10 year challenge: बीमारियों का बदला हुआ चेहरा ज्यादा खतरनाक है
इंसान ने अपनी लाइफस्टाइल में इतना बदलाव कर दिया है कि 10 साल पहले जो इलाज संभव था वो मेडिकल साइंस की तरक्की के बाद भी अब संभव नहीं है. एक डॉक्टर ने चौंकाने वाली तस्वीर पेश की है.
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इंटरनेट पर इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ #10YearChallenge. सेलेब्स से लेकर आम लोगों तक सभी अपनी 10 साल पहले की फोटोज शेयर कर रहे हैं. पर इस खुशनुमा 10 इयर चैलेंज के पीछे एक भयानक सच्चाई भी छुपी हुई है. सोशल मीडिया पर कई लोगों ने ऐसी तस्वीरें शेयर कीं जो दिखाती हैं कि पिछले 10 सालों में कितना विनाश हुआ है, किस कदर दुनिया भर में लोग परेशान हुए हैं, जानवरों की कितनी बुरी हालत है वगैराह-वगैराह. तो ये सोचना कि 10 इयर चैलेंज पूरी तरह से पॉजिटिव है ये गलत होगा.
जहां सभी पूरे जोर-शोर से इस चैलेंज के पीछे लगे हुए हैं वहीं डॉक्टरों की टोली भी इस चैलेंज का हिस्सा बन गई है और उन्होंने जो नतीजे दिखाए हैं वो डरावने हैं. कई डॉक्टर ये कोशिश कर रहे हैं कि सोशल मीडिया के जरिए वो लोगों का ध्यान बदलती बीमारियों और उसके इलाज पर लगाएं.
वो एक के बाद एक ऐसी तस्वीरें रीट्वीट कर रहे हैं जिसमें मेडिकल साइंस की सच्चाई दिखाई जा रही है. ये स्वरूप 10 साल में कैसे बदला वो दिखा रहे हैं. ऐसी ही एक तस्वीर है एंटीबायोटिक और बैक्टीरिया की भी, इस तस्वीर में एक प्लेट में बैक्टीरिया (2009) पर दवाओं का असर हो रहा है और दूसरी प्लेट के बैक्टीरिया पर (2019) दवाओं का असर होना बंद हो गया है.
दवाओं का असर इंसानी शरीर पर कम हो रहा है.
Daily Mail ने इस किस्से की पड़ताल की और एक एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट एक्सपर्ट ने ये बात स्वीकारी कि ये एक एक्सपेरिमेंट है जिसमें बैक्टीरिया को वैसा ही दिखाने की कोशिश की जा रहा है जैसा वो असल जिंदगी में काम करता है.
दोनों तस्वीरों में अंतर साफ देखा जा सकता है, लेकिन ये डरावना है. 2019 की तस्वीर ये बता रही है कि बैक्टीरिया एंटीबायोटिक पर कोई रिएक्शन नहीं दे रहा है और ऐसा बर्ताव कर रहा है जैसे कि वो इंसानी शरीर का ही हिस्सा हो. इसका एक कारण ये है कि बैक्टीरिया पर हद से ज्यादा एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया गया है और इसके कारण वो ड्रग्स काम करना बंद कर चुका है.
This is genius and incredibly depressing at the same time #10yrchallenge #useantibioticswisely #FOAMed #intensivecare pic.twitter.com/kMtCJdVhhD
— Kate Flavin (@drkateflavs) January 19, 2019
WHO और CDC की रिपोर्ट कुछ चौंकाने वाले नतीजे सामने ला रही है. पूरी दुनिया में ऐसे लोग मौजूद हैं जो एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट हैं. अकेले अमेरिका में ही हर साल 2 मिलियन लोग इस तरह की समस्या से जूझते हैं और करीब 23000 की मौत हो जाती है. जहां तक भारत का सवाल है तो CDC की रिपोर्ट के अनुसार हर साल 58000 बच्चों की मौत सिर्फ इसलिए हो जाती है क्योंकि उनकी मां के जरिए उनमें एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट पावर आ गई है और इसलिए किसी भी बैक्टीरियल इन्फेक्शन के लिए दी गई दवाई काम नहीं करती.
ये दवाओं की या विज्ञान की समस्या नहीं है. न ही ऐसी बात है कि दवाओं के लिए ठीक एक्सपेरिमेंट नहीं हो रहे बल्कि ये समस्या तो हमारी अपनी बनाई हुई है. 10 सालों में लोग ये दिखा रहे हैं कि वो कितने बदल गए, उन्होंने फिटनेस पर कितना ध्यान दिया, उन्होंने कैसे अपनी लाइफस्टाइल बदल ली, लेकिन कोई ये नहीं कह रहा कि देखिए हमने क्या कर दिया है अपने जीवन के साथ.
लगातार बदलती लाइफस्टाइल ने दवाइयों पर हमारी डिपेंडेंसी बढ़ा दी है. जितना ज्यादा बैक्टीरिया एंटी-बायोटिक्स के संपर्क में आएगा उतने ही आसार बनेंगे कि बैक्टीरिया एंटीबायोटिक से इम्यून हो जाए. दवाइयां बनाने वाली कंपनियां डॉक्टरों को अपनी दवाइयां देती हैं, डॉक्टर वो दवाइयां मरीज को इस्तेमाल करने को देते हैं. भागो-दौड़ो लेकिन काम रुकने न पाए वाली स्थिती हो गई है. मरीज को अगर डॉक्टर तीन दिन आराम करने की सलाह देता है तो मरीज खुद कहता है कि कोई दवा दीजिए जिससे जल्दी ठीक हो जाऊं. ज्यादा छुट्टी नहीं मिलेगी.
ऐसे में एक एंटीबायोटिक ट्रेंड चल निकला है जो कहता है कि मरीजों को ज्यादा दवाएं दो ताकि शरीर जल्दी ठीक हो सके. पर इसका असर क्या हो रहा है ये देखा जा सकता है. ये हाल सिर्फ इंसानों का नहीं बल्कि मवेशियों का भी हो गया है. खेती-किसानी में भी एंटीबायोटिक और केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है जिससे समस्या और बड़ा रूप ले रही है. 2007 से लेकर अभी तक इतने सालों में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट दोगुनी हो गई है. शायद ये वो 10 Year Challenge है जिसमें हम हाल रहे हैं.
आलम ये है कि हमें जल्दी से जल्दी नई एंटीबायोटिक्स बनानी होंगी क्योंकि जो पुरानी हैं वो अब इस हालत में नहीं बची हैं कि ज्यादा दिन वो काम कर पाएं.
ANTIBIOTIC RESISTANCE क्यों है इतनी खतरनाक?
सालों से एंटीबायोटिक्स हमारे सिस्टम में डाली जा रही हैं. कई बार तो मरीज बिना डॉक्टरी सलाह के ही एंटीबायोटिक ले लेते हैं. ऐसे में वो बैक्टीरिया जो 10 साल पहले शरीर को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकता था अब बदलकर एक सुपरबग बन गया है.
WHO के ड्रगरेजिस्टेंट डिपार्टमेंट द्वारा जारी की गई तस्वीर
WHO पहले ही इस बात की चेतावनी जारी कर चुका है कि अगर कुछ नहीं किया तो दुनिया 'post-antibiotic' युग में आ जाएगी जहां बीमारियों के इलाज के लिए निश्चित दवाएं काम नहीं करेंगी. आम इन्फेक्शन भी जानलेवा बन सकते हैं. अगर लोग बिना बात के ही एंटी बायोटिक खाते रहेंगे तो उनमें एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस डेवलप हो जाएगी और ये खतरनाक स्थिती है.
आंकड़ों की माने तो 2050 तक सुपरबग कम से कम 10 मिलियन लोगों को हर साल खत्म करेगा. ये आंकड़ा अभी 7 लाख प्रति साल ही है. अगर जल्दी ही इस समस्या का हल नहीं निकाला गया तो दवाइयों की दुनिया पुराने जमाने जैसी हो जाएगी जहां इंसान के पास इलाज का कोई विकल्प नहीं होगा. पिछले 30 सालों में सिर्फ 1 या 2 नई एंटीबायोटिक बनाई गई हैं और अगर इतनी ही धीमी गति से काम चलता रहा तो आने वाले समय में समस्या बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी.
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