सॉरी, लेकिन हैदराबाद की दिशा को न्याय नहीं मिला!
Hyderabad Police ने encounter करके आगे कई सवालों से खुद को बचा लिया है. लेकिन बलात्कार के आरोपियों का एनकाउंटर करके अगर हर कोई खुश है तो क्या ये new normal है? पुलिस पर encounter करने के लिए फूल बरसाए जा रहे हैं तो फिर न्यायपालिका न्यायपालिका क्या करेगी?
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हैदराबाद की महिला डॉक्टर दिशा के साथ जो हैवानियत दिखाई गई वो अकल्पनीय थी, लेकिन उस केस के आरोपियों के साथ जो कुछ हुआ वो भी उम्मीद से बाहर हो गया. हैदराबाद की वेटनरी डॉक्टर दिशा के चारों आरोपियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया. 28 नवंबर की सुबह ने जितने जख्म लोगों को दिए थे, 6 दिसंबर की सुबह ने उन जख्मों पर महरम का काम किया.
चारों आरोपी शिवा, नवीन, केशवुलू और मोहम्मद आरिफ पुलिस रिमांड पर थे. बताया जा रहा है कि पुलिस जांच के लिए इन चारों को उसी फ्लाइओवर के नीचे लेकर गई थी, जहां उन्होंने दिशा को जलाकर मार दिया था. पुलिस वहां क्राइम सीन रीक्रिएट कर रही थी जहां से इन चारों आरोपियों ने भागने की कोशिश की. और इसलिए पुलिस ने गोलियां चलाईं और वो मारे गए. यानी रेप पीड़िता को उसी जगह न्याय मिल गया.
और ऐसा करने के बाद हैदराबाद पुलिस ने अपनी वर्दी पर लगे दागों को धो ड़ाला. दाग यानी अब तक हैदराबाद पुलिस को महिला सुरक्षा के प्रति लापरवाह रवैया रखने के चलते जिस तरह घेरा जा रहा था, सोशल मीडिया पर पुलिस की थू-थू हो रही थी, अब एनकाउंटर करके वही पुलिस लोगों के लिए 'सिंघम' बन गई है. अपनी दरियादिली के लिए तारीफें पा रही है. पुलिस के लिए 'जिंदाबाद' के नारे लगाए जा रहे है और पुलिस हीरो बन गई. महिलाएं पुलिस को राखियां बांध रही हैं. लोग मिठाइयां बांट रहे हैं, दिशा की लाश जहां जली हुई पाई गई थी वहां लोग फूल बरसा रहे हैं. क्योंकि 10 दिन में मामला खत्म.
घटना स्थल पर फूलों की बारिश की गई
पूरा भारत यही तो चाहता था कि दिशा के अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले. और वही हुआ भी. आरोपियों की लिंचिंग तो नहीं की गई लेकिन एनकाउंटर जरूर हो गया. इस मामले पर सब बहुत खुश हैं खासकर महिलाएं. यहां तक कि निर्भया की मां भी पुलिस को शाबाशी दे रही हैं कि उन्होंने आरोपियों को खत्म कर दिया. लेकिन महिलाओं को समझना चाहिए कि इतने पर भी क्या उन्हें खुश होने की जरूरत है?
महिलाओं को क्यों समझना चाहिए कि ये अंतिम न्याय नहीं है
हैदराबाद के लड़कों का मन किया उन्होंने गैंगरेप कर दिया, उनका मन किया तो पीड़िता को जला भी दिया. अब Hyderabad policeका मन किया तो उन्होंने पहले मामले को गंभीरत से नहीं लिया और जब उनका मन किया तो इतनी गंभीरता से लिया कि आरोपियों को मार दिया. यानी पूरा खेल पुरुषों ने खेला. ये पुरुषों का ही फैसला था कि ये गलत है, इसलिए इसे खत्म कर दो. इस पूरे मामले में महिलाओं का क्या रोल रहा? महिलाओं का बदला कहां है. न्याय कहां हैं?
रेप के किसी भी मामले में कोई डिग्री काम नहीं करती, कि कौन सा मामला ज्यादा घिनौना था, रेप कैसा भी हो रेप ही होता है. हैदराबाद में जो हुआ वो भी भयानक था, निर्भया के साथ जो हुआ वो भी भयानक था. उन्नाव में जिस लड़की को जला दिया गया वो भी भयानक है. लेकिन क्या इसी तरह के न्याय की उम्मीद अब सभी रेप पीड़िताओं के लिए की जाएगी. अगर नहीं, तो फिर समझिए कि महिलाओं के हिस्से में कुछ नहीं आया. क्योंकि हैदराबाद में जो कुछ हुआ वो सिस्टम के तहत नहीं हुआ.
एनकाउंटर करने वाले पुलिस वालों को महिलाएं राखी बांध रही हैं
हैदराबाद एनकाउंटर न्यायपालिका की असफलता है
आज इस मामले पर बहुत से लोग खुश हैं और बहुत से इसके खिलाफ. तुरंत की गई ये कार्रवाई देखने में तो अच्छी लग रही है क्योंकि जो निर्भया मामले में नहीं हो पाया था वो पुलिस ने यहां कर दिया. लेकिन इसके पीछे कई सवाल छूट गए हैं. ये भी कह सकते हैं कि हैदराबाद पुलिस ने एनकाउंटर करके आगे कई सवालों से खुद को बचा लिया है. लेकिन बलात्कार के आरोपियों का एनकाउंटर करके अगर हर कोई खुश है तो क्या ये new normal है? पुलिस पर encounter करने के लिए फूल बरसाए जा रहे हैं तो फिर न्यायपालिका क्या करेगी. Hyderabad Police encounter भारत की judiciary पर सवालिया निशान है. न्यायपालिका नाकाम है और इसीलिए पुलिस को एनकाउंटर करने की नौबत आई. उदाहरण है निर्भया मामला, 7 सालों के बाद भी निर्भया की मां न्याय की मांग करती हैं, कहां मिला न्याय.
लेकिन इस एअनकाउंटर पर तभी खुश हुआ जा सकता है जब आप ये कहें कि आपने ये कानून बना दिया है कि अब से जो भी रेप होगा आप आरोपियों को इसी तरह मार देंगे. मीडिया और सोशल मीडिया पर आक्रोश को देखते हुए हैदराबाद पुलिस का 'फैसला ऑन द स्पॉट' देने का ये स्टंट अगर न्यू नॉर्मल है, तो फिर judicary को अपनी भूमिका के बारे में सोचना चाहिए.
इस मामले पर सिर्फ पुलिस ने अपनी साख बचाई है. इससे ज्यादा इसपर कुछ नहीं कहा जा सकता. सबसे बड़ी बात तो ये कि वो आरोपी थे, अपराधी थे या नहीं थे ये भी कोई नहीं जानता. इसलिए महिलाएं इसपर खुश न हों तो ही अच्छा है. मेरे हिसाब से तो दिशा का न्याय अब भी अधूरा है.
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