यूं तो होलिका में सारी अच्छाइयां थीं मगर कुछ मामलों में वो बड़ी ऐरोगेंट थी. वो अपनी हार नहीं पचा पाती थी, साथ ही तब वो बहुत गुस्सा होती जब कोई उसकी हां में हां नहीं मिलाता.

खैर, इन सब के इतर होलिका का भतीजा प्रह्लाद, जो उससे कुछ साल ही छोटा और इलाहाबाद से जबरदस्ती दिल्ली बैंक पीओ की कोचिंग के लिए भेजा गया था, वो उसी के साथ रह रहा था प्रह्लाद भी पढ़ने में ब्राइट स्टूडेंट था मगर उसके कुछ अलग सपने थे. होलिका अपने भाई की कच्ची उम्र से परिचित थी और जानती थी की इसी उम्र में बच्चे बिगड़ते हैं. साथ ही उसे उन परिस्थितियों का भी पता था जिसके चलते दिल्ली का पब कल्चर और उस कल्चर में थोक के भाव इफ़रात जाट और गुज्जर समुदाय के रईस युवा कच्ची उम्र के लड़कों को बिगाड़ देते थे. इसी बात को ध्यान में रखते हुए होलिका ने प्रह्लाद का एडमिशन अपने ही इंस्टिट्यूट में करवा दिया. अब प्रह्लाद बुआ के साथ एक ही इंस्टिट्यूट में था.

कहानी में ट्विस्ट यहीं से शुरू हुआ. प्रह्लाद की उम्र 19 साल थी उसे भी दोस्तों संग पार्टी करने का शौक था. उसमें भी गर्लफ्रेंड को डेट पर “थिन क्रस्ट पिज़्ज़ा” और “मसाला लेमोनेड” पिलाने के सपने पल रहे थे. बुआ होलिका ने प्रह्लाद के सपनों की कोई परवाह नहीं की और दिन रात उससे मैथ्स और रीजनिंग के क्वेश्चन सॉल्व कराती और बचे वक़्त में बेचारा प्रह्लाद इंग्लिश कॉम्प्रिहेंशन पैसेज में टेंस और एक्टिव पैसिव वॉइस खोजता. जैसा कि ज्ञात है होलिका मैथ्स के अलावा “एप्टीट्यूड और रीजनिंग" में भी बहुत अच्छी थी तो उसने खुद कई रातें जागकर प्रह्लाद को पढाया था, मगर प्रह्लाद “एसबीआई बैंक पीओ” का एग्जाम क्वालीफाई नहीं कर सका.

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प्रह्लाद का बचपन से ही सपना था कि वो गुड़गांव के किसी इंटरनेशनल कॉल सेंटर में काम करके बड़ा आदमी बने और ढेर सारा पैसा कमाए. प्रह्लाद को बैंक पीओ की परीक्षा देनी ही नहीं थी मगर बुआ की अपनी ज़िद के चलते प्रह्लाद “एसबीआई बैंक पीओ” के एग्जाम में बैठा तो मगर उसे क्वालीफाई नहीं कर सका. नतीजे के बाद "होलिका" की घर के अलावा सारे इंस्टिट्यूट में बेइज़्ज़ती हुई और मारे गुस्से के उसने प्रह्लाद को अपने घर से निकाल दिया और हारे जाने के गम में आत्महत्या कर ली. प्रह्लाद बच गया और होलिका अपने अहम में जल के स्वाहा हो गयी.

आज प्रह्लाद गुड़गांव स्थित एक कॉल सेंटर में फ्लोर मेनेजर है जिसे तनाव और काम की अधिकता के चलते कई घातक बीमारियां हो गयी हैं. आज भी अक्सर वो पब में गोल कुर्सी पर बैठकर “एसबीआई बैंक पीओ के लिए निकली बम्पर भर्तियों को देखते हुए” बुआ होलिका की बातों को याद करता है- काश के उसने उस वक़्त पढ़ लिया होता तो आज जीवन इतने तनाव में नहीं कट रहा होता साथ ही क्रेडिट कार्ड से लेकर होमलोन और कार लोन भी उसे आसानी से मिल जाते. काम का मारा प्रह्लाद अब अक्सर अकेले में बस यही बड़बड़ाता है कि ''अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत.''

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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