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Updated: 13 जून, 2016 06:58 PM
सुनीता मिश्रा
सुनीता मिश्रा
  @sunita.mishra.9480
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जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने खीर भवानी मेले के मौके पर एक बार फिर विस्थापित कश्मीरी पंडितों की सकुशल घर वापसी करवाने की गारंटी दी है. उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है, इनकी सुरक्षित वापसी और पुनर्वास के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है और हरसंभव कोशिश कर रही है.

महबूबा ने कश्मीरी पंडितों से कहा कि उन्हें हम पर भरोसा करना चाहिए और दुआ करनी चाहिए. हम यहां शांति बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि लोग अपने पैतृक स्थानों पर लौटें, उससे पहले उनके बीच विश्वास भरने की जरूरत है. वहीं कश्मीरी पंडितों ने महबूबा के मंदिर में पहुंचने पर आक्रोश व्यक्त करते हुए अनंतनाग में अपने काफिले पर हुए पथराव को लेकर मुख्यमंत्री के सामने 'भारत माता की जय' के नारे लगाए और विरोध प्रदर्शन किया.

कश्मीरी पंडितों का कहना था कि एक सोची समझी साजिश के तहत हमारे वाहनों को निशाना बनाया गया. सरकार की तरफ से क्षीर भवानी यात्रा के वाहनों की सुरक्षा के लिए प्रबंध नहीं किए गए थे. अगर सुरक्षा के पूरे प्रबंध किए गए होते तो शरारती तत्व उनके वाहनों को निशाना नहीं बना पाते.

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 महबूबा मिटा पाएंगी कश्मीर का 26 साल पुराना 'दाग'?

घाटी में लगने वाले खीर भवानी मेले का इतिहास बहुत ही पुराना है. यह कश्मीरी पंडितों का सबसे खास त्यौहार है. कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन के बाद यह मेला विस्थापित पंडितों को एक-दूसरे से मिलने का मौका देता है. यही कारण है कि अब इस सालाना मेले को मिलन का मेला भी कहा जाता है. आतंकवाद बढ़ने के बाद कश्मीर से पलायन कर चुके कश्मीरी पंडित इस खास दिन यानी ज्येष्ठ अष्टमी के अवसर पर मंदिर में देश के कोने-कोने से हाजिरी देने पहुंचते हैं. हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के प्रतीक इस मेले में घाटी की हिंदू आबादी के साथ ही स्थानीय मुसलमान भी बढ़-चढ़ कर शामिल होते हैं.

इन सबके बावजूद कश्मीरों पंडितों को आए दिन राजनीति का शिकार होना पड़ता है. इतिहास गवाह है कि उन पर अपने पैतृक स्थानों पर रहने के लिए कितने जुल्म ढहाए गए और यह सिलसिला अभी तक जारी है. सरकारें लंबे अरसे से कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा, रहने के लिए घर, रोजगार, उनके बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष प्रबंध और उनकी आर्थिक मदद की प्रतिबद्धता जताती चली आ रही हैं. लेकिन इसके लिए अभी तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है.

कश्मीर में होने वाले रक्तपात व अन्य परिस्थितिजन्य कारणों के कारण कश्मीरी पंडित लंबे समय से संकटमय हालातों का सामना करते चले आ रहे हैं. इसके साथ ही स्थिति में कोई भी सुधार न होते देख वह कश्मीर छोड़कर देश के अन्य हिस्सों में पलायन के लिए विवश हो रहे हैं. यह सच है कि कश्मीरी पंडित बिना किसी गलती के यह सब कर रहे हैं.

यह दर्द उनके लिए कोई नया नहीं है. वर्षों से कश्मीरी पंडितों पर सितम किए जा रहे हैं. उन्हें आज तक न तो हिन्दुस्तान नसीब हुआ और न पाकिस्तान. इतिहास साक्षी है कि 1990 में आतंकवाद की वजह से उन्हें घाटी छोड़नी पड़ी थी या उन्हें जबरन निकाल दिया गया था? कश्मीरी पंडितों पर कश्मीर में बड़े पैमाने पर अत्याचार किया गया, जो आज भी अलगाववादी नेताओं ने बदस्तूर जारी रखा हुआ है.

हत्या, बलात्कार, जबरन इस्लाम कबूल करने के लिए तरह-तरह की यातनाएं देने जैसी गंभीर वारदातें बार-बार सामने आईं. लेकिन कई वर्षों तक चले इस दौर में उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में न तो केंद्र ने और न ही राज्य सरकारों ने कभी कोई रूचि दिखाई. इस कारण मौजूदा समय में भी कश्मीरी पंडितों को जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में बदहाल अवस्था में रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. वह अपने अस्तित्व की खोज में दर-दर की ठोकरें खाने को लाचार हैं.

यह सर्वविदित है कि कश्मीरी पंडित हमेशा से आतंकियों के निशाने पर रहे हैं, जिससे उन्हें अपनी पवित्र भूमि से बेदखल होना पड़ा और उनके पास अपने ही देश में शरणार्थियों जैसा जीवन बिताने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा. घाटी में उनकी वापसी के लिए विभिन्न केंद्रीय व राज्य सरकारों द्वारा लगातार प्रयास करने के दावे और कई पैकेजों की घोषणा भी की जाती रही हैं, लेकिन इसके सार्थक नतीजे कभी भी धरातल पर देखने को नहीं मिले हैं.

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 विस्थापित पंडितों को एक-दूसरे से मिलने का मौका देता है ये मेला

इन प्रयासों के असफल होने का एक कारण राजनेताओं की संवेदनहीनता व दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव भी है. चुनावों के दौरान इनकी वापसी वोट बैंक का सबसे सशक्त माध्यम बनती है, जो जीतने के बाद कहीं खो जाती है.

जम्मू कश्मीर के राजनीतिक समीकरण भी कश्मीरी पंडितों की वापसी व उनकी समस्याओं के निराकरण के मार्ग में बड़ी बाधा बनते रहे हैं. कई बार तो कश्मीर पंडितों की वापसी को लेकर बॉलीवुड भी बंटा हुआ नजर आया. कुछ दिन पहले भी अभिनेता अनुपम खेर हमेशा की तरह ही विस्थापन का दंश झेलने कश्मीर पंडितों के साथ दिखे और वहीं दूसरी ओर प्रतिभाशाली कलाकार नसरुद्दीन शाह उन पर इस मामले में पलटवार करते हुए दिखे.

सच तो यह है कि घाटी में कश्मीरी पंडितों को बसाने लायक माहौल अब तक बन ही नहीं पाया है. आए दिन उन पर हमले होना, उनके वाहनों पर पथराव करना आम बात हो गई है. इसके साथ ही पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए घोषित पैकेज भी नौकरशाही की भेंट चढ़ गया. केन्द्र और महबूबा सरकार द्वारा विस्थापित कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में फिर वापसी व उनके पुनर्वास व कल्याण की दिशा में जो कवायद की जा रही है उसे स्वागत योग्य तो माना जा सकता है, लेकिन इन प्रयासों की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों के ठोस परिणाम सामने आएंगे.

लेखक

सुनीता मिश्रा सुनीता मिश्रा @sunita.mishra.9480

लेखिका पेशे से पत्रकार हैं

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