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Updated: 17 मार्च, 2017 06:47 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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महाराष्ट्र के लातूर में एक गांव है आनंदवाड़ी. जो सामाजिक बदलाव की राह में सबसे अव्वल है. 635 लोगों की आबादी वाला ये गांव हर मायने में एक आदर्श गांव है और शायद महिला सशक्तिकरण का एक बेजोड़ उदाहरण भी.

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ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इस गांव को सबसे अलग बनाती हैं, जैसे-

- ये गांव अपराध मुक्त है. 15 सालों से यहां एक भी पुलिस केस नहीं दर्ज हुआ है. 

- स्वास्थ्य के लिए ये इतने सजग हैं कि यहां धूम्रपान, शराब और तम्बाकू पर प्रतिबंध है.

- यहां की वयस्क आबादी ने मेडिकल रिसर्च के लिए अपने अंग दान का प्रण भी लिया है.

- गांव में किसी की भी बेटी की शादी हो, सभी गांववाले शादी के खर्च में बराबर हिस्सेदार होते हैं. यही नहीं पिछले साल से यहां सामूहिक विवाह का आयोजन भी किया जाने लगा है.

- और सबसे अहम ये कि यहां के सभी 165 घरों पर महिलाओं के नाम हैं.

- न सिर्फ नाम बल्कि घरों और खेतों का मालिकाना हक भी अब महिलाओं के नाम कर दिया गया है.

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शायद ही कभी आपने शहरों में घर के बाहर महिलाओं के नाम की नेमप्लेट देखी हों, लेकिन यहां सभी घरों के बाहर महिलाओं के नाम और उनके मोबाइल नंबर तख्तियों पर लिखे हुए हैं. वो बात और है कि 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' से प्रेरित होकर आज कई जगह में लड़कियों की नेमप्लेट घर के बाहर देखने मिलती है. लेकिन घर का मालिक एक महिला का होना अपने आप में मायने रखता है. जरा सोचिए, जहां जमीन और मकानों पर हक के चलते लड़ाई झगड़े, कत्ल तक होते हों, वहां ये गांव कितना सुंदर उदारण पेश करता है.

ऐसा नहीं कि फिल्में देखकर या फिर किसी से प्रेरणा लेकर ये सब काम किया गया हो, बल्कि गांव के लोगों ने अपनी समझदारी से ग्राम सभा में ये निर्णय लिया. इस गांव के लोगों की मानसिकता का अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि वो नहीं चाहते कि महिलाएं किसी पर भी निर्भर रहें.

ग्रामसभा के एक सदस्य नयनोबा चामे का कहना है कि 'हम हर दीपावली पर माता लक्ष्मी को अपने घर लाते हैं, उसी तरह हमने अपने घर की लक्ष्मी को भी सम्मान देने का निर्णय लिया. महिलाओं को किसी पर निर्भर होने की जरूरत क्यों हो. जब वो घर चलाती हैं तो वो घर की मालकिन क्यों नहीं हो सकतीं. और ऐसा करके उन्हें लोगों की पितृसत्तात्मक मानसिकता से झुटकारा भी मिलेगा'.

महिला सशक्तिकरण की दिशा में इससे अच्छा उदाहरण और क्या होगा, और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि महिलाओं को इस दिशा में ले जाने वाले खुद पुरुष ही हैं, बस उनकी मानसिकता संकीर्ण नहीं है, बल्कि वो समय के साथ चलने वाले हैं. काश हम शहरवाले भी इनसे कुछ सीख पाते..

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पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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