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Updated: 14 फरवरी, 2019 11:32 AM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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अक्सर जब कोई व्यक्ति किसी दूसरी जाति या धर्म में परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी कर लेता है तो उसे समाज से बेदखल कर दिया जाता है. लेकिन केरल के पलक्कड़ जिले में एक परिवार का सामाजिक बहिष्कार जिस कारण से किया गया है वो शर्मनाक है. किसी के घर शादी होती है, खुशियां मनाई जाती हैं, लेकिन यहां तो खुशियां मनाने पर ही ऐतराज है.

फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिए दानिश रियाज नाम के शख्स ने अपने परिवार पर होने वाली ज्यादती के बारे में बताया. दानिश बताते हैं कि- 28 दिसंबार 2018 को उनके भाई की शादी का रिसेप्शन एक ऑडिटोरियम में रखा गया था. कुछ ही दिनों बाज मस्जिद कमेटी ने 4 वजह देते हुए उनके पूरे परिवार को समाज से बाहर कर दिया. ये वजह थीं-

1. फंक्शन में महिलाएं और लड़कियां मंच पर फोटो खिंचवा रही थीं.

2. संगीत का कार्यक्रम रखा गया जिसमें ऑर्केस्ट्रा बजाया जा रहा था.

3. परिवार के बच्चे स्टेज पर नाच रहे थे.

4. महिलाएं माइक पर बोलकर नए जोड़े को दुआएं दे रही थीं.

ये बातें वो हैं जो हमें हर शादी में देखने को मिलती ही हैं. शादियों में फोटोग्राफी भी होती है, नाच गाना भी होता है, महिलाएं और बच्चे क्या हर कोई इन्जॉय करता है. ये सब खुशियां मनाने और शादी जैसे खुशनुमा मौके को सिलिब्रेट करने के तरीके हैं, जो हर परिवार अपनी-अपनी हैसियत के हिसाब से करता है. लेकिन यहां ये सब करना एक परिवार के लिए आफत साबित हुआ. क्योंकि ये एक मुस्लिम परिवार था और बताई हुई ये सभी बातें इस्लाम के हिसाब से हराम होती हैं. इसीलिए परिवार ने ये कार्यक्रम घर से 13 किलोमीटर दूर दूसरे शहर में रखा था, जो मस्जिद से भी काफी दूर था. लेकिन फिर भी उन्हें इसकी सजा दी गई.

muslim wedding rulesशादी की खुशियां मनाना क्यों लोगों को रास नहीं आता?

शादी के एक सप्ताह बाद शुक्रवार को जब मस्जिद गए तब वहां माइक पर सार्वजिनक रूप से परिवार की बेइज्जती की गई और शादी को 'अश्लील' कहा गया. दुल्हें को बुलाकर ये बताया गया कि मस्जिद कमेटी ने उनका बायकॉट कर दिया है. परिवार के लोगों ने कमेटी के पास जाकर इसके लिए माफी भी मांगी. लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई. दानिश का कहना है कि उनका परिवार धार्मिक है, सभी रीति-रिवाजों को मानता है और हमेशा मस्जिद कमेटी के सारे फैसले भी मानता आया है. लेकिन कमेटी अपना फैसला बदलने को राजी नहीं है. उनका कहना है कि कमेटी के सदस्य अब भविष्य में इस परिवार से किसी भी रूप में साथ नहीं देंगे.

दानिश का कहना है कि कमेटी जिस मामले पर मुख्य रूप से बहस कर रही थी वो था रिसेप्शन में संगीत कार्यक्रम कराया जाना और उनमें महिलाओं का हिस्सा लेना. क्योंकि ये बातें शरिया के खिलाफ हैं.

दानिश का कहना है कि वो न्याय के लिए लड़ते रहेंगे. इस लोकतांत्रिक देश में कोई भी धार्मिक संस्था किसी परिवार पर इस तरह का प्रतिबंध नहीं लगा सकती. कार्यक्रम दानिश ने आयोजित किया था इसलिए दानिश चाहते हैं कि कमेटी उन्हें सजा दे, इसके लिए वो जिम्मेदार हैं तो पूरे परिवार को सजा नहीं मिलनी चाहिए. दानिश ने अब इस मामले में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, मानवाधिकार आयोग और स्थानीय एमएलए से गुहार लगाई है. 

muslim family weddingये तस्वीर दानिश के भाई के रिसेप्शन की है. तस्वीर में पहले दानिश खड़े हैं फिर उनके भाई और भाभी और दानिश की पत्नी

जिस बात पर कमेटी को सबसे ज्यादा ऐतराज था वो था शादी में संगीत का होना. लेकिन क्या कोई ऐसी शादी देखी है जहां शहनाई की गूंज न सुनी हो. नाच-गाना तो शादी-ब्याह का प्रमुख हिस्सा रहा है. हर धर्म में खशी के मौकों पर संगीत होता ही है. लेकिन इस्लाम में कुछ लोगों का मानना है कि केवल गायन ही हलाल है और वाद्य यंत्र हराम. जबकि कुछ लोगों का मानना है कि केवल धार्मिक संगीत ही हलाल है और हलाल संगीत के साथ बजाया जाने वाला कोई भी वाद्या यंत्र वैध है. अब इसी बात पर ही लोग एकमत नहीं हैं, फिर भी इसे लोगों पर थोपा जा रहा है. जबकि संगीत तो भावों की अभिव्यक्ति का एक बेहद सुरीला माध्यम है जो कानों को केवल सुख ही पहुंचाता है. लेकिन इसलाम को कट्टरता की हद तक मानने वालों के कानों में संगीत भी चुभता है.

और सिर्फ संगीत ही क्यों, महिलाएं भी. इस्लाम तो महिलाओं को पर्दे में रहने के लिए कहता है, चुप रहने के लिए कहता है, कहता है कि अगर महिलाएं घर पर अपने पति या परिवार के किसी भी सदस्य से बात करें तो आवाज बेहद धीमी हो या फिर आवाज दबाकर बात करे. महिलाओं का बोलना तक जिस समाज को बर्दाश्त नहीं वो भला कैसे किसी महिला को माइक पर बोलते बर्दाश्त कर लेगा. ठीक उसी तरह जहां महिलाओं को सर से लेकर पांव तक बुर्के में रखा जाता हो. ये बताया जाता हो कि ये बुर्का ही उनकी तहजीब है, उनका सम्मान है, उनकी पहचान है तो मंच पर पोज देकर तस्वीरें खिंचवाती महिलाएं उन्हें कैसे बर्दाश्त होंगी.

इन्हें तो बच्चों का बचपन भी बर्दाश्त नहीं हुआ जो दुनियादारी से अनजान मस्ती में नाच रहे थे.

इस मामले को देखकर हैरत होती है कि क्या सच में हम 2019 में जी रहे हैं. जबकि देश के कई हिस्सों में लोग सिर्फ कैलेंडर बदल रहे हैं वक्त सदियों से रुका ही हुआ है. वो इसी बात पर अटके हैं कि शादी में गाने क्यों बजे, महिलाओं ने फोटो क्यों खिंचवाए, बच्चे नाचे क्यों? अरे, इस बात के लिए दानिश ने माफी मांगी. पर क्या ये सब इतना बड़ा गुनाह था कि इसके लिए माफी मांगी जाए. ये एक परिवार का निजी कार्यक्रम था जिसकी खुशियां वो अपने हिसाब से मना रहे थे. धर्म के नाम पर लोगों की खुशियों के आड़े आने का हक किसी को भी नहीं हैं. अगर धर्म पर यकीन है तो ये खुशियां नाजायज़ कैसे हो सकती हैं. इस मामले में आप किसके साथ हैं...इस परिवार के या फिर धर्म के?

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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