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Updated: 06 जनवरी, 2016 05:07 PM
डॉ. मोनिका शर्मा
डॉ. मोनिका शर्मा
  @drmonica.sharrma
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देश के लिए शहीद होना सेना के जवानों का सबसे बड़ा बलिदान है. पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर हुए आतंकी हमले में देश ने अपने 7 वीर जवानों को खो दिया. इस आतंकवादी हमले के बाद सोशल मीडिया से लेकर आमजन के घर-परिवारों तक जवानों के बलिदान और वीरगाथा की बात हो रही है. हो भी क्यों नहीं, अपनी सरजमीं की सुरक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देने वाले जवान हैं ही नमन योग्य. यह दुर्भाग्य ही है कि देश के होनहार जवानों के जाने पर हर बार यूँ ही आंखें नम होती हैं, ह्रदय विदीर्ण होता है और मन में आक्रोश भर जाता है. क्योंकि जवानों का यूँ असमय चले जाना केवल राजनीतिक रीति- नीति के आधार पर समझी जाने वाली बात नहीं. ऐसे हमलों में सेना के जवानों का शहीद होना पूरे समाज के मनोविज्ञान को प्रभावित करता है. देश की सुरक्षा से जुड़े चिंतनीय हालात सामने लाता है. उन परिवारों की पीड़ा दर्शाता है जिन्होंनें देश की सेवा के लिए अपने घर का एक सदस्य खो दिया होता है. हालाँकि यह भी एक बड़ा सच है कि ऐसे हमलों में जान गंवाने वाले सैनिकों के परिवारों का दर्द उनके अपनों के अलावा कोई नहीं समझ सकता.

जिस तरह से दुनियाभर में खौफनाक फिदायीन हमले बढ़ रहे हैं उनसे जूझने वाले सशस्त्र बालों की समस्याएं भी बढ़ रही हैं. बरसों से आतंक का दंश झेल रहे हमारे देश के जवानों के लिए भी आये दिन होने वाले इन जानलेवा हमलों से कई समस्याएं खड़ी हो रही हैं. यह अफसोसजनक ही है अपनी जिंदगी को दूसरों की जिंदगियां  छीन लेने के लिए लगा देने वाले चंद सिरफिरों की वजह से जवानों के परिवार जीवन भर का दंश भोगने को अभिशप्त हो जाते हैं. हर साल ऐसी मुठभेड़ों में कितने ही सैनिक देश और आमजन की सुरक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर देते हैं. हर बार देश की जनता और उनके परिवारों का मन इस पीड़ा को भोगता है. यह सच है कि शहीद हुए जवानों के परिवारों की मदद के लिए सरकारी स्कीमें चलाई जाती हैं ताकि उनके परिवार अच्छी जिंदगी बसर कर सकें और देश के जान देने वालों के अपनों के परिवार को चलाने में किसी किस्म की कोई दिक्कत पेश आए लेकिन सैनिकों के परिवारजनों के जीवन से जाने वाले इंसान की कमी कभी नहीं भरी जा सकती. उनका परिवार जीवन भर के लिए इस दुःख को जीने के लिए को अभिशप्त हो जाता है.

यह एक बड़ा सवाल है कि देश भर में अपनी ड्यूटी के दौरान वतन की रक्षा करते हुए शहीद होने वाले इन बहादुरों पर देश को गर्व तो है, पर इन्हें हम कब तक यूँ ही खोते रहेगें? इतने काबिल और होनहार अफसरों को खोना उनके परिवारों के लिए ही नहीं देश के लिए भी बड़ी क्षति है. पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर हुए हमले में शहीद हुए सूबेदार फतेह सिंह ने 1995 की कॉमनवेल्थ शूटिंग स्पर्धा में स्वर्ण और रजत पदक हासिल किये थे. वो एक बेहतरीन शूटर और बहादुर ऑफिसर थे. कॉमनवेल्थ गेम्स में निशानेबाजी में स्वर्ण और रजत पदक सहित 69 मैडल जीतने वाले फतेहसिंह निशानेबाजी का हुनर युवाओं को भी सिखाना चाहते थे. इसके लिए वो पंजाब में खुद का शूटिंग रेंज बनाने की तमन्ना रखते थे. पठानकोट एयरबेस में एनएसजी की टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे निरंजन कुमार भी इसी हमले में शहीद हुए हैं. युवा ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार के परिवार का दुःख समझना किसी के लिए कठिन नहीं क्योंकि वो अपने पीछे पत्नी और दो साल की बेटी छोड़ गए हैं. मासूम बच्ची के सिर से पिता का साया उठ गया, यह पीड़ा हर देशवासी के मर्म भेदने वाली है. एयरबेस के हमले में आतंकियों से जूझते हुए जान देने वाले गुरसेवक सिंह का वैवाहिक जीवन मात्र एक महीने पहले शुरु हुआ था. महज चौबीस साल के गुरसेवक सिंह आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए हैं. कैसी विडंबना है कि बिना ख़ता की सज़ा के सामने हमारा देश और शहीदों के परिवार आतंक के इस दर्द को झेलने के लिए विवश हैं.

बीते कई बरसों से आतंकवाद से निपटना भारत में सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है. हाल ही में अमेरिका के ‘आतंकवाद विरोधी केन्द्र’ के प्रकाशन 'अक्रोनोलॉजी ऑफ़ इंटरनेशनल टेररिज़्म' में बताया गया है कि आज तक जितने आतंकवादी हमले भारत पर हुए हैं उतने हमले दुनिया के किसी भी देश ने नहीं झेले हैं. बीते जीवन के किसी भी पहलू को देखें, आतंकवादी हमले प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप उसे प्रभावित ज़रूर करते हैं. यही कारण है कि आतंकवाद हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के कुछ महीनों पहले गुरदासपुर में भी ऐसा ही आत्मघाती हमला हुआ था. इस बार भी नए साल के दूसरे दिन ही एक बार फिर देश आतंकवाद की आग में झुलस गया. इन हमलों की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि जवानों की शहादत की पीड़ा देने वाले ऐसे आतंकी हमले, देश को सामाजिक और राजनीतिक मोर्चे पर भी अस्थिर करते हैं. देश की अर्थव्यवस्था भी इनसे बुरी तरह प्रभावित होती है. यह बेहद दुखद है कि राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुँचाने के अलावा पारिवारिक और सामाजिक जीवन को भी ऐसी घटनाएँ कई जख्म दे जाती हैं. पिछले दो-ढाई दशकों से ऐसी आतंकी घटनाएँ देश के लिए नासूर बन गयी हैं. जिनमें हजारों सुरक्षाकर्मी और जवान अपना जीवन गँवा चुके हैं. ऐसी घटनाओं में जवानों को खोना ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई संभव ही नहीं है. यह वाकई कष्टकारी और चिंतनीय है कि कुछ लोगों की विकृत मानसिकता कितने ही परिवारों को सदा के लिए पीड़ा और दर्द दे जाती है.                                               

लेखक

डॉ. मोनिका शर्मा डॉ. मोनिका शर्मा @drmonica.sharrma

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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