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Updated: 08 मई, 2018 12:32 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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एक लड़की को अचानक ब्रेस्ट में दर्द शुरू हो जाता है. दो तीन दिन रुकने के बाद भी दर्द कम नहीं हो रहा. आखिर डॉक्टर के पास जाए तो भी कैसे... इतना आसान नहीं है ब्रेस्ट के बारे में डॉक्टर से बात करना. थक हारकर एक हफ्ते बाद एक हॉस्पिटल में जाकर खड़ी हुई. रिसेप्शन पर स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलने की बात की. डॉक्टर के केबिन में पहुंची तो पता चला तो पुरुष गायनीक बैठा है.

गायनैकोलॉजिस्टस्त्री रोग विशेषज्ञों के सामने भारत में बहुत सी समस्याएं आती हैं.

लड़की के सामने एक गहन समस्या सामने आ गई थी. क्या बोले. बहुत मुश्किल से बोली चेस्ट में दर्द हो रहा है. अब चेस्ट और ब्रेस्ट में क्या फर्क है इसे ठीक से समझने के लिए आप गूगल कर सकते हैं. अंतत: डॉक्टर ने पेट की सोनोग्राफी लिखी और कहा शायद गैस्ट्रिक ट्रबल के कारण चेस्ट में दर्द हो रहा है. अपना सा मुंह लेकर लड़की आ गई.

यहां भारतीय मेडिकल साइंस के दो ऐसे किरदार हैं जिनके बारे में बात करना बहुत जरूरी है. एक तो डॉक्टर जिसने खिसियाती हुई उस लड़की से पूरी तरह से सवाल नहीं किया, अपनी व्यस्तता का भी सोचा और जो पहला इलाज दिमाग में आया वो बता दिया. और दूसरा वो लड़की जिसने असली समस्या बतने की जगह झेंप कर अपनी ही परेशानी छुपा ली. जहां ब्रेस्ट कैंसर के मरीज दुनिया भर में बढ़ रहे हैं वहीं इस तरह का मामल क्या कोई सीख देता है...

नतीजा क्या हुआ? लड़की ने फिर फीमेल गायनीक ढूंढा. उसने दवा दी और अब इलाज चल रहा है. लेकिन इस सबके चक्कर में करीब 1 महीने इलाज टल गया. ये तो हुई उस लड़की की बात जिसकी समस्या फिर भी ठीक होने लायक थी, लेकिन उन लड़कियों का क्या जो इस झेंपा-झेंपी में डॉक्टर को दिखाती ही नहीं और अंत में भयानक परिणाम भुगतती हैं.

रहिमन इस देश में भांति-भांति के वैद्य !

हमारे देश में ये कहावत बहुत प्रचलित है. डॉक्टर तो भगवान के समान होते हैं. जी बिलकुल, फिर भगवान से क्या शर्म? लेकिन अगर भगवान खुद शर्मा जाए तो? भारत में कई डॉक्टर भी ऐसे होते हैं जो महिलाओं-लड़कियों से उनकी समस्या के बारे में खुलकर बात नहीं कर पाते. ऐसे मरीजों से कैसे बात करें जो इतने झेंपे हुए हैं कि अपनी समस्या तक नहीं बता पा रहे. भारत में डॉक्टरों को इस समस्या से भी जूझना पड़ता है. एक दूसरे तरह के डॉक्टर होते हैं जो कुछ ज्यादा ही फ्रैंक होते हैं.

जानी मानी राइटर श्रीमोई पियू कुंडू ने अपने एक आर्टिकल में इसके बारे में लिखा था. अपने अनुभव को बताते हुए वो लिखती हैं कि गायनीक कई बार ऐसे सवाल कर लेते हैं जिनसे कोई भी झेंप जाए. एक तरफ वो आपकी बेहद निजी समस्या को सुलझाने की कोशिश करते हैं तो दूसरी तरफ वो रिलेशनशिप आदि को लेकर निजी सुझाव देने लगते हैं. सवाल जैसे शादी हो गई? नहीं, तो फिर सेक्शुअली एक्टिव हो? सिंगल हो? अभी तक शादी क्यों नहीं की? बच्चे क्यों नहीं चाहिए? चाहिए ही नहीं या हो नहीं रहे? आखिर अकेले कब तक रहना है? निजी अंग देखकर लगता है सेक्शुअली काफी एक्टिव हो.

गायनैकोलॉजिस्टभारत में गुप्तांगों का इलाज मरीजों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होता.

भारत में क्या तुम्हारी शादी हो चुकी है जैसा सवाल क्या आप सेक्शुअली एक्टिव हो का पर्याय होता है. ये सब सवाल महिलाएं भी करती हैं और पुरुष भी. अब इस बात को भारत से जोड़कर देखिए. भारत में स्त्री रोग विशेषज्ञ और उससे जुड़ी छी-छी थू-थू के कारण इलाज करने वाला और करवाने वाला दोनों ही अलग तरह ही मानसिकता का शिकार होते हैं.

शर्म-हया या इलाज?

ब्रेस्ट कैंसर के अलावा, PCOD जैसी बीमारी जो आजकल हर चौथी महिला से सुनने को मिल रही है, उसके लिए भी लोग बात करने में कतराते हैं. अगर लड़की अपने आस-पास के लोगों से सलाह करती है कि पीरियड नहीं आ रहे तो उसे शक की निगाहों से एक बार देखा जरूर जाता है. शायद इसी सोच का नतीजा है कि लड़कियां अपने बारे में बताने से कतराती हैं.

शरीर उनका है, समस्या उनकी है फिर लोगों के डर से, या अपनी शर्म हया के कारण समस्या नहीं बता पातीं. अगर इस बीच ब्रेस्ट या वैजाइना से जुड़ी कोई समस्या हो तब तो भूल ही जाइए कि अती होने से पहले इसका कोई उपाय खोजा जाएगा. मेरी नानी भी बड़े शौक से बताती हैं कि उनकी मां जो ब्रेस्ट कैंसर की पेशंट थीं, मरते दम तक डॉक्टर के पास नहीं गईं. क्योंकि कोई पराया पुरुष उन्हें देखे, हाथ लगाए ये भला कैसे हो सकता है.

क्या है डॉक्टर की राय?

डॉक्टर अशोक मीना एक गाइनैकोलॉजिस्ट हैं. सवाईमाधौपुर, राजस्थान में अपना क्लीनिक है. डॉक्टर मीना कहते हैं कि ग्रामीण परिवेश में ये दिक्कत बहुत होती है. यहां महिला गायनीक को ही प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन अगर उनके पास कोई मरीज आया भी है तो वो भी खुलकर बात नहीं कर पाता. कोई बहु अपनी सास के साथ आती है या कोई अविवाहिता अपनी मां के साथ. ऐसे में अगर पीरियड मिस होने की समस्या है तो सोशल प्रेशर के कारण खुलकर बात भी नहीं हो पाती. ऐसे में कई टेस्ट के जरिए उनकी समस्या जानने की कोशिश की जाती है. अगर किसी ने अपनी समस्या बतानी शुरू भी कर दी तो भी ऐसे सवालों का इस्तेमाल करना और शब्दों का चयन करना मुश्किल हो जाता है जिससे मरीज झेपें ना.

पीरियड, ब्रेस्ट, मेंस्ट्रूअल क्रैम्प, मूड स्विंग, PCOD, वजन बढ़ना, घटना, सिस्ट, हार्मोन प्रॉबलम, ट्यूमर जैसी कई समस्याओं से जूझने वाली महिलाओं के लिए कितना मुश्किल है अपनी समस्या बताना और उनका इलाज करने वाले डॉक्टर के लिए कितना मुश्किल है उनकी समस्याओं से जूझना और उनका इलाज करना ये भारतीयों से ज्यादा और कोई नहीं समझ सकता. एक बात तो पक्की है 2017 में भी ज्यादातर महिलाओं को गाइनैकोलॉजिस्ट से बात करना नहीं आता है.

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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