अपने टॉपर्स का इंटरव्यू क्यों लेना चाहता है बिहार बोर्ड?
जो पूरे देश में कहीं नहीं होता वो अब बिहार में होगा. सीधा-सीधा मतलब ये कि बिहार सरकार चाहती है कि इससे पहले मीडिया और पत्रकार टॉपर्स से मिलें, बोर्ड छात्रों से मिलकर तसल्ली कर ले. बात सही भी है. नाक बचाना ज्यादा जरूरी है.
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लीजिए साहब! बिहार बोर्ड और बिहार सरकार ने एक और कारनामा कर दिया है. एक और कारनामा से हमारा मतलब है कि परीक्षा के दौरान चोरी करने-कराने की 'वो' कालजयी तस्वीर जिसकी ख्याति सात समुद्र पार तक पहुंची, उसकी उपलब्धि तो बिहार बोर्ड के नाम ही है न. और फिर अब पॉलिटिकल साइंस को प्रोडिकल साइंस कहकर खाना बनाने का विषय बताने वाली एक लड़की को टॉपर का तमगा. ये भी तो बिहार बोर्ड ने ही दिया. उनसे ये सारे क्रेडिट कैसे छीने जा सकता है. खैर, नया कारनाम ये कि 2017 यानी अगले सत्र से मेरिट लिस्ट निकालने से पहले बिहार बोर्ड टॉपर्स का अलग से इंटरव्यू लेगी.
है न कमाल का और सबसे इनोवेटिव आइडिया. जो पूरे देश में कहीं नहीं होता वो अब बिहार में होगा. सीधा-सीधा मतलब ये कि बिहार सरकार चाहती है कि इससे पहले मीडिया और पत्रकार टॉपर्स से मिलें, बोर्ड छात्रों से मिलकर तसल्ली कर ले. बात सही भी है. लेकिन, सवाल भी यहीं उठता है. क्या बोर्ड सिर्फ अपनी नाक बचाना चाहता है या बोर्ड और स्कूलों के बीच भ्रष्ट गठजोड़ को तोड़ना चाहता है? जिसके जरिए नकल उद्योग काम करता है. मतलब अपनी ही व्यवस्था, शासन पद्धति और सिस्टम में सरकार का अब कोई भरोसा नहीं है. वो इसे दुरूस्त नहीं करने वाले. जरूरी है तो बस टॉपर्स का इंटरव्यू. बस, टॉपर्स का. जो नकल करके साधारण रूप से पास हो जाएं, उनमें कोई दिलचस्पी नहीं.
परीक्षा में किसी और की कॉपी कोई और लिखे तो लिखे, कॉपी घर ले जाकर लिखे, पैसे देकर लिखे या गाइड खोलकर. सरकार को कोई समस्या नहीं है. बस, टॉपर्स के लिए खास गाइडलाइंस हैं. जो टॉपर्स बनने का जोखिम उठाना चाहता हो, वो इंटरव्यू की तैयारी जरूर कर ले. मार्केट में डिमांड होगी तो अपने आप पटना के बोरिंग रोड में मौजूद तमाम कोचिंग संस्थानों में 'टॉपर्स इंटरव्यू क्रैश कोर्स' भी शुरू हो ही जाएगी. कोचिंग संस्थानें उसकी भी तैयारी करवाएंगी.
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वैसे, इन झमेलों से तो बेहतर है कि परीक्षा देने वाले, टॉपर बनने के झमेला को ही गुडबाय कह दें. ये सलाह उनके लिए भी है जो वाकई मेधावी हैं और दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं. क्योंकि सवालों में घिरने से बेहतर है कि चुपचाप बच निकलो. वैसे भी, टीचर ज्यादा पूछताछ तो आगे की बेंच पर बैठने वालों या सबसे पीछे बैठे छात्रों से ही करते हैं. बेहतर है कि बीच में कहीं जगह बना ली जाए. फर्स्ट डिविजन का सपना भी पूरा हो जाएगा और ज्यादा पूछताछ भी नहीं होगी. वैसे इसके लिए भी विशेष ट्रेनिंग की जरूरत होगी कि टॉपर होने का हुनर होने के बावजूद कैसे औसत दर्जे का बन जाया जाए. कोचिंग वाले इस कोर्स पर भी गौर फरमा सकते हैं. आइडिया नया है...
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