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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 05 नवम्बर, 2016 10:00 PM
विकास मिश्र
विकास मिश्र
  @vikas.mishra.7393
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टीवी चैनलों पर सास की पिटाई करती बहू की तस्वीरें छाई हुई हैं. जिसने देखा, उसने बहू की बेरहमी को कोसा है. सास-बहू का रिश्ता ऐसा संवेदनशील है कि उसे किधर से देखा जाए, इसका फैसला करना आसान नहीं है. जहां सास-बहू के बीच झगड़े हैं, वहां बहू से सुनिए तो सास चंडी नजर आएगी, सास से सुनिए तो बहू चुड़ैल.

हमारे एक मित्र की एक लड़की से नेट पर चैटिंग हुई, दोस्ती हुई, प्यार हुआ और मित्र ने घर वालों की मर्जी के खिलाफ शादी कर ली. बिहार के ब्राह्मण का कमाऊ पूत फ्री में निकल गया, इसे मेरे मित्र की मां पचा नहीं पाईं. ससुर ने तो बहू कबूल कर ली, लेकिन सास से बहू हजम नहीं हुई. जब वो बहू के पास आतीं तो घर में गजब नाटक होता. अच्छी भली रहतीं, अचानक सिर पर हाथ रखकर धम्म से जमीन पर बैठकर जोर-जोर से रोने लगतीं- 'अरे मोरे माई रे माई, मोरे लड़िका के जिनगी खराब हो गइल हो माई..' बेटा अपनी बीवी से संतुष्ट. ससुर अपनी बहू से संतुष्ट, लेकिन मां जी तो वैसी ही रहीं. बहू ने बहुत कोशिश की कि सास से जुड़ जाएं, लेकिन कोशिश कामयाब नहीं हुई. तुर्रा ये कि संतान हुई तो बेटी. मांजी को उसमें भी बहू की ही कमी नजर आई. अब सास और बहू उत्तर और दक्षिण ध्रुव हैं. बेटा मां की नजरों में जोरू का गुलाम है, शुक्र है बीवी की नजरों में अभी पति ही हैं. वरना ऐसे हालात में मां बेटे को जोरू का गुलाम समझती है, जबकि बीवी सार्वजनिक रूप से घोषित करती है कि मां के आंचल से अभी निकले ही नहीं हैं. बात शुरू हुई थी उस बहू की बेरहमी की, जिसने सास को बहुत पीटा था और मैंने नजीर सुनाई थोड़ी उलटी. दरअसल मैं कहना चाहता हूं कि सास-बहू का रिश्ता अगर बिगड़ा है तो सामने क्या है, इससे अंदाजा मत लगाइए, वजहें तो कहीं जड़ में जाने पर ही नजर आएंगी.

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मेरे पिताजी कहते हैं कि घूंघट में आई दुल्हन घूंघट में रहकर ससुराल में रिश्तों का वजन तौलती है. कोई बहू नहीं तय करेगी कि वो अपनी सास, ससुर, देवर, पति, जेठ के साथ कैसा व्यवहार करेगी. ये सास, ससुर, पति, देवर, जेठ तय करेंगे कि बहू का उनके प्रति व्यवहार कैसा होगा. आप प्यार देंगे, प्यार मिलेगा. इज्जत देंगे, इज्जत मिलेगी. बहुओं से रिश्ते को लेकर मैं अपनी मां का, उसके फॉर्मूलों का फैन हूं. मां ने कभी भी किसी से भी अपनी बहू की शिकायत नहीं सुनी. भरा पूरा परिवार था, नौकर चाकर थे, लेकिन खाना बनाना और कुछ और काम मां मेरी बहनों से करवाती थी, बहुओं के सिर पर चाय बनाने से ज्यादा भार नहीं रहता. बहनें हमेशा कुढ़ती थीं कि हम लोगों से काम करवाती हैं, भौजी लोग तो राज कर रही हैं. मां नो अपना तर्क बहुत बाद में बताया कि हमारी बहू का भविष्य तय है कि वो यहां आ गई है, लेकिन भगवान जाने बेटियों की किस्मत में क्या हो, सारे काम उसे आने चाहिए. सारा गुण-ढंग आने चाहिए. यानी दूसरे की बेटियों का स्वागत और अपनी बेटियों को किसी भी हालात से जूझ जाने की क्षमता देना. मां कहती थी- 'मां की भरपूर डांट बेटी खाई रहेगी तो सास की डांट पर टंसुए नहीं बहाएगी.' 

मेरे एक भाई साहब की शादी हुई, गौना हुआ, भाभी उतरीं, बक्सा उतरा, अंदर सभी महिलाओं में उत्सुकता कि बहू के बक्से में क्या आया है. खासकर उस बक्से में, जिसमें ससुराल के लोगों के कपड़े होते हैं, बहुड़ार का बक्सा. मां ने कपड़े वाला बक्सा भीतर मंगवा लिया. बड़ी भाभी को भीतर बुलाया और कमरा बंद. सारी महिलाएं सोचें कि बक्सा लेकर भीतर क्या कर रही हैं. दरअसल मां को शक था कि भाभी के मायके से शायद मेरे सगे रिश्तेदारों के कपड़े ही आए होंगे. बात सही थी, चचेरी दीदियों, चचेरी बुआ, मौसियों समेत कई महिलाओं के नाम की पर्ची वाली साड़ियां नहीं थीं और न ही भानजे-भानजियों के लिए कपड़े थे. अम्मा ने तुरंत अपना बक्सा खोला, साड़ियां निकालीं, कपड़े निकाले, बड़ी भाभी से फटाफट पर्चियां बनवाईं, श्रृंगार सामग्री और नेग के पैसे के साथ साड़ियां पैकेट में, फिर बक्से में. करीब आधे घंटे की कवायद के बाद मां बाहर निकलीं. अब नई भाभी का बक्सा सबके सामने खुला, कोई नहीं बचा, जिसके लिए कपड़ा बक्से से निकला न हों. कुछ दिन बाद मां की ये कारस्तानी वो भाभी भी जान गईं, नतीजा, प्यार भरे समंदर में एक और मछली प्यार से तैरने लगीं. 

मेरे घर की बहुएं जब अपने मायके या मायके की रिश्तेदारी में जातीं, तो मां या तो बच्चे संभालने के लिए नौकरानी साथ भेजती, वरना बच्चों को अपने साथ रखतीं, सारे बच्चों को अपनी मां से ज्यादा अपनी दादी का साथ पसंद आता था. मां की आखिरी सांस तक ये बात कायम रही. बहुओं को मां का संदेश था- जा रही हो घूमने, घूमो-फिरो, मस्त रहो, कहां बच्चों का नेटा-पोंटा पोंछती रहोगी. 

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 सास प्यार लेकर आगे बढ़ेगी, बहू प्यार से उस प्यार में दोगुने प्यार के साथ गोते लगाएगी

मेरी मां प्यार की सागर थी तो थोड़ी दबंग भी थी, किसकी हिम्मत, जो दाएं-बाएं जाए. लेकिन बुजुर्ग होने लगी, दिल दिमाग पर हावी होने लगा, बहुएं सत्ता में हिस्सेदार बनीं, ऐसे मौके भी आए, जब अपनी बहू के फैसले से मां खुश नहीं थी, लेकिन ऐसे किसी भी मौके पर उसने जुबान नहीं खोली, मन की बात मन में रखकर बहू की बात ऊपर की. बड़ी बहू के खिलाफ छोटी की जुबान पर ताला लगवाया. बड़ी भाभी को सर्वाधिकार, पूरा भरोसा.

मेरी शादी पूरी तरह बिना दहेज की शादी थी, मैंने बस एक घड़ी कबूल की थी, क्योंकि उसे रस्म का हिस्सा कहा गया था. खैर, घर में मेरी पत्नी के रूप में नई बहू आ चुकी थी. एक रोज मां यूं ही बैठी थी, पड़ोस गांव की काकियां आ गईं, मां जुट गई बहू और उसके मायके के बखान में. पड़ाइन काकी ने पूछा- अरे दीदी ई त बताईं कि बियाहे में का का मिलल बाबू के..? मां बोली- 'अरे का कहीं दुलहिन, का नाहीं देहलें... नाहीं-नाहीं करत-करत घर भरि देहलें.' मैं थोड़ी दूर पर बैठा सुन रहा था. मां ने मेरी पत्नी के मायके से आईं दस चीजें ऐसी जोड़ दीं, जिसका कहीं नामोनिशान नहीं था. मां का भाव हमेशा यही था कि बहुओं के घर से जो आया, वो पर्याप्त से ज्यादा था. बेटियों को जो दे पाए, वो बहुत कम था.

ये मेरे मां के हृदय की स्वाभाविक बात थी, लेकिन बतौर पॉलिसी इसका मैं नतीजा देखता हूं. मेरी पत्नी आंसू बहाने की रेस में सबसे पीछे है. गौना हुआ तो बमुश्किल आधे घंटे रोई होगी. मायके से लौटते वक्त मैंने बस थोड़े आंसू ही देखे हैं, ज्यादा रुलाई नहीं, लेकिन जब-जब मैं अपने गांव से पत्नी के निकला, निकलते वक्त बीवी को हमेशा मां के गले लगकर भोंकार छोड़कर रोते देखा, रास्ते में भी काफी दूर तक ये सिलसिला चलता. मेरी पत्नी को छोड़कर शायद मेरी किसी भी भाभी की मां जिंदा नहीं हैं, लेकिन मैंने किसी भाभी को अपनी मां के लिए सुबकते नहीं देखा. अब मेरी भी मां नहीं है, लेकिन जैसे ही चर्चा चलती है, या बिना चर्चा के ही बेटियों से ज्यादा मेरी मां की बहुएं उसे याद करके रोती हैं.

अम्मा-बाबूजी के संस्कारों से पगे रिश्तों की इसी तासीर का असर था कि परिवार में जो भी पल थे, सबने मिलकर जिए, मेरी मां अपनी बहुओं के साथ सिनेमा देखती थी, मैं भी अपनी बहुओं के साथ सिनेमा देखता हूं. सिद्धांतों में कहते हैं- दुल्हन ही दहेज है... बहू भी बेटी है. मैं दोनों सिद्धांतों के साथ हूं. ये तो खूब देखा है कि भरपूर दहेज लेकर घर में धमकी बहू, धन के साथ ही नहीं, धन के गुरूर के साथ भी उतरती है. सास-ससुर को धन तो चाहिए, लेकिन गुरूर से परहेज है. बहू अगर खुलकर कहे तो यही कहेगी- 'सासू माता आपने जो शादी में मांगा था, वो मिल गया, आपके पास रहेगा, आपके इस्तेमाल के लिए है, लेकिन अब बेटा भी आपके पास रहे, आप ही के बस में रहे, ये तो बेइमानी है. आंचल से वो माल बांधिए, जो दहेज में लेकर आई हूं, बदले में बेटे को अपने आंचल से फ्री कर दीजिए' ऐसा वो कह तो नहीं पाती, लेकिन ज्यादा दहेज लेकर आई बहू की सास से ज्यादा बनने की घटनाएं कम ही मिलती हैं. पत्रकार हूं, आंकड़ा भी दे दूं- देश भर में साल 2013 में सास बहू के झगड़े में जो मुकदमे थाने में लिखवाए गए, उनकी तादाद है- 1 लाख, 18 हजार 866.. 2015 में ऐसे मामले हुए 1 लाख, 22 हजार, 877.

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सामान्य नियम है क्रिया की प्रतिक्रिया होगी. सास बहू में पटरी बैठाने में रॉकेट साइंस नहीं, होम साइंस की जरूरत है. बस जरूरत है एक दूसरे को, उनकी जरूरतों को, उनकी आदतों को, उनकी पसंद को, उनकी नापसंद को, उनकी कमजोरियों, उनकी मजबूतियों को समझने की. सास प्यार लेकर आगे बढ़ेगी, बहू प्यार से उस प्यार में दोगुने प्यार के साथ गोते लगाएगी. इस पूरे चिट्ठे से असहमत लोगों के सामने मैं उस बात का भी समर्थन कर रहा हूं कि अपवाद के रूप में बहुत सी ऐसी घटनाएं भी होती हैं, जहां बहू सास को समझने को राजी नहीं होती, सास उसके लिए बाधा होती है. बहुओं और सासों की क्रूरता की कहानियों से इतिहास भरा हुआ है. पहले सास ने बहू को जलाया, ऐसी खबरों से अखबार अटे पड़े रहते थे, अब बहू सास की कुटम्मस कर रही है, ऐसी खबरें टीवी पर दिख रही हैं, ऐसी खबरों में ज्यादा रस मत लीजिए, सबक लीजिए, अभी टीवी पर है, दूसरे के घर का है, ऐसी घटना तो किसी के घर भी हो सकती हैं.

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लेखक

विकास मिश्र विकास मिश्र @vikas.mishra.7393

लेखक टीवी पत्रकार हैं. सियासत, समाज और सिनेमा पर लगातार लिखते रहते हैं.

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