पद्मावती का वास्तविक या काल्पनिक होना मुद्दा ही नहीं है
संजय लीला भंसाली पर हुए हमले के बाद से ही इतिहासकारों से लेकर बॉलीवुड तक सभी रानी पद्मिनी के किरदार को लेकर अपनी समझ बता रहे हैं, लेकिन क्या वाकई ये अहम सवाल है?
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पहले राजपूत करणी सेना ने संजय लीला भंसाली से हाथापाई की, शूटिंग बाधित की और सेट को नुकसान पहुंचाया. फिर विश्व हिन्दू परिषद ने गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी. और अब हिन्दू सेना ने फिल्म इंडस्ट्री को मौत की धमकी दे दी है.
मुद्दा है संजय लीला भंसाली की आने वाली फिल्म पद्मावती का जिसपर ये आरोप लग रहा है कि इसमें 13वीं शताब्दी की चित्तौड़गढ़ की वीरांगना रानी पद्मिनी (या पद्मावती) का गलत चरित्र-चित्रण किया जा रहा है. मलिक मुहम्मद जायसी की 16वीं की रचना पद्मावत के मुताबिक़ पद्मिनी ने अपने सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए चित्तौड़ की महिलाओं के साथ आग में कूदकर जौहर कर लिया था जब ये स्पष्ट हो गया था अब अल्लाउद्दीन खिलजी की सेनाओं के हाथ चित्तौड़ की हार निश्चित है. कहा जाता है कि खिलजी ने चित्तौड़ पर चढ़ाई ही पद्मिनी को पाने के लिए की थी.
जो भंसाली के साथ हुआ वो गलत था. कोई भी तार्किक व्यक्ति उसका समर्थन नहीं कर सकता. और भंसाली ने भी स्पष्ट कर दिया है उनकी फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं होगा जिससे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचे, वरन लोग पद्मिनी का चरित्र-चित्रण उनकी फिल्म में देखकर गौरव महसूस करेंगे. लगभग पूरी फिल्म इंडस्ट्री और कई सारे बुद्धिजीवी लोगों ने भंसाली पर हुए हमले की निंदा की है और प्रशासन से कड़ा कदम उठाने का अनुरोध किया है.
इसी कदम में कई लोगों ने और इतिहासकारों ने ये भी कहा है कि रानी पद्मावती का इतिहास में कोई अस्तित्व ही नहीं है और भंसाली या उनकी फिल्म पर इसको लेकर हमले का कोई कारण नहीं है. इतिहासकार इरफ़ान हबीब और दूसरे सब्जेक्ट-एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ रानी पद्मावती को जायसी ने अपनी कविता पद्मावत के लिए गढ़ा था.
लेकिन यहाँ वो मुद्दा ही नहीं है....
हमारे लोक-साहित्य से जुड़े किसी भी किरदार की एक खास भूमिका रहती है. अगर कोई किंवदंती सदियों से चली आ रही है तो उससे जुड़ा चरित्र लोकाचार का हिस्सा बन जाता है. बच्चे ऐसे चरित्रों की कहानियां सुनते सुनते बड़े होते हैं और वो चरित्र, वास्तविक या काल्पनिक, कब हमारी भावनाओं से जुड़ जाते हैं पता ही नहीं चलता. जब ऐसे चरित्रों पर सवाल उठाये जाते हैं तो लोग भावनाओं में बहकर रियेक्ट करते हैं ना कि तर्कों के अनुसार.
और करणी सेना हो या विश्व हिन्दू परिषद् या हिन्दू सेना या इसी तरह का कोई और संगठन, ये लोगों की इन्हीं भावनाओं का दोहन करती हैं ताकि उनके अस्तित्व को, उनकी राजनीति को, सहारा मिल सके. पद्मावती हो या भंसाली की पिछली फिल्म बाजीराव-मस्तानी या ऐसी कोई और फिल्म जिसपर इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने और ऐतिहासिक चरित्रों को विद्रूपित करने का आरोप लगे, वो अपनी दुकान चलाने वालों के लिए एक मौका होता है मौका भुनाने का क्योंकि उन्हें पता है कि लोग रियेक्ट करेंगे ही, फिर चाहे उस विवाद के पीछे कोई तार्किक वजह हो या न हो.
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