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Updated: 18 अगस्त, 2016 08:11 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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प्यारी दीपा,

15 साल से ऊपर हो गया है किसी को चिट्ठी लिखे, आज बरसों बाद तुम्हें चिट्ठी लिख रहा हूं. चिट्ठी लिखने का उद्देश्य बस तुम्हारी प्रतिभा को सराहना और तुम्हें भविष्य के खतरों से आगाह कराना है. 

हां तो सुनो, मैं एक ऐसे राज्य का वासी हूं जो जितना अपनी आईटी इंडस्ट्री और सॉफ्टवेयर के लिए जाना जाता है, उतना ही अपने यहां लगने वाले ट्रैफिक जामों और वीकेंड वाले धमाल के लिए. यहं धमाल तब और ख़ास होता है जब वीकेंड साधारण न होकर लॉन्ग वीकेंड होता है. यकीन मानो इस बार जो ये लॉन्ग वीकेंड गुजरा है न, वो मेरे और मुझ जैसे बहुतों के लिए ख़ास था. कारण थीं तुम! तुम वहां रियो में थीं और यहां हम अपने कमरों में लैपटॉप और टीवी स्क्रीन पर चिपके हुए, तुम्हें नई इबारतें लिखते हुए देख रहे थे.

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 हमें तुमपर गर्व है दीपा

शायद इस 14 अगस्त को मैं कभी न भूल पाऊं. ऐसा इसलिए कि हम भारतीय अपने स्वतंत्रता दिवस के नजदीक तो थे मगर बार–बार मन में यही प्रश्न आ रहा था कि अरे दीपा का क्या हुआ? भारत की झोली में मेडल आया कि नहीं? स्कोर क्या हुआ? हां दीपा, हर कोई स्कोर पूछ रहा था. तुम्हारा स्कोर. स्कोर...तुमसे बेहतर कौन समझता होगा ये शब्द.

खैर जब भी मैं “स्कोर” सुनता हूं, ना चाहते हुए भी मुझे आईपीएल और फुटबाल के मैच याद आ जाते हैं. खैर, उस दिन ना तो मुझे मोहन बागान में रूचि थी ना ही रॉयल चैलेंजर बेंगलुरु में, 14 तारीख को मुझे इससे भी फर्क नहीं पड़ रहा था कि बर्सिलोना या मैनचेस्टर यूनाइटेड का क्या हुआ? मैं बस तुम्हें जीतते हुए देख रहा था. मेरे सामने एक ऐसा भारत खड़ा था जिसने संसाधनों की कमी के बावजूद जीत दर्ज करी है. दीपा तुम भले ही चौथे नंबर पर रही हो मगर मेरे लिए जीती सिर्फ तुम हो.

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दीपा शायद तुम्हें ये सुनकर हैरत होगी कि, जो लोग कल तक तुम्हें नहीं जानते थे आज तुम्हारे ऊपर अपनी जान लुटा रहे हैं. जिन्हें कल तक तुमसे कोई मतलब नहीं था आज वो तुम्हें हाथों हाथ ले रहे हैं. मैंने तो यहां तक सुना कि यहां कर्नाटक में उस दिन जिन बच्चियों ने जन्म लिया लोगों ने उनका नाम तुम्हारे नाम पर यानी दीपा रख दिया. 

वाकई हम भारतीय बड़े भोले हैं और जल्द ही आशाओं और उम्मीदों से घिर जाते हैं. पता नहीं ये हमारी कमी है या भोलापन कि हम व्यक्ति को एक ही पल में राजा तो दूसरे ही पल रंक का दर्जा देकर उससे किनाराकशी कर लेते हैं. मुझे गर्व है तुमपर और हमेशा रहेगा जिस तरह तुमने अपनी जान जोखिम में डाल कर वो "प्रोडूनोवा” वाला पैतरा आजमाया था, उसको देखने के बाद मैंने भी अपने दांतों तले अंगुली दबा ली थी. बाप रे, निसंदेह ही तुमने बड़ी मेहनत की होगी इस दाव को सीखने के लिए. मैं तुम्हें और तुम्हारे जज़्बे को सलाम करता हूं. मैं तुम्हारे खेल के विषय में ज्यादा नहीं जानता वरना और लिखता. 

बहरहाल, दीपा निःसंदेह ही तुम एक असाधारण और महान खिलाड़ी हो जिसने अपने प्रदर्शन से सबका दिल जीत लिया है. मगर दीपा, तुम्हारे आने वाला भविष्य को देख व्यक्तिगत रूप से मुझे थोड़ी असुविधा और चिंता हो रही है. दीपा याद है, तुमने अपनी कॉस्ट्यूम उधार ली, अपनी पहली प्रतियोगिता बिन जूतों के खेली. अब रियो से जब तुम वापस भारत आओगी तो निश्चित ही स्पॉन्सर्स तुम्हें घेर लेंगे. हर कोई तुमसे जुड़ना चाहेगा. तुम्हारे कंधे पर अपने प्रोडक्ट का झोला रख उन्हें बेचना चाहेगा, स्पोर्ट मैनेजमेंट कम्पनियां तुम्हें वैसे घेरेंगी जैसे छत्ते को मधुमखी.  दीपा तुम त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य की बहुत सीधी और साधारण सी लड़की हो. फिलहाल मेहरबानी करते हुए विज्ञापन कंपनियों के अलावा इस देश के नेताओं को तुम्हें अकेले छोड़ देना चाहिए ताकि तुम कुछ ऐसा कर सको जो तुम्हें सदैव से करने की इच्छा थी.

यदि हमने तुम जैसी प्यारी बच्ची और आज "प्रोडूनोवा गर्ल" के लक़ब से मशहूर दीपा का बाज़ारीकरण या मोलभाव किया तो यक़ीन जानो एक खूबसूरत कहानी का अंत हो जाएगा. वो भी बेतरतीब अंत...

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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